
Raas Purnima 2025: शरद पूर्णिमा पर सिर्फ मन के कारक चंद्र देवता, धन की देवी मां लक्ष्मी या फिर जगत के पालनहार भगवान विष्णु भर की पूजा नहीं होती है, बल्कि इस दिन श्री हरि के पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण की भी विशेष पूजा की जाती है. हिंदू मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि में ही भगवान श्री कृष्ण ने 16108 गोपियों के साथ वृंदावन में यमुना नदी के किनारे रास रचाया था. बंसीवट नामक कान्हा की इस लीला को रासलीला भी कहा जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की जिस महारास को देखने के लिए चंद्रमा ठहर गया था और भगवान शिव भी वेश बदलकर पहुंचे थे, आइए उसका धार्मिक महत्व जानते हैं.
कान्हा ने क्यों रचाई रासलीला
हिंदू मान्यता के अनुसार जब कामदेव ने अपना कामबाण चलाकर महादेव को माता पार्वती की ओर आकर्षित कराया तो उन्हें अपने शक्तियों पर अभिमान हो गया और वे सभी के सामने अपने इस ताकत का दंभ भरने लगे. जब यह बात भगवान श्रीकृष्ण को पता लगी तो उन्होंने 16108 गोपियों को वृंदावन में बुलाकर रास रचाया था. इसके लिए उन्होंने अपने अनेकों रूप धारण करके प्रत्येक गोपी के साथ अलग-अलग नृत्य किया.
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मान्यता है कि इस दौरान कामदेव के बहुत जोर लगाने के बाद भी किसी गोपी के भीतर कामवासना प्रवेश नहीं हुई. कान्हा के इस महारास के बाद कामदेव का अभिमान दूर हो गया. हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी रास पूर्णिमा पर उनके मंत्र ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री' का जाप करने पर सभी दुख दूर और कामनाएं पूरी होती हैं.
महरास देखने के लिए गोपी बन गये थे महादेव
पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण के इस महारास को देखने के लिए स्वयं देवों के देव महादेव भी वृंदावन के यमुना तट पर पहुंचे लेकिन यमुना नदी ने महारास को देखने की आज्ञा नहीं दी. तब भगवान शिव ने गोपी का रूप धारण करके रास लीला देखने का निश्चय किया. मान्यता है कि महादेव के इसी स्वरूप को उनके भक्तगण गोपेश्वर महादेव के रूप में पूजते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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