आपको भले यह अजीब लगे लेकिन भारत में ऐसे मंदिरों की कमी नहीं है, जहां बुराई के प्रतीकों की भी पूजा होती है। महाभारत के मामा शकुनी को लोग लाख बुरा मानें, लेकिन देश के सुदूर दक्षिण में केरल के एक समुदाय के लिए वे पूजित हैं।
केरल के कोल्लम में स्थित है शकुनी मंदिर...
केरल के कोल्लम में स्थित एक मंदिर में बाकायदा शकुनी की पूजा होती है। इस मंदिर का नाम है, मायम्कोट्टू मलंचारुवु मलनाड। परंपरा के अनुसार, इस मंदिर में शकुनी को नारियल, रेशम और ताड़ी (ताड़ के रस से बनी एक स्थानीय शराब ‘तोड्डी’) चढ़ाई जाती है।
यहां आयोजित होता है मलक्कुडा महोलसवम उत्सव...
केवल यही नहीं यहां मलक्कुडा महोलसवम नामक एक भव्य सालाना उत्सव भी आयोजित किया जाता है। गौरतलब है कि वर्त्तमान में कोल्लम में जहां यह मंदिर है, उस स्थान को पवित्रेश्वरम नाम से जाना जाता है।
बाद में सात्विक हो गए थे शकुनी...
हालांकि शकुनी को कई बुरी चीजें करने के लिए जाना जाता है, लेकिन कहते हैं बाद में शकुनी सात्विक स्वाभाव के हो गए थे। इसलिए यहां उसकी पूजा की जाती है।
कैसे बदल गए मामा शकुनी...
कहते हैं रक्तरंजित महाभारत युद्ध से जो ठहराव आया उसके बाद शकुनी ने विदग्ध मन को शांत करने और मोक्ष पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी। अपनी तपस्या के लिए उसने जिस स्थान को चुना था, वह स्थान ही आज कोल्लम का पवित्रेश्वरम है।
मंदिर में रखी पत्थर की पूजा करते हैं लोग...
इस मंदिर में एक शिला (पत्थर) है, जिसकी लोग विधिवत पूजा करते हैं। इसके बारे में कहा जाता है कि इस पत्थर का शकुनी ने अपनी साधना के लिए उपयोग किया था। इस मंदिर में शकुनी के अलावा देवी भुवनेश्वरी, भगवान किरातमूर्ति और नागराज भी पूजे जाते हैं।
यदि महाभारत में शकुनि न होते तो...
अनके लोग मानते हैं कि मामा शकुनी भले ही महाभारत युद्ध के लिए सर्वथा जिम्मेदार नहीं हों, लेकिन उन्होंने युद्ध के लिए कौरवों को उकसाया था, जो युद्ध होने का तात्कालिक कारण बना। कहते हैं यदि शकुनि न होते तो शायद महाभारत का युद्ध नहीं होता, तब शायद भारतवर्ष की कहानी कुछ और ही होती।
केरल के कोल्लम में स्थित है शकुनी मंदिर...
केरल के कोल्लम में स्थित एक मंदिर में बाकायदा शकुनी की पूजा होती है। इस मंदिर का नाम है, मायम्कोट्टू मलंचारुवु मलनाड। परंपरा के अनुसार, इस मंदिर में शकुनी को नारियल, रेशम और ताड़ी (ताड़ के रस से बनी एक स्थानीय शराब ‘तोड्डी’) चढ़ाई जाती है।
यहां आयोजित होता है मलक्कुडा महोलसवम उत्सव...
केवल यही नहीं यहां मलक्कुडा महोलसवम नामक एक भव्य सालाना उत्सव भी आयोजित किया जाता है। गौरतलब है कि वर्त्तमान में कोल्लम में जहां यह मंदिर है, उस स्थान को पवित्रेश्वरम नाम से जाना जाता है।
बाद में सात्विक हो गए थे शकुनी...
हालांकि शकुनी को कई बुरी चीजें करने के लिए जाना जाता है, लेकिन कहते हैं बाद में शकुनी सात्विक स्वाभाव के हो गए थे। इसलिए यहां उसकी पूजा की जाती है।
कैसे बदल गए मामा शकुनी...
कहते हैं रक्तरंजित महाभारत युद्ध से जो ठहराव आया उसके बाद शकुनी ने विदग्ध मन को शांत करने और मोक्ष पाने के लिए भगवान शिव की तपस्या की थी। अपनी तपस्या के लिए उसने जिस स्थान को चुना था, वह स्थान ही आज कोल्लम का पवित्रेश्वरम है।
मंदिर में रखी पत्थर की पूजा करते हैं लोग...
इस मंदिर में एक शिला (पत्थर) है, जिसकी लोग विधिवत पूजा करते हैं। इसके बारे में कहा जाता है कि इस पत्थर का शकुनी ने अपनी साधना के लिए उपयोग किया था। इस मंदिर में शकुनी के अलावा देवी भुवनेश्वरी, भगवान किरातमूर्ति और नागराज भी पूजे जाते हैं।
यदि महाभारत में शकुनि न होते तो...
अनके लोग मानते हैं कि मामा शकुनी भले ही महाभारत युद्ध के लिए सर्वथा जिम्मेदार नहीं हों, लेकिन उन्होंने युद्ध के लिए कौरवों को उकसाया था, जो युद्ध होने का तात्कालिक कारण बना। कहते हैं यदि शकुनि न होते तो शायद महाभारत का युद्ध नहीं होता, तब शायद भारतवर्ष की कहानी कुछ और ही होती।
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