फाइल फोटो
तिरूवनंतपुरम:
सबरीमाला में भगवान अयप्पा मंदिर में मासिक धर्म आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को लेकर उच्चतम न्यायालय द्वारा सवाल उठाये जाने के एक दिन बाद त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) ने कहा कि यह रोक मंदिर की प्रथा और परंपरा का हिस्सा है और यह जारी रहनी चाहिए।
मंदिर का प्रबंधन करने वाले टीडीबी के अध्यक्ष प्रायर गोपालकृष्णन ने यहां पीटीआई से कहा कि बोर्ड 10 वर्ष की आयु से लेकर 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक जारी रखने के लिए उच्चतम न्यायालय में अपना पक्ष रखेगा।
सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं एवं लड़कियों के प्रवेश की इजाजत की मांग वाली यंग लायर्स ऐसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवायी करते हुए न्यायालय ने कहा था कि यह प्रचलन संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
प्रथा एवं परंपराओं का पालन जरूरी : टीडीबी
गोपालकृष्णन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी 2006 में एलडीएफ नीत तत्कालीन माकपा राज्य सरकार की ओर से दायर हलफनामे पर आधारित है। उन्होंने कहा कि उक्त टिप्पणी मंदिर और भगवान अयप्पा के धार्मिक संस्कारों की विशिष्टता को समझे बिना थी जिन्हें निष्ठिका ब्रह्मचारी माना जाता है।
उन्होंने कहा कि मान्यता के अनुसार पहाड़ी पर स्थित मंदिर जाते समय कुछ प्रथा एवं परंपराओं का पालन करना होता है। उन्होंने कहा, ‘‘टीडीबी और राज्य सरकार उन प्रथाओं एवं परंपराओं के संरक्षण को महत्व देते हैं।’’ उन्होंने कहा कि बोर्ड न्यायालय में अपना रूख पेश करने के लिए मामले में स्वयं को पक्षकार बनाएगा।
विहिप चाहती है जारी रहे यह परंपरा
इस बीच विहिप प्रदेश अध्यक्ष एस जे आर कुमार ने पीटीआई से कहा कि मुद्दे में न केवल धार्मिक एवं आनुष्ठानिक पहलू जुड़े हैं बल्कि इसमें पहाड़ी पर स्थित मंदिर में महिलाओं की सुरक्षा भी जुड़ी हुई है जहां तीन महीने :नवम्बर से जनवरी: की अल्प अवधि तक चलने वाली वाषिर्क तीर्थयात्रा में लाखों लोग जुटते हैं।
उन्होंने कहा कि विहिप चाहती है कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परंपरा जारी रहे। उन्होंने कहा कि विहिप भी मामले में पक्षकार बनने पर विचार कर रहा है।
मंदिर का प्रबंधन करने वाले टीडीबी के अध्यक्ष प्रायर गोपालकृष्णन ने यहां पीटीआई से कहा कि बोर्ड 10 वर्ष की आयु से लेकर 50 वर्ष की आयु की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक जारी रखने के लिए उच्चतम न्यायालय में अपना पक्ष रखेगा।
सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं एवं लड़कियों के प्रवेश की इजाजत की मांग वाली यंग लायर्स ऐसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवायी करते हुए न्यायालय ने कहा था कि यह प्रचलन संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
प्रथा एवं परंपराओं का पालन जरूरी : टीडीबी
गोपालकृष्णन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी 2006 में एलडीएफ नीत तत्कालीन माकपा राज्य सरकार की ओर से दायर हलफनामे पर आधारित है। उन्होंने कहा कि उक्त टिप्पणी मंदिर और भगवान अयप्पा के धार्मिक संस्कारों की विशिष्टता को समझे बिना थी जिन्हें निष्ठिका ब्रह्मचारी माना जाता है।
उन्होंने कहा कि मान्यता के अनुसार पहाड़ी पर स्थित मंदिर जाते समय कुछ प्रथा एवं परंपराओं का पालन करना होता है। उन्होंने कहा, ‘‘टीडीबी और राज्य सरकार उन प्रथाओं एवं परंपराओं के संरक्षण को महत्व देते हैं।’’ उन्होंने कहा कि बोर्ड न्यायालय में अपना रूख पेश करने के लिए मामले में स्वयं को पक्षकार बनाएगा।
विहिप चाहती है जारी रहे यह परंपरा
इस बीच विहिप प्रदेश अध्यक्ष एस जे आर कुमार ने पीटीआई से कहा कि मुद्दे में न केवल धार्मिक एवं आनुष्ठानिक पहलू जुड़े हैं बल्कि इसमें पहाड़ी पर स्थित मंदिर में महिलाओं की सुरक्षा भी जुड़ी हुई है जहां तीन महीने :नवम्बर से जनवरी: की अल्प अवधि तक चलने वाली वाषिर्क तीर्थयात्रा में लाखों लोग जुटते हैं।
उन्होंने कहा कि विहिप चाहती है कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक की परंपरा जारी रहे। उन्होंने कहा कि विहिप भी मामले में पक्षकार बनने पर विचार कर रहा है।
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