
Varuthini Ekadashi 2025: हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यधिक महत्व होता है. साल में 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं और हर एक एकादशी का अपना एक अलग महत्व है. वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी का व्रत (Ekadashi Vrat) रखने पर माना जाता है कि जीवन से पाप कट जाते हैं और जीवन सुखमय बनता है सो अलग. पंचांग के अनुसार, इस साल वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की तिथि 23 अप्रैल से शुरू होगी और इस तिथि का समापन अगले दिन 24 अप्रैल को हो जाएगा. उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए 24 अप्रैल, गुरुवार के दिन ही वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस व्रत का पारण 25 अप्रैल के दिन होगा. वरुथिनी एकादशी पर पूरे मनोभाव से पूजा की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की प्रिय कही जाने वाली तुलसी माता का भी पूजन होता है और पूजा में तुलसी के पत्तों को खासतौर से शामिल किया जाता है. ऐसे में तुलसी स्त्रोत का पाठ करना भी शुभ होता है और माना जाता है कि तुलसी स्त्रोत का पाठ करने पर भगवान विष्णु की कृपा मिलती है और जीवन से दरिद्रता दूर हो जाती है.
एकादशी पर पढ़े तुलसी माता स्त्रोत | Tulsi Strota For Ekadashi
जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः॥१॥
नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके॥२॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम्॥३॥
नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम्।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात्॥४॥
तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम्।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः॥५॥
नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाञ्जलिं कलौ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे॥६॥
तुलस्याः नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः॥७॥
तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके॥८॥
तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन्॥९॥
नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके॥१०॥
इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः॥११॥
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया॥१२॥
लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः॥१३॥
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया॥१४॥
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनः प्रिये॥१५॥
॥ इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
तुलसी जी के मंत्र (Tulsi Mantras)
तुलसी नमस्कार मंत्र
महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी।
आधिव्याधिहरा नित्यं तुलसी त्वं नमोऽस्तुते।
तुलसी माता ध्यान मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमनःप्रिया॥
लभते सुतरां भक्तिं, अन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया॥
तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्णजीवनी॥
एतद् तुलस्यष्टकं स्तोत्रं नामार्थं संयुतम्।
यः पठेत् तां च सम्पूज्य सौश्रमेघं फलं लभेत्॥
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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