फाइल फोटो
देश के विभिन्न हिस्सों में मकर संक्राति पर्व आज भी मनाया जा रहा है। बिहार में चूड़ा-दही और तिलवा-लाई तथा उत्तर प्रदेश खिचड़ी के नाम से लोकप्रिय यह पर्व अधिकांश लोगों द्वारा पूरी श्रद्धा, विश्वास और उमंग से आज ही मनाया जा रहा है। श्रद्धालुजन नदियों और सरोवरों में डुबकियां लगा रहे हैं।
भारत में पर्व और त्योहारों की तिथियां चंद्र पंचांग यानी चंद्रमा की गति और उसकी कलाओं पर आधारित हैं। इस पंचांग में तिथि वृद्धि और तिथि क्षय होने के कारण पर्वों और त्योहारों, जैसे- महाशिवरात्रि, होली, जन्माष्टमी, नवरात्र, दीपावाली आदि की तिथियां अंग्रेजी कैलेण्डर की तिथियों से मेल नहीं खाती हैं। मकर संक्रांति पर्व प्राय: इसका अपवाद रहा है।
यह पर्व प्राय: हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता रहा है, क्योंकि भारतीय पर्वों में मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है। लेकिन वर्ष 2016 में यह पर्व 14 जनवरी की बजाय 15 जनवरी को भी मनायी जा रही है।
इसलिए कहते हैं इसे मकर संक्राति
हिन्दू पंचांग के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो यह घटना संक्रमण या संक्राति कहलाती है। संक्राति का नामकरण उस राशि से होता है, जिस राशि में सूर्य प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
पंचांग के अनुसार वर्ष 2016 में सूर्य 14 जनवरी को आधी रात के बाद 1 बजकर 26 मिनट पर मकर राशि में प्रविष्ट हुआ। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति में पुण्यकाल का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में होता है, तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है।
कहीं उत्तरायण, कहीं संक्रांति, कहीं पोंगल
पंचांग के अनुसार वर्ष 2016 में मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। पुण्यकाल के स्थानांतरण के कारण ही वर्ष 2016 में मकर संक्रांति का महत्व 15 जनवरी को भी है। यही कारण है कि इस वर्ष यह पर्व दोनों दिन यानी 14 और 15 जनवरी को मनाया गया।
उल्लेखनीय है कि मकर संक्राति को देश के भिन्न-भिन्न स्थानों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल में जहां यह केवल संक्रांति कहलाता है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खिचड़ी पर्व के रुप में लोकप्रिय है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रुप में मनाया जाता है, जबकि अनेक स्थानों पर इसे उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है।
भारत में पर्व और त्योहारों की तिथियां चंद्र पंचांग यानी चंद्रमा की गति और उसकी कलाओं पर आधारित हैं। इस पंचांग में तिथि वृद्धि और तिथि क्षय होने के कारण पर्वों और त्योहारों, जैसे- महाशिवरात्रि, होली, जन्माष्टमी, नवरात्र, दीपावाली आदि की तिथियां अंग्रेजी कैलेण्डर की तिथियों से मेल नहीं खाती हैं। मकर संक्रांति पर्व प्राय: इसका अपवाद रहा है।
यह पर्व प्राय: हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता रहा है, क्योंकि भारतीय पर्वों में मकर संक्रांति एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है। लेकिन वर्ष 2016 में यह पर्व 14 जनवरी की बजाय 15 जनवरी को भी मनायी जा रही है।
इसलिए कहते हैं इसे मकर संक्राति
हिन्दू पंचांग के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो यह घटना संक्रमण या संक्राति कहलाती है। संक्राति का नामकरण उस राशि से होता है, जिस राशि में सूर्य प्रवेश करता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
पंचांग के अनुसार वर्ष 2016 में सूर्य 14 जनवरी को आधी रात के बाद 1 बजकर 26 मिनट पर मकर राशि में प्रविष्ट हुआ। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार मकर संक्रांति में पुण्यकाल का विशेष महत्व है। मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में होता है, तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है।
कहीं उत्तरायण, कहीं संक्रांति, कहीं पोंगल
पंचांग के अनुसार वर्ष 2016 में मकर संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। पुण्यकाल के स्थानांतरण के कारण ही वर्ष 2016 में मकर संक्रांति का महत्व 15 जनवरी को भी है। यही कारण है कि इस वर्ष यह पर्व दोनों दिन यानी 14 और 15 जनवरी को मनाया गया।
उल्लेखनीय है कि मकर संक्राति को देश के भिन्न-भिन्न स्थानों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल में जहां यह केवल संक्रांति कहलाता है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खिचड़ी पर्व के रुप में लोकप्रिय है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रुप में मनाया जाता है, जबकि अनेक स्थानों पर इसे उत्तरायण पर्व भी कहा जाता है।
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