
Shivling puja ka niyam 2025 : बड़े बुजुर्ग गर्भवती महिला को पूजा-पाठ के माध्यम से अध्यात्म से जुड़े रहने की सलाह देते हैं. कहा जाता है गर्भावस्था के दौरान जैसा आप आचरण, विचार और खान-पान रखेंगे वैसा ही असर बच्चे पर पड़ेगा. इसलिए गर्भवती महिला को पूजा पाठ में मन लगाना चाहिए और मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए. लेकिन बात जब शिवलिंग की पूजा की होती है, तो इससे जुड़े कुछ नियम हैं जिसके बारे में हम आगे जानेंगे, ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से....
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गर्भवती महिला के लिए शिवलिंग के पूजन का नियम क्या है
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि हिन्दू धर्म में मनुष्य के जीवन के 16 महत्वपूर्ण अनुष्ठान हैं, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के जीवन के विभिन्न चरणों को चिह्नित करते हैं. ये संस्कार व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने और उसके पूर्व जन्मों के कुसंस्कारों को उसकी आत्मा से मिटाने हेतु, उसे समाज का एक योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से किए जाते हैं. उनमें से निम्न तीन संस्कार गर्भावस्था में होते हैं-
1. गर्भाधान संस्कार - यह संस्कार गर्भावस्था की शुरुआत में किया जाता है, जिसका उद्देश्य स्वस्थ और बुद्धिमान संतान की प्राप्ति है.
2. पुंसवन संस्कार - यह संस्कार गर्भधारण के तीसरे महीने में किया जाता है, जिसका उद्देश्य गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य और विकास को सुनिश्चित करना है.
3. सीमन्तोन्नयन संस्कार - यह संस्कार गर्भधारण के चौथे, छठे या आठवें महीने में किया जाता है, जिसका उद्देश्य गर्भवती महिला और गर्भ में पल रहे शिशु को बुरी नजर से बचाना है.
जब हमारे हिन्दू धर्म में उपरोक्त संस्कार स्त्री के गर्भावस्था में कराने के निर्देश हैं, तो ऐसे में गर्भवती महिला के द्वारा शिवलिंग की पूजा करने को लेकर कोई संशय नहीं बनता है. गर्भवती महिला शिवलिंग की पूजा कर सकती है और भी अनुष्ठान विधि पूर्वक कर सकती है.
गर्भवती कर सकती है शिवलिंग की पूजा
हिंदू धर्म में इसका कोई निषेध स्पष्ट रूप से नहीं है, बल्कि भगवान शिव को कल्याणकारी, भोलेनाथ और बच्चा एवं मां के रक्षक के रूप में माना जाता है. वे अपने भक्तों के दोषों को भी क्षमा करने वाले हैं. ऐसे में कोई भी गर्भवती महिला शिवलिंग की पूजा कर सकती है. सीधे तौर पर अगर हम कहें तो यह विषय पुराणों में बहुत विस्तार से नहीं आता है. लेकिन कुछ ग्रन्थों और शैव परंपरा में इसके संकेत मिलते हैं.
शिव पुराण में उल्लेख मिलता है, जिसमें लिखा है की भक्ति भाव से शिव पूजा का महत्व बताया गया है. किसी स्थान पर यह नहीं लिखा है कि गर्भवती स्त्री शिवलिंग की पूजा न करें. बल्कि स्त्रियों के लिए सौभाग्यवती, संतान सुख और सुरक्षित गर्भकाल के लिए भगवान शिव की पूजा फलदायी मानी गई है.
स्कंद पुराण के अनुसार भी गर्भवती महिला भगवान शिव की आराधना, उपासना, पूजा, शिवलिंग की पूजा विशेष कर संतान सुख और गर्भावस्था में होने वाले कष्टों से मुक्ति के लिए कर सकती है. स्कंद पुराण में किसी भी प्रकार से स्त्री को पूजा करने से वर्जित नहीं किया गया है.
गर्भवती स्त्री शिव पूजा क्यों कर सकती है
भगवान शिव को आशुतोष कहा गया है. जो जल्द प्रसन्न हो जाते हैं. शिवलिंग पर जल बेल पत्र दूध आदि चढ़ाने से शारीरिक एवं मानसिक शांति मिलती है. जो गर्भवती महिला के लिए अच्छा है.
धार्मिक रूप से भी यह माना जाता है कि शिव की पूजा से गर्भस्थ शिशु पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. मां के गर्भ में पल रहा बच्चा के बारे में यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो वह गर्भ में उल्टा लटका होता है और उसका जीव आत्मा महान कष्ट में होता है.
वह ईश्वर से यही प्रार्थना करता रहता है कि प्रभु मुझे इस घोर नर्क से बाहर निकालिए. मैं अच्छे कर्म करूंगा और धर्म के मार्ग पर चलूंगा, पाप कर्म नहीं करूंगा, आपका नाम जप करूंगा. जिससे मैं जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाऊं और मुझे पुनः इस प्रकार गर्भ में न आना पड़े. लेकिन जन्म होने के बाद प्राणी उन बातों को भूल जाता है और पुनः पाप कर्म, अधर्म में लग जाता है. ऐसी स्थिति में भी यदि गर्भावस्था में भगवान शिव अथवा शिवलिंग की पूजा करती है तो गर्भ में पड़े बच्चे के कुछ कष्ट कम ही होंगे.
जच्चा और बच्चा दोनों के लिए है अच्छा
अस्वस्थ महसूस कर सकती है और ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप कर सकती है. गर्भवती महिला को शिवलिंग की पूजा करने में कोई निषेध नहीं है. यह परंपरा शास्त्र और आस्था तीनों से समर्थित है. यदि स्वास्थ्य और मन की स्थिति ठीक हो, तो शिव पूजा बहुत ही कल्याणकारी मानी गई है इससे मां और बच्चे दोनों को बेहद लाभ मिलता है. और सुगमता पूर्वक गर्भधारण करना संभव होता है.
ये सावधानियां बरतें
ध्यान रखने योग्य कुछ बातें हैं जिनका विशेष रूप से व्यवहार की दृष्टि से महत्व है. गर्भवती महिला को पूजा करते समय ज्यादा देर खड़े रहना, झुकना या पेट के बल बैठना उचित नहीं है या व्रत आदि करने से बचना चाहिए. जल चढ़ाते समय सावधानी रखें, ताकि महिला को फिसलने आदि की संभावना न हो.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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