
Narali Purnima 2025 puja vidhi : श्रावण मास की जिस पूर्णिमा पर देश भर में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, उसी दिन महाराष्ट्र और कोंकण क्षेत्र में समुद्र तट पर नारली पूर्णिमा की विशेष पूजा की जाती है. यह पूजा समुद्र और वरुण देवता को समर्पित होती है. इस दिन समुद्र तट पर रहने वाले मछुआरे आखिर किस कामना से समुद्र और वरुण देवता की पूजा करते हैं और क्या है इसकी पूजा विधि और धार्मिक महत्व, आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
क्यों मनाया जाता है नारली पूर्णिमा का पर्व
हिंदू (Hindu) धर्म में नारली पूर्णिमा की पूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि इस दिन समुद्र तट के किनारे रहने वाले मछुआरे लोग समुद्र देव (Samudra Devta) और वरुण देवता (Varun Devta) की विशेष पूजा करते हैं. उनकी मान्यता है कि नारली पूर्णिमा के दिन इन दोनों ही देवताओं की पूजा करने पर पूरे साल समुद्री क्षेत्र सुरक्षित रहता है और वे सभी प्रकार के संकटों से बचे रहते हैं. सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना लिए इस दिन मछुआरे समुद्र के किनारे विशेष रूप से नारियल (Nariyal) चढ़ाते हैं. यही कारण है कि इसे नारियल पूर्णिमा भी कहते हैं.

नारली पूर्णिमा की पूजा विधि
नारली पूर्णिमा के दिन स्नान-ध्यान करने के बाद समुद्र किनारे जाकर शुभ मुहूर्त में समुद्र देवता की विधि-विधान से पूजा करें. चूंकि पूरे साल नाव के जरिए ही समुद्र में मछली पकड़ने का कार्य संपन्न होता है, इसलिए इस दिन अपनी नाव को साफ करने के बाद सजा कर उसकी भी विशेष पूजा करें. नारली पूजा के दौरान वरुण देवता का ध्यान करते हुए उन्हें नारियल, पुष्प, मिठाई आदि अर्पित करें. नारली पूजा के बाद लोगों को प्रसाद बांटने के बाद स्वयं भी ग्रहण करें.
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नारली पूर्णिमा की पूजा के उपाय
हिंदू मान्यता के अनुसार नारली पूर्णिमा के दिन समुद्र देवता की विशेष पूजा करने पर समुद्र से जुड़े कारोबार में वृद्धि और लाभ होता है. समुद्र देवता के आशीर्वाद से जीवन में आने वाले संकट दूर होते हैं और सुख समृद्धि की प्राप्त होती है. इन सभी कामनाओं को पूरा करने के लिए नारली पूर्णिमा के दिन नारियल चढ़ाने के साथ-साथ जल, स मुद्र और वर्षा के देवता वरुण देवता के मंत्र 'ॐ वरुणाय नमः' का विशेष रूप से जप करना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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