चार धाम यात्रा की आस्था पर उत्तराखंड के जंगल की आग का संकट, तीर्थयात्री असमंजस में

चार धाम यात्रा की आस्था पर उत्तराखंड के जंगल की आग का संकट, तीर्थयात्री असमंजस में

फाइल फोटो

इस महीने 9 मई से शुरू हो रही उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध चार धाम यात्रा को लेकर अनेक तीर्थयात्री आशंकित हैं। इसकी वजह है उत्तराखंड के जंगलों की आग, जिसमें जानमाल का भी नुकसान हुआ है।
 
चार धाम के तीर्थयात्री असमंजस में...
सरकारी दावों के अनुसार इस दावानल को 80 से 90 प्रतिशत तक नियंत्रित कर लिया गया है, लेकिन यह आग पूरी तरह बुझी नहीं है। इससे देश के अन्य भागों से यहां आने वाले चार धाम के तीर्थयात्री काफी असमंजस की स्थिति में हैं।
 
रूद्र प्रयाग के रास्ते आग की चपेट में
चार धाम के तीर्थयात्रियों को रुद्र प्रयाग से होकर गुजरना पड़ता है। खबर है कि वहां के जंगल और रास्ते को कई जगह आग ने अपनी चपेट में ले रखा है। हालांकि नैनीताल के वन अधिकारियों का दावा है कि यहां लगी आग पर काबू पा लिया गया है।
 
हो सकती बाढ़ की बारंबारता में वृद्धि
मौसम विशेषज्ञों का मानना है कि इस भीषण दावानल से हिमालय के अनेक ग्लेशियर (स्थायी रूप से बर्फ से जमे क्षेत्र) भी पिघल सकते हैं, क्योंकि तापमान लगभग 0.2 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ गया है। बढ़ा हुआ यह तापमान गंगोत्री,यमुनोत्री, सुंदरदुंगा, मिलाम, नेउला आदि ग्लेशियर को पिघला सकते हैं। इससे पहाड़ी नदियों के जल के प्रवाह में बढ़ोतरी होगी और बाढ़ की बारंबारता भी बढ़ सकती है।
 
धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है चार धाम यात्रा
उत्तराखण्ड में स्थित गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा को चार धाम यात्रा कहते हैं। हिन्दू धर्मग्रंथों में इन्हें बहुत पवित्र तीर्थ स्थल माना गया है। ये सभी तीर्थस्थल हिमालय पर्वत की शृंखलाओं में स्थित है, जिनका धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्व है।
 
धार्मिक पर्यटन राजस्व पर हो सकता असर
विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस आग की वजह से राज्य को धार्मिक पर्यटन से आने वाले राजस्व पर में कमी आ सकती है। गौरतलब है कि धार्मिक मान्यताओं के आधार पर चार धाम के दर्शन एक ही यात्रा में करने पर सबसे पहले यमुनोत्री, फिर गंगोत्री उसके बाद केदारनाथ और सबसे आखिर में बद्रीनाथ का दर्शन किया जाता है।


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