प्रतीकात्मक चित्र
वॉशिंगटन:
अमेरिका में भारतीय मूल के एक अमेरिकी सिख सैन्य अधिकारी को ड्यूटी के दौरान दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने की इजाजत दे दी गई है। वेबसाइट 'डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू डॉट एनवायडेलीन्यूज डॉट कॉम' की रपट के मुताबिक, कैप्टन सिमरतपाल सिंह पहले ऐसे जवान हैं, जिन्हें अमेरिकी सेना ने ड्यूटी के दौरान दाढ़ी रखने और पगड़ी पहनने की स्थायी तौर पर इजाजत देने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता अधिकारों और एकरूपता और कड़े सुरक्षा मानकों की जरूरत के सेना के कथन के बीच चल रही लड़ाई समाप्त हो गई।
'एनवायडेलीन्यूज डॉट कॉम' की रपट के मुताबिक, सिंह ने कहा, "मैं अपने देश की उसी प्रकार सेवा कर सकता हूं, जैसे मैं चाहता हूं और इसी के साथ मैं उसी प्रकार सिख होने का धर्म भी निभा सकता हूं जैसे मैं चाहता हूं।"
सिंह (28) जब 2006 में 'वेस्ट पॉइंट' सैन्य अकादमी में शामिल हुए थे, तब उन्हें अपने बाल कटवाने पड़ते थे और उन्हें दाढ़ी रखने की इजाजत भी नहीं थी।
सिंह ने कहा, "यह अत्यंत कष्टदायी है। अपनी जिंदगी के 18 साल तक आपकी अपनी एक छवि होती है और अचानक 10 मिनट में ही यह टूट जाती है।"
सिंह अब एक आर्मी रेंजर बन चुके हैं और वह 'ब्रॉन्ज स्टार मेडल' विजेता हैं। उन्होंने 10 वर्षो बाद अपनी पुरानी छवि पाने के लिए अक्टूबर में अमेरिकी सेना से पगड़ी और दाढ़ी रखने की इजाजत मांगी। भेदभाव के मुकदमे के बाद सेना ने उन्हें दिसम्बर में स्थायी तौर पर इसकी इजाजत दे दी थी।
फरवरी में स्थायी इजाजत की अवधि समाप्त होने पर सेना ने कैप्टन सिंह को यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक परीक्षण से गुजरने को कहा था कि उनकी दाढ़ी और बाल के कारण उनके हेलमेट और गैस मास्क पहनने में कोई परेशानी नहीं होगी।
सिंह ने धार्मिक भेदभाव का हवाला देते हुए मुकदमा दायर किया था। एक न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि सेना सिंह पर व्यक्तिगत परीक्षण का दबाव नहीं डाल सकती। फैसले में सेना को उनके आग्रह पर 31 मार्च तक फैसला लेने को भी कहा गया। अदालत के एक फैसले में गुरुवार को सिंह को आखिरकार इसकी स्थायी इजाजत दे दी गई।
सेना में जनशक्ति और रिजर्व मामलों की सहायक सचिव डबरा एस. वाडा ने शुक्रवार को कैप्टन को लिखे एक ज्ञापन में कहा, "सही न्याय और अनुशासन बनाए रखने की सेना की प्रबल इच्छा के कारण सेना धार्मिक नियमों में बंधे जवानों के लिए स्पष्ट और समान मानक लागू करना चाहती है। जब तक वे मानक तय नहीं होते, कैप्टन सिंह से अपेक्षा की जाती है कि वह 'साफ और पारंपरिक' तरीके से काली या छद्म पगड़ी में रहेंगे।"
पंजाब में पले-बढ़े सिंह के पिता को अमेरिका में राजनीतिक शरण मिलने के बाद वह नौ साल की उम्र में अपने पिता के साथ अमेरिका चले गए थे। उनके दादाजी उन्हें अक्सर प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना में एक जवान के तौर पर युद्ध के किस्से सुनाया करते थे। इस कारण उनमें सेना में शामिल होने का जुनून पैदा हो गया था।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
इस फैसले के बाद व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता अधिकारों और एकरूपता और कड़े सुरक्षा मानकों की जरूरत के सेना के कथन के बीच चल रही लड़ाई समाप्त हो गई।
'एनवायडेलीन्यूज डॉट कॉम' की रपट के मुताबिक, सिंह ने कहा, "मैं अपने देश की उसी प्रकार सेवा कर सकता हूं, जैसे मैं चाहता हूं और इसी के साथ मैं उसी प्रकार सिख होने का धर्म भी निभा सकता हूं जैसे मैं चाहता हूं।"
सिंह (28) जब 2006 में 'वेस्ट पॉइंट' सैन्य अकादमी में शामिल हुए थे, तब उन्हें अपने बाल कटवाने पड़ते थे और उन्हें दाढ़ी रखने की इजाजत भी नहीं थी।
सिंह ने कहा, "यह अत्यंत कष्टदायी है। अपनी जिंदगी के 18 साल तक आपकी अपनी एक छवि होती है और अचानक 10 मिनट में ही यह टूट जाती है।"
सिंह अब एक आर्मी रेंजर बन चुके हैं और वह 'ब्रॉन्ज स्टार मेडल' विजेता हैं। उन्होंने 10 वर्षो बाद अपनी पुरानी छवि पाने के लिए अक्टूबर में अमेरिकी सेना से पगड़ी और दाढ़ी रखने की इजाजत मांगी। भेदभाव के मुकदमे के बाद सेना ने उन्हें दिसम्बर में स्थायी तौर पर इसकी इजाजत दे दी थी।
फरवरी में स्थायी इजाजत की अवधि समाप्त होने पर सेना ने कैप्टन सिंह को यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक परीक्षण से गुजरने को कहा था कि उनकी दाढ़ी और बाल के कारण उनके हेलमेट और गैस मास्क पहनने में कोई परेशानी नहीं होगी।
सिंह ने धार्मिक भेदभाव का हवाला देते हुए मुकदमा दायर किया था। एक न्यायाधीश ने फैसले में कहा कि सेना सिंह पर व्यक्तिगत परीक्षण का दबाव नहीं डाल सकती। फैसले में सेना को उनके आग्रह पर 31 मार्च तक फैसला लेने को भी कहा गया। अदालत के एक फैसले में गुरुवार को सिंह को आखिरकार इसकी स्थायी इजाजत दे दी गई।
सेना में जनशक्ति और रिजर्व मामलों की सहायक सचिव डबरा एस. वाडा ने शुक्रवार को कैप्टन को लिखे एक ज्ञापन में कहा, "सही न्याय और अनुशासन बनाए रखने की सेना की प्रबल इच्छा के कारण सेना धार्मिक नियमों में बंधे जवानों के लिए स्पष्ट और समान मानक लागू करना चाहती है। जब तक वे मानक तय नहीं होते, कैप्टन सिंह से अपेक्षा की जाती है कि वह 'साफ और पारंपरिक' तरीके से काली या छद्म पगड़ी में रहेंगे।"
पंजाब में पले-बढ़े सिंह के पिता को अमेरिका में राजनीतिक शरण मिलने के बाद वह नौ साल की उम्र में अपने पिता के साथ अमेरिका चले गए थे। उनके दादाजी उन्हें अक्सर प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सेना में एक जवान के तौर पर युद्ध के किस्से सुनाया करते थे। इस कारण उनमें सेना में शामिल होने का जुनून पैदा हो गया था।
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)