मकर संक्रांति हिंदुओं के बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है. आज मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व देशभर में अलग-अलग तरीके और अलग-अलग नामों से मनाया जा रहा है. कहते हैं कि आज मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि (Surya Enters In Makar Rashi) में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस बार मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी यानि आज मनाया जा रहा है. बता दें कि सूर्य 30 दिन में राशि बदलते हैं और 6 महीने में उत्तरायण-दक्षिणायन होते हैं. भारत में जितने तरह के पर्व मनाए जाते हैं, उतने ही तरह के व्यजंन का भी चलन है जैसे- होली पर गुजिया, दीवाली पर पेड़े. ठीक उसी तरह मकर संक्रांति के दिन तिल के लड्डू और खिचड़ी खाने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है इसके पीछे की वजह क्या है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं मकर संक्रांति पर काले तिल के लड्डू और खिचड़ी खाने की परंपरा की वजह.
शनि और सूर्य से है कनेक्शन
बता दें कि मकर संक्रांति पर तिल से पूजा और तिल के प्रसाद को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. श्रीमद्भागवत व देवी श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के अनुसार, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था. इसके पीछे की वजह कारण बताया जाता है कि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था, जिससे नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था. ऐसे में शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग होने का श्राप दिया था.
पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य देव ने अपने बेटे शनि देव (Shani Dev) का घर कुंभ क्रोध में जला दिया था. बता दें कि कुंभ राशि के स्वामी शनि हैं और इस राशि को ही उनका घर माना जाता है. सूर्य देव द्वारा घर जलाये जाने के बाद जब वे वहां पहुंचे तो काले तिल के अलावा सब कुछ जलकर राख हो चुका था. कहा जाता है कि तब शनि देव ने उन्हीं तिल से सूर्य देव का स्वागत किया था. शनि देव के व्यवहार को देखकर सूर्य देव प्रसन्न हो गए, जिसके बाद उन्होंने खुश होकर शनि देव को एक और घर के रूप में मकर रहने के लिए दिया था. सूर्य देव ने शनि देव को यह भी वरदान दिया कि जब भी सूर्य मकर राशि (Makar Rashi) में प्रवेश करेंगे, तो मकर संक्रांति मनाई जाएगी. इसके साथ ही इस दिन काले तिल सूर्य देव को अर्पित करने से व्यक्ति को सूर्य और शनि देव दोनों की कृपा प्राप्त होगी.
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की मान्यता | Recognition Of Eating Khichdi On Makar Sankranti
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने की परंपरा के पीछे देवों के देव महादेव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी प्रचलित है. बताया जाता है कि खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण खाने बनाने का समय नहीं मिल पाता था, जिसके कारण कई बार योगी भूखे रह जाते थे और धीरे-धीरे कमजोर होते जा रहे थे. इस स्थिति से निकलने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. उनकी सलाह के बाद बनाया गया भोजन झटपट बन गया, जो खाने में काफी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पौष्टिक था. नाथ योगियों को भी ये भोजन बेहद पसंद आया, जिसके बाद बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रख दिया. बता दें कि गोरखपुर स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला लग जाता है. यह मेला कई दिनों तक चलता है. इस मेले में सबसे पहले बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. इसके बाद प्रसाद के तौर पर इसे बांट दिया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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