ओडिशा के पुरी में आज से सालाना रथ यात्रा (Rath Yatra) का कार्यक्रम शुरू हो चुका है. यूनेस्को द्वारा पुरी के एक हिस्सों को वर्ल्ड हेरिटेज यानी कि वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किए जाने के बाद से यह दूसरी रथ यात्रा है. आपको बता दें कि भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath RathYatra) आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी (Jagannath Puri) से शुरू होती है. इस भव्य यात्रा में शामिल होने के लिए यहां दूर-दूर से लोग आते हैं और रथ खींचकर पुण्य कमाते हैं. आपको बता दें कि रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, जिनमें विष्णु, कृष्ण, वामन और बुद्ध भी शामिल हैं. रथ यात्रा (Rath-Yatra) शुरू होने से पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) समेत कई नेताओं ने रथ यात्रा की शुभकामनाएं दीं.
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रथ यात्रा के शुभ अवसर पर सभी देशवासियों को बधाई और शुभकामनाएँ। मैं कामना करता हूँ कि भगवान जगन्नाथ के आशीर्वाद से सभी के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आए – राष्ट्रपति कोविन्द
— President of India (@rashtrapatibhvn) July 4, 2019
Best wishes to everyone on the special occasion of the Rath Yatra.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 4, 2019
We pray to Lord Jagannath and seek his blessings for the good health, happiness and prosperity of everyone.
Jai Jagannath. pic.twitter.com/l9v36YlUQ5
रथ यात्रा क्या है?
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भगवान बालभद्र और देवी सुभद्रा अपने घर यानी कि जगन्नाथ मंदिर से रथ में बैठकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है.
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रथ यात्रा में क्या होता है?
भगवान जगन्नाथ के रथ के सामने सोने के हत्थे वाले झाड़ू को लगाकर रथ यात्रा को आरंभ किया जाता है. उसके बाद पारंपरिक वाद्य यंत्रों की थाप के बीच तीन विशाल रथों को सैंकड़ों लोग खींचते हैं. इस क्रम में सबसे पहले बालभद्र का रथ प्रस्थान करता है. उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ चलता है. फिर आखिर में भगवान जगन्नाथ का रथ खींचा जाता है.
मान्यता है कि रथ खींचने वाले लोगों के सभी दुख दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है. नगर भ्रमण करते हुए शाम को ये तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंच जाते हैं. अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में प्रवेश करते हैं और सात दिन वहीं रहते हैं.
जब अपनी मौसी के घर पहुंचते हैं भगवान जगन्नाथ
गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है. रथ यात्रा के दौरान साल में एक बार भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहनों के साथ जगन्नाथ मंदिर से इसी गुंडिचा मंदिर में रहने के लिए आते हैं. अपनी मौसी के घर में भगवान एक हफ्ते तक ठहरते हैं, जहां उनका खूब आदर-सत्कार होता है. उन्हें कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों और फल-फूलों का भोग लगाया जाता है.
अच्छे-अच्छे पकवान खाकर भगवान बीमार हो जाते हैं. फिर उन्हें पथ्य का भोग लगाया जाता है और वह जल्दी ठीक हो जाते हैं. गुंडिचा मंदिर में इन नौ दिनों में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को आड़प-दर्शन कहा जाता है. जगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है. इन दिनों विशेष रूप से नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुए का प्रसाद मिलता है. फिर दिन पूरे होने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने घर यानी कि जगन्नाथ मंदिर वापस चले जाते हैं.
गौरतलब है कि भारत में जिस तरह होली, दीपावली, रक्षाबंधन, बैसाखी, ईद और क्रिसमस का महत्व है उसी तरह पुरी की रथ यात्रा भी बेहद महत्वपूर्ण है. इस पर्व को अटूट, श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. पुरी के अलावा भी देश के अलग-अलग शहरों में भी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है.
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