
Kawad yatra significance : इस साल कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू हो रही है. कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन, पर्यावरण प्रेम और स्वास्थ्य से जुड़ी एक वैज्ञानिक रीति भी है. यह शिव भक्ति के साथ-साथ जीवन अनुशासन और सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण है. कांवड़ यात्रा में भक्तजन (कांवड़िए) गंगा नदी या अन्य पवित्र जल स्रोतों से गंगाजल लेकर उसे शिवलिंग पर चढ़ाते हैं. ये जल भगवान शिव के जाग्रत रूप में अर्पित किया जाता है. इस धार्मिक यात्रा को लेकर यात्रा समुद्र मंथन से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है. दरअसल, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला, तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उसे पेय रूप में धारण किया. विष के प्रभाव को शांत करने हेतु देवताओं और भक्तों ने उन्हें गंगाजल अर्पित किया.
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क्या है कांवड़ यात्रा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
इसी परंपरा को स्मरण करते हुए सावन मास में शिव को जल चढ़ाया जाता है. सावन मास को भगवान शिव का प्रिय मास माना जाता है. इसी माह में सोमवार व्रत, रुद्राभिषेक, और कांवड़ यात्रा विशेष रूप से की जाती है. इस मास में वातावरण शुद्ध, ठंडा व हरियाली युक्त होता है, जिससे शरीर यात्रा के लिए उपयुक्त रहता है. यात्रा में नंगे पांव चलना, व्यायाम के समान है, जो शरीर के एक्यूप्रेशर बिंदुओं को सक्रिय करता है.
गंगाजल में औषधीय गुण होते हैं, इसे पैदल ले जाना शरीर संतुलन अभ्यास है. यह यात्रा मानसिक एकाग्रता, संयम, धैर्य और भक्ति की भावना को बढ़ाती है. सामूहिक यात्रा से सामाजिक एकता और सहिष्णुता का भाव जागता है. नियम विवरण वाहन नहीं परंपरागत रूप से पैदल चलकर जल लाना, शुद्ध आचरण, ब्रह्मचर्य, सात्विक भोजन, मौन या भक्ति में लीन रहना, "ॐ नमः शिवाय" का जप करते हुए यात्रा करना, गंगाजल जल पात्र को कांवड़ पर झुलाते हुए लाना, सीधे शिवलिंग पर अर्पित करना, ये सब आपके अंदर एकजुटता, सामाजिक एकता, धैर्य और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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