Masik Shivratri 2021: मासिक शिवरात्रि पर करें पार्वती वल्लभाष्टकम् का पाठ, दूर हो सकती हैं वैवाहिक समस्या

Masik Shivratri Dec 2021: हर माह आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है. इस बार मासिक शिवरात्रि और प्रदोष व्रत दोनों का पूजन एक ही दिन होने का विशिष्ट संयोग बन रहा है. इस दिन शिव-पार्वती के पूजन में पार्वती वल्लभाष्टकम् का पाठ करना शुभ माना जाता है.

Masik Shivratri 2021: मासिक शिवरात्रि पर करें पार्वती वल्लभाष्टकम् का पाठ, दूर हो सकती हैं वैवाहिक समस्या

Masik Shivratri 2021: वैवाहिक समस्यायों को दूर करने के लिए पार्वती वल्लभाष्टकम् का करें पाठ

नई दिल्ली:

मार्गशीर्ष माह (Margashirsh Month) में प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि एक ही दिन पड़ रही है. इस साल मार्गशीर्ष मास की मासिक शिवरात्रि 2 दिसंबर गुरुवार यानि आज पड़ रही है. शिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का सबसे महान त्योहार है. मासिक यानी माह या महीना और शिवरात्रि का मतलब 'भगवान शिव की रात', यानी हर माह की कृष्ण चतुर्दशी शिव की रात होती है. मान्यता है कि जो भक्त भोलेशंकर के ये व्रत रखते हैं, भगवान उनसे शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इतना ही नहीं, भक्तों को संकट से मुक्ति मिलती है. मान्याता है कि इस दिन शिव पार्वती का विधि पूर्वक व्रत रखने और वल्लभाष्टकम् का पाठ कर पूजन करने से सभी पारिवारिक दुख दूर हो जाते हैं. इसके साथ ही वैवाहिक जीवन में आने वाली सभी समस्याओं का भी अंत होता है.

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पार्वती वल्लभ अष्टकम् का पाठ

नमो भूथ नाधम नमो देव देवं,

नाम कला कालं नमो दिव्य थेजं,

नाम काम असमं, नाम संथ शीलं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

सदा थीर्थ सिधं, साध भक्था पक्षं,

सदा शिव पूज्यं, सदा शूर बस्मं,

सदा ध्यान युक्थं, सदा ज्ञान दल्पं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

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स्मसानं भयनं महा स्थान वासं,

सरीरं गजानां सदा चर्म वेष्टं,

पिसचं निसेस समा पशूनां प्रथिष्टं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

फनि नाग कन्दे, भ्जुअन्गःद अनेकं,

गले रुण्ड मलं, महा वीर सूरं,

कादि व्यग्र सर्मं., चिथ बसम लेपं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

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सिराद शुद्ध गङ्गा, श्हिवा वाम भागं,

वियद दीर्ग केसम सदा मां त्रिनेथ्रं,

फणी नाग कर्णं सदा बल चन्द्रं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

करे सूल धरं महा कष्ट नासं,

सुरेशं वरेसं महेसं जनेसं,

थाने चारु ईशं, द्वजेसम्, गिरीसं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

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उधसं सुधासम, सुकैलस वासं,

दर निर्ध्रं सस्म्सिधि थं ह्यथि देवं,

अज हेम कल्पध्रुम कल्प सेव्यं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

मुनेनं वरेण्यं, गुणं रूप वर्णं,

ड्विज संपदस्थं शिवं वेद सस्थ्रं,

अहो धीन वत्सं कृपालुं शिवं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

सदा भव नाधम, सदा सेव्य मानं,

सदा भक्थि देवं, सदा पूज्यमानं,

मया थीर्थ वासं, सदा सेव्यमेखं,

भजे पर्वथि वल्लभं नीलकन्दं।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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