
Ganga dusherra 2025 : हिन्दू धर्म में गंगा नदी विशेष महत्व रखती है. इसे पवित्र माना गया है. किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ और मांगलिक कार्यों में गंगाजल का प्रयोग किया जाता है. यह बहुत शुभ मानी जाती है. हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है. मान्यताओं के अनुसार, इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और पवित्र नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं. इस साल यह पर्व कब है, इसे क्यों मनाया जाता है, आइए जानते हैं ज्योतिषाचार्य डॉ. गौरव दीक्षित से...
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कब है गंगा दशहरा 2025
पंचांग के अनुसार, इस साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि की शुरुआत 04 जून को रात 11:55 मिनट पर होगी और समापन 6 जून को रात करीब 2:14 मिनट पर होगी. उदयातिथि के अनुसार इस साल गंगा दशहरा का पर्व 5 जून 2025 को मनाया जाएगा.
क्यों मनाया जाता है गंगा दशहरा
गंगा दशहरा मनाने की कहानी भगवान राम के वंशजों से जुड़ी है. राजा सगर की दो रानियां केशिनी और सुमति की कोई संतान नहीं थी. संतान प्राप्ति के लिए दोनों रानियां हिमालय में भगवान की पूजा अर्चना और तपस्या में लग गईं. तब ब्रह्मा के पुत्र महर्षि भृगु ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी से राजा को 60 हजार अभिमानी पुत्र की प्राप्ति होगी. जबकि दूसरी रानी से एक पुत्र की प्राप्ति होगी जो, सुशील और विवेकी होगा. केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया. जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ, उसमें से 60 हजार पुत्रों का जन्म हुआ.
एक दिन राजा सगर ने अपने यहां पर एक अश्वमेघ यज्ञ करवाया. राजा ने अपने 60 हजार पुत्रों को यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी. लेकिन देवराज इंद्र ने छल पूर्वक 60 हजार पुत्रों से घोड़ा चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया.
सुमति के 60 हजार पुत्रों को घोड़े के चुराने की सूचना मिली तो सभी घोड़े को ढूंढने लगे. तभी वह कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे. कपिल मुनि के आश्रम में उन्होंने घोड़ा बंधा देखा तो आक्रोश में घोड़ा चुराने की निंदा करते हुए कपिल मुनि का अपमान किया और उनके आश्रम में उथल-पुथल मचा दी. यह सब देख तपस्या में बैठे कपिल मुनि ने जैसे ही आंख खोली तो आंखों से ज्वाला निकली जिसने राजा के 60 हजार पुत्रों को भस्म कर दिया. इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का अंत हो गया. लेकिन उनकी अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में ही पड़ी रही.
राजा सगर जानते थे कि उनके पुत्रों ने जो किया है, उसका परिणाम यही होना था. लिहाजा सभी के मोक्ष के लिए कोई उपाय खोजने बेहद जरूरी था. इसलिए राजा सगर से लेकर राजा भागीरथ (सगर के वंशज दिलीप के पुत्र) यानी उनके पूर्वजों ने अनेकों प्रयास किया. लेकिन कोई भी इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया. अंत में भागीरथ के प्रयास से ही ये संभव हो पाया.
कहानियों में कहा गया है कि, भागीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा को हिमालय से धरती पर आना पड़ा. मां गंगा सबसे पहले पर्वत पर आईं. इसलिए उस दिन को हम गंगा सप्तमी के नाम से जानते हैं. और मां गंगा का आगमन जब मैदानी इलाके में हुआ, उस दिन को हम गंगा दशहरा पर्व के रूप में मनाते हैं. गंगा जब पहली बार मैदानी क्षेत्र में दाखिल हुई, तब जाकर हजारों सालों से रखी राजा सगर के पुत्रों की अस्थियों का विसर्जन हो पाया और राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति मिली.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)