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This Article is From Nov 07, 2022

Tulsi Vivah 2022: तुलसी विवाह की यह कथा है बेहद खास, जानें वृंदा की तुलसी बनने की कहानी

Tulsi Vivah 2022 Katha: तुलसी विवाह कार्तिक मास में किया जाता है. इस साल तुलसी विवाह 5 नवंबर को किया जाएगा. आइए जानते हैं तुलसी विवाह की पौराणिक कथा.

Tulsi Vivah 2022: तुलसी विवाह की यह कथा है बेहद खास, जानें वृंदा की तुलसी बनने की कहानी
Tulsi Vivah 2022: इस साल तुलसी विवाह 5 नवंबर 2022 को पड़ रहा है.

Tulsi Vivah 2022 Katha: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं जिसके बाद से मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. वहीं भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने के बाद तुलसी विवाह संपन्न कराया जाता है. आपको बता दें कि इस साल 05 नवंबर को तुलसी विवाह मनाया जा रहा है. ऐसे में जानते हैं कि तुलसी विवाह की कथा क्या है और वृंदा के तुलसी बनने की कहानी क्या है. 

तुलसी विवाह कथा | Tulsi Vivah Katha

पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक जालंधर नाम का एक राक्षस देवी-देवताओं को अपने आतंक से तबाह कर रखा था. कहते हैं कि जालंधर की पत्नी वृंदा एक पतिव्रता नारी थी. कहा जाता है कि उसकी पूजा से जालंधर को किसी युद्धा में पराजय हासिल नहीं होती थी. इसके अलावा वृंदा भगवान विष्णु की भी परम भक्त थी. ऐसे में भगवान विष्णु की कृपा के कारण भी उसे युद्ध में हमेशा विजय हासिल होता था. एक दिन जालंधर स्वर्ग लोक पर आक्रमाण कर दिया. जिसके बाद सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा की गुहार लगाई. 

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भगवान विष्णु इस बात को जानते थे कि वृंदा की भक्ति को भंग किए बिना जालंधर को परास्त करना मुमकिन नहीं है. ऐसे में उन्होंने जालंधर का रूप धारण किया जिसके बाद वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया. जिससे जालंधर की सारी शक्तियां खत्म हो गई. जिसके बाद जालंधर युद्ध में मारा गया. वृदा को जालंधर की मृत्यु का समाचार मिला तो वह बहुत निराश हो गई. बाद में वृंदा को जब उसके साथ किए गए छल का पता चला तो व्रत क्रोधित होकर भगवान विष्णु को श्राप दे दिया. 

वृंदा का पतिव्रता व्रत भंग होने की वजह से उसने भगवान श्रीहरि को श्राप दिया "जिस तक आपने छल से मुझे वियोग का कष्ट दिया है, उसी तरह आपकी पत्नी का भी छल से हरण होगा." साथ ही आप पत्थर के हो जाएंगे और उस पत्थर को लोग शालीग्राम के रूप में जानेंगे. कहते हैं कि वृंदा के श्राप की वजह से भगवान विष्णु दशरथ के पुत्र श्रीराम के रूप में जन्म लिया. फिर बाद में उन्हें सीता हरण के वियोग का कष्ट झेलना पड़ा.      

वृंदा ऐसे बनी तुलसी

धार्मिक कथा है कि वृंदा पति के वियोग को सहन नहीं कर पाई और सती हो गई. कहा जाता है कि वृंदा की राख से जो पौधा उत्पन्न हुआ उसे भगवान विष्णु ने तुलसा का नाम दिया. जिसके बाद भगवान विष्णु ने यह प्रण लिया कि वे तुसली के बिना भोग ग्रहण नहीं करेंगे. इसके साथ ही उनका विवाह शालीग्राम से होगा. मान्यता है कि जो कोई श्रद्धापूर्वक तुलसी विवाह संपन्न कराएगा उसका वैवाहिक जीवन खुशियों से भरा रहेगा.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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