Somvati Amavasya 2022: सोमवती अमावस्या का हिंदू धर्म में खास महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) कहते हैं. ज्येष्ठ मास की सोमवती अमावस्या 30 मई, सोमवार के दिन पड़ने वाली है. सोमवती अमावस्या को भगवान शिव (Lord Shiva) को समर्पित माना जाता है. इस दिन भगवान शिव की पूजा की जाती है. इसके अलावा इस दिन महिलाएं तुलसी (Tulsi) की परिक्रमा करती हैं. साथ ही, वे तुलसी की परिक्रमा करते हुए अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं. सोमवती अमावस्या के दिन पवित्र नदी में स्नान और पितरों की पूजा का भी विधान है. माना जाता है कि सोमवती अमावस्या पर पितरों का पूजन करने से उनका आशीर्वाद मिलता है. सोमवती अमावस्या के दिन व्रत भी रखा जाता है और इस दिन व्रत कथा (Vrat Katha) का पाठ भी किया जाता है.
सोमवती अमावस्या व्रत कथा | Somvati Amavasya Vrat Katha
सोमवती अमावस्या की व्रत कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण का भरा पूरा परिवार था. उसकी एक बेटी थी जिसकी शादी को लेकर वह बहुत चिंतित रहता था. लड़की सुंदर, सुशील, कामकाज में अव्वल थी लेकिन उसकी शादी नहीं हो पा रही थी. एक बार उस ब्राह्मण के घर एक साधू महाराज पधारे. वे उस लड़की की सेवा से प्रसन्न हुए और उसे दीर्घायु का आशीर्वाद दिया. फिर उसके पिता ने उन्हें बताया कि इसकी शादी नहीं हो रही है. साधू ने लड़की के बारे में कहा कि उसकी कुंडली में शादी का योग नहीं है. साधू महाराज की इस बात को सुनकर ब्राह्मण घबराकर उपाय पूछने लगा. तब साधू ने सोच-विचार करते हुए बताया कि दूर गांव में एक औरत है. वह धोबिन है और सच्ची पतिव्रता पत्नी है. अपनी बेटी को उसकी सेवा के लिए उसके पास भेजो. जब वो औरत अपनी मांग का सिंदूर इस पर लगाएगी तो तुम्हारी बेटी का जीवन भी संवर जाएगा.
ब्राह्मण ने अगली ही सुबह अपनी बेटी को धोबिन के घर भेज दिया. धोबिन अपने बेटे और बहु के साथ रहती थी. ब्राह्मण की बेटी सुबह जल्दी जाकर घर के सारे काम कर आती थी. ऐसा दो-तीन दिनों तक चलता रहा. धोबिन को लगा कि उसकी बहु सुबह जल्दी काम कर पूरा कर लेती है. उसने उससे पूछा. तब बहु ने कहा कि मुझे लगा आप ये काम करती हैं. धोबिन ने अगली सुबह उठकर छिपकर देखा के ऐसा कौन करता है. तब वहां ब्राह्मण की बेटी आई और फिर उसे धोबिन ने पकड़ लिया. धोबिन के पूछने पर उसने अपनी सारी व्यथा सुना दी. धोबिन भी खुश हुई और उसे अपनी मांग का सिंदूर लगा दिया. ऐसा करते ही धोबिन के पति ने प्राण त्याग दिए. ये सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) का दिन था. धोबिन तुरंत दौड़ते-दौड़ते पीपल के पेड़ के पास गई. परिक्रमा करने के लिए उसके कोई समान नहीं था. तो उसने ईंट के टुकड़ों से पीपल (Peepal) की 108 बार परिक्रमा की. ऐसा करते ही धोबिन के पति में जान आ गई. कुछ समय बाद ब्राह्मण की कन्या का अच्छी जगह विवाह हो जाता है, और वह अपने पति के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करने लगती है. इसके बाद से इस दिन का प्रत्येक विवाहिता के जीवन में विशेष महत्व है. वे अपने पति की लम्बी आयु के लिए प्राथना करती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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