
Guru Purnima 2025 : हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है, इस साल यह पर्व 10 जुलाई को मनाया जाएगा. ऐसे में आज के इस आर्टिकल में हम ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानेंगे गुरु दीक्षा लेना क्यों जरूरी है, किसे अपना गुरु बनाना चाहिए, किसे नहीं और इसके क्या लाभ हैं...
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गुरु दीक्षा लेना क्यों है जरूरी
पंडित अरविंद मिश्र बताते हैं कि गु+रु अर्थात गुरु जिसमें 'गु' माने अंधकार और 'रु' माने प्रकाश. यानी जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है अथवा हमारा अज्ञान मिटाकर ज्ञान के प्रकाश से हमारे जीवन को आलौकित करता है, उसको गुरु कहते हैं. इसलिए गुरु दीक्षा लेना जरूरी है, क्योंकि गुरु अपनी आध्यात्मिक शक्ति से शिष्य के पूर्व जन्म के कुसंस्कारों को निस्तारित कर उसकी आत्मा को उन्नतशील बनाता है.
आपको बता दें कि गुरु व्यक्ति तक सीमित नहीं है. वह एक दिव्य चेतन प्रवाह ईश्वर का ही अंश होता है. परीक्षा लेकर पास फेल करने वाले तथा पास बिठाकर पढ़ाने वाले दोनों ही शिक्षक कहलाते हैं. चेतना का एक अंश जो अनुशासन व्यवस्था बनता है, उसका फल देता है वह ईश्वर है. दूसरा अंश जो अनुशासन मर्यादा सिखाता है, उसमें गति पैदा करता है, वह गुरु है.
ऐसी चेतना के रूप में गुरु की वंदना करके उस अनुशासन को अपने ऊपर आरोपित करना चाहिए. उसका उपकरण बनने के लिए भाव भरा आवाहन करना चाहिए, ताकि अपनी वृतियां और शक्तियां उसके अनुरूप कार्य करती हुई, उस सनातन गौरव की रक्षा कर सकें.
गुरु दीक्षा लेना आवश्यक क्यों है और किसे अपना गुरु बनाना चाहिए. यह प्रश्न आध्यात्मिक,धर्म, आत्म परिष्कार, कुसंस्कार विच्छेद आदि की गहराइयों से जुड़ा है. मंत्र दीक्षा से शिष्य के आत्मा में उत्पन्न विकार समाप्त होते है. चंचलता, अस्थिरता में कमी आती है. गुरु द्वारा दिया गया मंत्र केवल शब्द नहीं है. बल्कि गुरु मंत्र से ऊर्जा का संचार होता है. शास्त्र कहते हैं बिना गुरु दीक्षा के मंत्र जाप का उतना फल नहीं मिलता है जितना गुरु द्वारा दीक्षा लेकर जपने से मिलता है.
गुरु दीक्षा के महत्व के बारे में शिव महापुराण, गुरु गीता, भागवत पुराण मुंडकोपनिषद, योग वशिष्ठ आदि ग्रंथों में विस्तार से बताया गया है. गुरु दीक्षा के बारे में भगवद्गीता (4.34) कहती है- ज्ञान प्राप्त करने के लिए विनम्रता से गुरु के पास जाओ, उनसे प्रश्न करो, उनकी सेवा करो. तत्वदर्शी गुरु तुम्हें आत्मज्ञान देंगे. गुरु के बिना आत्म ज्ञान असंभव है. केवल किताबें पढ़कर आत्मा का अनुभव नहीं होता, गुरु ही मार्गदर्शन करते हैं.
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः, गुरुरेव महेश्वरः । गुरुरेव परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥१ ॥
अखण्डमण्डलाकारं, व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ॥2 ॥
भावार्थ - गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु महेश्वर हैं. गुरु परम ब्रह्म हैं, जिन्हें मैं प्रणाम करता हूं. वे अखंड क्षेत्र के रूप में हैं, जो सभी चर-अचर वस्तुओं में व्याप्त हैं. मैं उन श्री गुरु को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने मुझे वह मार्ग दिखाया है.
गुरु ही साक्षात ब्रह्मा होते हैं ,जो शिष्य को अंधकार से प्रकाश के ओर ले जाते हैं. गुरु दीक्षा के माध्यम से गुरु शिष्य को मंत्र देते हैं, जिससे उसका चित शुद्ध होता है.
गुरु किसे बनाना चाहिए
- ज्योतिषाचार्य अरविंद आगे कहते हैं कि शास्त्र, वेद उपनिषद, गीता, पुराण आदि शास्त्रों को जानने वाले आत्म दर्शी जिन्होंने स्वयं आत्मा का अनुभव किया हो, जिनका आचरण निष्कलंक हो, उनका व्यवहार सरल हो,उनका आचरण निर्मल हो, लोभ, क्रोध, मोह से रहित हों, और अपने शिष्यों में विभेद न करते हो. उनका दीन दयालु स्वभाव, विनम्र करुणामय और शिष्यों का कल्याण चाहने वाले हों.
- किसी संप्रदाय अथवा गुरु परंपरा से जुड़े हो. वैष्णव, शैव, वैदिक,अद्वैत ,नाथ सिद्ध, आदि किसी भी परंपरा का अनुसरण करते हो अथवा गुरु परंपरा से हों.
किसे गुरु नहीं बनाना चाहिए
- गीता एवं गरुण पुराण में कहा गया है कि हमें लोभी, क्रोधी, मूर्ख और अज्ञानी या केवल दिखावे वाले को कभी गुरु नहीं बनना चाहिए. यानी सिर्फ चमत्कार दिखाने वाले, पैसा मांगने वाले या भावनात्मक रूप से लोगों को डराने वाले व्यक्ति गुरु नहीं हो सकते है. ऐसे आडंबर करने वाले लोगों से दूर रहना चाहिए. ऐसे लोग शिष्य की उन्नति करने के बजाय उसकी अवनति करते हैं. इसलिए ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए.
भगवान को भी गुरु बना सकते हैं
- अगर आपका कोई गुरु नहीं है और कोई व्यक्ति गुरु के रूप में पसंद नहीं है, तो आप भगवान शिव, भगवान कृष्ण,अथवा हनुमान जी को अपना गुरु बना सकते हैं. गुरु दीक्षा लेने से व्यक्ति को आत्म संतोष मिलता है, मन को शांति मिलती है, स्थिरता आती है और चंचलता समाप्त होती है.
गुरु दीक्षा लेने के क्या लाभ हैं
- गुरु द्वारा दिए गए मंत्र का जाप करने से चित शुद्ध होता है. आत्म उन्नति होती है. गुरु की कृपा से पूर्व जन्म के कर्म कटते हैं.
- गुरु के मार्गदर्शन से आत्म जागृति होती है,आत्मज्ञान की दिशा में शिष्य बढ़ना शुरू कर देता है. गुरु की कृपा से साधना में स्थिरता आती है.
- बिना गुरु साधना के शिष्य के जीवन में भटकाव भी आ सकता है. इसलिए गुरु दीक्षा लेना आवश्यक है. महाकवि कबीरदास जी ने खूब कहा है.
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पांव,
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविंद दियो बताय...
अर्थात गुरु और भगवान दोनों ही मेरे सम्मुख खड़े हैं, परंतु गुरु ने ईश्वर को जानने का मार्ग दिखा दिया है. कहने का भाव यह है कि जब आपके समक्ष गुरु और ईश्वर दोनों विधमान हो तो पहले गुरु के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान के पास पहुंचने का ज्ञान प्रदान किया है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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