माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ सप्तमी मनाई जाती है. इसे अचला सप्तमी (Achala Saptami) या सूर्य जयंती (Surya Jayanti ) भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव का जन्म माघ शुक्ल सप्तमी को हुआ था, इसलिए इसे सूर्य जयंती भी कहते हैं. कहते हैं इस तिथि को ही सूर्य देव अपने सात घोड़े वाले रथ पर सवार होकर प्रकट हुए थे. सनातन शास्त्रों में निहित है कि रथ सप्तमी के दिन से सूर्यदेव ने समस्त जगत को आलोकित करना प्रारंभ किया था. मत्स्य पुराण के अनुसार, यह व्रत पूरी तरह से सूर्य देव को समर्पित है. माना जाता है कि इस दिन स्नान, दान और पूजा का कई हजार गुना फल मिलता है.
सूर्य देव या आदिदेव का संबंध सप्तमी तिथि से है. माघ मास में, जब शुक्ल पक्ष की सप्तमी आती है, तो इसे रथ सप्तमी या माघ सप्तमी के नाम से जाना जाता है. इस साल यह व्रत 7 फरवरी यानि आज रखा जा रहा है. रथ सप्तमी को अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है. मान्यता है कि रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय के समय पवित्र नदी या कुंड में स्नान करने से बीमारियों से मुक्ति मिलती है. आइए जानते हैं रथ सप्तमी का महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
रथ सप्तमी तिथि और पूजा मुहूर्त | Ratha Saptami Tithi And Puja Muhurat
सप्तमी तिथि प्रारंभ- 7, फरवरी, सोमवार, दोपहर 4:37 से,
सप्तमी तिथि समाप्त- 8 फरवरी, मंगलवार, प्रातः 6:15 तक.
अर्घ्यदान के लिए सूर्योदय का समय- प्रातः 7:05 मिनट.
उदयातिथि के आधार पर रथ सप्तमी 07 फरवरी को है. इस दिन ही सूर्य जयंती या अचला सप्तमी मनाई जाएगी. माघ माह में होने के कारण इसे माघ सप्तमी भी कहते हैं.
रथ सप्तमी का पंचांग | Ratha Saptami Panchang
सूर्योदय- 07:06 बजे.
सूर्यास्त- शाम 06:05 बजे.
शुभ योग- शाम 04:44 बजे तक.
रवि योग- प्रात: 07:06 बजे से शाम 06:59 बजे तक.
शुभ मुहूर्त- दोपहर 12:13 बजे से दोपहर 12:57 बजे तक.
रथ सप्तमी का महत्व | Rath Saptami Importance
रथ सप्तमी का दिन भगवान सूर्य के जन्म उत्सव के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन सभी पापों और दुखों से मुक्ति मिल सकती है. कहते हैं कि जयंती के दिन सभी देवी और देवता प्रसन्न होते हैं, वे अपने भक्तों को निराश नहीं करते हैं. रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य के नाम से दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है. कहते हैं कि मनुष्य अपने जीवन में सात प्रकार के पाप करता है, जो जानबूझकर, जाने-अनजाने, मुंह के वचन से, शारीरिक क्रिया द्वारा, मन में, प्रचलित जन्म और पिछले जन्मों में किए गए पाप हैं. मान्यता है कि रथ सप्तमी के दिन भगवान सूर्य देव का विधि-विधान से पूजन करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
रथ सप्तमी की पूजा विधि | Rath Saptami Puja Vidhi
- प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम पूर्व की दिशा में होकर सूर्य देव को नमस्कार करें.
- स्नानादि से निवृत होकर हाथ में जल लेकर आमचन कर खुद को पवित्र करें.
- लाल रंग का वस्त्र धारण कर नमस्कार करते हुए सूर्यदेव को जल का अर्घ्य का दें.
- संभव हो तो सूर्यदेव को गंगाजल से अर्घ्य दें. जल में लाल रंग, तिल, दूर्वा, चंदन और अक्षत मिलाकर अर्घ्य दें.
- अर्घ्य देते समय सूर्यदेव के अलग-अलग नामों का स्मरण करें. सूर्य देव के भिन्न नामों का कम से कम 12 बार जाप करें.
- सूर्य को अर्घ्य देने के बाद मिट्टी के दीए लें और उन्हें घी से भर दें और प्रज्ज्वलित करें.
- शुद्ध घी के दीप जलाकर ऊँ घृणि सूर्याय नम:, ऊँ सूर्याय नम: मंत्र जापकर सूर्य देव का आह्वान करें.
- इस अवसर पर गायत्री मंत्र का जाप, सूर्य सहस्त्रनाम मंत्र का भी जाप करें.
- भगवान श्री हरि विष्णु जी की पूजा पीले पुष्प, पीले फल, मिष्ठान, धूप-दीप, दूर्वा, अक्षत आदि चीजों से विधिवत करें.
- अंत में आरती अर्चना कर पूजा संपन्न करें.
- रथ सप्तमी के दिन दान का भी विधान है. संभव हो तो इस दिन वस्त्र, भोजन आदि चीजों का दान करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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