हिन्दू पुराणों में विजया एकादशी (Vijaya Ekadashi) का व्रत सर्वोत्तम माना जाता है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी पापों का नाश होता है और सच्चे मन से विधिपूर्वक व्रत करने वाले व्यक्ति को हर हाल में विजय प्राप्त होती है. कहते हैं कि भगवान राम ने भी लंका विजय के लिए इसी दिन समुद्र किनारे पूजा की थी. मान्यता है कि वकदालभ्य ऋषि ने ही भगवान राम से सेनापतियों के साथ विजया एकादशी का व्रत करने के लिए कहा था. आपको बता दें कि इस एकादशी के दिन सृष्टि के रचयिता श्री हरि विष्णु की पूजा का विधान है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से कई गुना पुण्य मिलता है और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
विजया एकादशी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार फागुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह एकादशी हर साल फरवरी या मार्च के महीने में आती है. यह एकादशी महाशिवरात्रि से दो दिन पहले पड़ती है. इस बार विजया एकादशी 19 फरवरी को है, जबकि शिवरात्रि 21 फरवरी को है.
विजया एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
विजया एकादशी की तिथि: 19 फरवरी 2020
एकादशी तिथि प्रारंभ: 18 फरवरी 2020 को दोपहर 2 बजकर 32 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 19 फरवरी 2020 को दोपहर 3 बजकर 2 मिनट तक
पारण का समय: 20 फरवरी 2020 को सुबह 6 बजकर 56 मिनट से 9 बजकर 11 मिनट तक
विजया एकादशी का महत्व
हिन्दू मान्यताओं में विजया एकादशी का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है. इस व्रत को सभी व्रतों में उत्तम माना गया है. इस विजया एकादशी के महात्म्य के श्रवण और पठन से सभी पापों का नाश हो जाता है. कहते हैं कि विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों का नाश करने वाला है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करता है उसकी विजय अवश्य होती है. यह भी कहा जाता है कि जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
विजया एकादशी की पूजा विधि
- एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें.
- अब घर के मंदिर में पूजा से पहले एक वेदी बनाकर उस पर सप्त धान (उड़द, मूंग, गेहूं, चना, जौ, चावल और बाजरा) रखें.
- वेदी के ऊपर एक कलश की स्थापना करें और उसमें आम या अशोक के पांच पत्ते लगाएं.
- अब वेदी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर रखें.
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल समर्पित करें.
- फिर धूप-दीप से विष्णु की आरती उतारें.
- शाम के समय भगवान विष्णु की आरती उतारने के बाद फलाहार ग्रहण करें.
- रात्रि के समय सोए नहीं बल्कि भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें.
- अगले दिन सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथा-शक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें.
- इसके बाद आप भी भोजन कर व्रत का पारण करें.
विजया एकादशी की कथा
त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे लक्ष्मण और सीता जी सहित पंचवटी में निवास करने लगे. वहां पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से रामचंद्र जी और लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए.
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुंचे तब वह उन्हें सीता जी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया. कुछ आगे जाकर उनकी सुग्रीव से मित्रता हुई और बाली का वध किया. हनुमान जी ने लंका में जाकर सीता जी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्र जी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया. वहां से लौटकर हनुमान जी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे.
श्री रामचंद्र जी ने वानर सेना सहित सुग्रीव की सम्पत्ति से लंका को प्रस्थान किया. जब श्री रामचंद्र जी समुद्र से किनारे पहुंचे तब उन्होंने मगरमच्छ आदि से युक्त उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मण जी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे. श्री लक्ष्मण ने कहा, "हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब कुछ जानते हैं. यहां से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदालभ्य नाम के मुनि रहते हैं. उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाकर इसका उपाय पूछिए."
लक्ष्मण जी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्र जी वकदालभ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रणाम करके बैठ गए. मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा, "हे राम! आपका आना कैसे हुआ?" रामचंद्र जी कहने लगे, "हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहां आया हूँ और राक्षसों को जीतने के लिए लंका जा रहा हूं. आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बतलाइए. मैं इसी कारण आपके पास आया हूं."
वकदालभ्य ऋषि बोले, "हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उत्तम व्रत करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे."
उन्होंने कहा, "इस व्रत की विधि यह है कि दशमी के दिन स्वर्ण, चाँदी, तांबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाएं. उस घड़े को जल से भरकर तथा पांच पल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें. उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें. उस पर श्रीनारायण भगवान की स्वर्ण की मूर्ति स्थापित करें. एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें. तत्पश्चात घड़े के सामने बैठकर दिन व्यतीत करें और रात्रि को भी उसी प्रकार बैठे रहकर जागरण करें. द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को ब्राह्मण को दे दें. हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी."
श्री रामचंद्र जी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया और इसके प्रभाव से दैत्यों पर विजय पाई.
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