Govinda Dwadashi 2023: हिंदू धर्म में द्वादशी का विशेष महत्व होता है. हर द्वादशी के अलग-अलग लाभ बताए जाते हैं और इस चलते भक्त द्वादशी पर अपने आराध्य की पूजा और आराधना करते हैं. गोविंद द्वादशी व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन मनाया जाता है. इस द्वादशी पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के नरसिंह अवतार की पूजा की जाती है इसीलिए इसे नरसिंह द्वादशी (Narsimha Dwadashi) के नाम से भी जाना जाता है. मान्यतानुसार गोविंद द्वादशी का व्रत रखने पर घर-परिवार को धन-धान्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. साथ ही, संतान प्राप्ति के लिए भी यह व्रत रखा जाता है.
गोविंद द्वादशी का व्रत | Govinda Dwadashi Vrat
हिंदू पंचांग के अनुसार, आने वाले 3 मार्च के दिन गोविंद द्वादशी मनाई जाएगी. द्वादशी तिथि की शुरूआत 3 मार्च रात 9 बजकर 11 मिनट से हो रही है और इसकी समाप्ति अगले दिन यानी 4 मार्च की सुबह 11 बजकर 43 मिनट पर हो जाएगी.
गोविंद द्वादशी का व्रत (Govinda Dwadashi Vrat) अधिकतर दक्षिण भारत में रखा जाता है. इस व्रत के दिन पुरी के जगन्नाथ मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर, तिरुमाला तिरुपति बालाजी मंदिर और वेंकेटेश्वर स्वामी मंदिर में धूमधाम से उत्सव मनाया जाता है.
गोविंद द्वादशी पूजा विधि
सुबह उठकर सबसे पहले निवृत्त होकर स्नान किया जाता है और स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. अब व्रत का संकल्प लेते हैं. इसके पश्चात भगवान नरसिंह (Narsimha) और भगवान विष्णु की प्रतिमा की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की भी पूजा की जा सकती है. पूजा में फल, फूल, तिल, अगरबत्ती और धूप आदि का इस्तेमाल होता है. भक्त द्वादशी पर भगवान विष्णु के मंदिर भी जा सकते हैं.
पूजा के दौरान नरसिंह मंत्रों का जाप करना बेहद शुभ होता है. 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नमः' मंत्र, 'श्रीकृष्णाय नमः, सर्वात्मने नमः' मंत्र और 'ऊँ नमो नारायणाय नमः' मंत्र का जाप कर सकते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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