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This Article is From Jan 26, 2022

पवित्र माघ मास में घर बैठे करें बाबा महाकाल के दर्शन, देखें उज्जैन के 'राजा' की अद्भुत तस्वीरें

देश भर में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं, उनमें से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल के रूप में विराजमान है. ये दुनिया का इकलौता ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है. माना जाता है कि दक्षिण दिशा मृत्यु यानी काल की दिशा है और काल को वश में करने वाले महाकाल हैं.

पवित्र माघ मास में घर बैठे करें बाबा महाकाल के दर्शन, देखें उज्जैन के 'राजा' की अद्भुत तस्वीरें
घर बैठे करें महाकाल के दर्शन, देखें बाबा की अनोखी तस्वीरें
नई दिल्ली:

देश-दुनिया में यूं तो भगवान शिव के अनेक मंदिर हैं, लेकिन देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में 'महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग' की इस नगरी का अपना एक अलग महत्व है, क्योंकि यहां बाबा महाकाल को तांत्रिक क्रिया अनुसार, दक्षिण मुखी पूजा प्राप्त है और विश्व भर में बाबा ही दक्षिण मुख में विराजमान है. विश्व प्रसिद्ध ज्योतिलिंग धार्मिक नगरी, जिसे हर कोई अलग-अलग नामों से भी जानता है. इसे अवंतिका, अवंतिकापुरी, कनकश्रन्गा, उज्जैनी जैसे और भी कई नाम पुराणों में दिए गए है. आज हम आपको देवों के देव महादेव भगवान शिव की नगरी कही जाने वाली अवंतिका नगरी यानि उज्जैन के बारे में कुछ खास बताने जा रहे हैं, जिनमें से कई बातें शायद आपमें से कई लोग जानते भी नहीं होंगे.

भगवान शिव को समर्पित महाकाल मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है. श्रद्धा और आस्था से भरपूर ये जगह शहर शिव नगरी के नाम से भी जानी जाती है. वहीं, उज्जयिनी और अवन्तिका नाम से भी यह नगरी प्राचीनकाल में जानी जाती थी. 'उज्जयिनी' का अर्थ होता है एक गौरवशाली विजेता. स्कन्दपुराण के अवन्तिखंड में अवन्ति प्रदेश का महात्म्य वर्णित है. सालभर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है. दुनियाभर से यहां लोग ज्योंतिर्लिंग के दर्शन के लिए आया करते हैं. शिप्रा नदी के किनारे बसे और मंदिरों से सजी इस नगरी को सदियों से महाकाल की नगरी के तौर पर जाना जाता है.

उज्जैन धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है, जो मुख्य रूप से अपने प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों के लिए देशभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है. महाकाल मंदिर का अधिक महत्व इसलिए भी है, क्योंकि यहां ही तड़के चार बजे भस्म आरती करने का विधान है. भस्मार्ती को मंगला आरती नाम भी दिया गया है. यह प्रचलित मान्यता थी कि श्मशान कि ताजी चिता की भस्म से ही भस्म आरती की जाती थी. मान्यता है कि महाकाल राजा के होते हुए कोई राजा यहां रात नहीं रुक सकता.

मध्य प्रदेश का उज्जैन एक प्राचीनतम शहर है, जो शिप्रा नदी के किनारे स्थित है और शिवरात्रि, कुंभ और अर्ध कुंभ जैसे प्रमुख मेलों के लिए प्रसिद्ध है. उज्जैन के अंगारेश्वर मंदिर को मंगल गृह का जन्मस्थान माना जाता है. कहा जाता है कि यहीं से कर्क रेखा भी गुजरती है. बता दें कि शिव जी के बारह ज्योंतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर मंदिर में मौजूद है. यहां आने वाले भक्तों को दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं.

देश भर में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग हैं, उनमें से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल के रूप में विराजमान है. ये दुनिया का इकलौता ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है. दक्षिण दिशा का स्वामी भगवान यमराज को माना जाता है. कहते हैं कि दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही जीवन स्वर्ग तो बनता ही है, मृत्यु के उपरांत भी यमराज के दंड से मुक्ति पाता है. माना जाता है कि दक्षिण दिशा मृत्यु यानी काल की दिशा है और काल को वश में करने वाले महाकाल हैं. बता दें कि महाकालेश्वर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जहां कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर हैं.

कहते हैं कि बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकाल मंदिर के गर्भ में कई रहस्य छिपे हैं. बताया जाता है कि भगवान शिव को भस्म धारण करते हुए केवल पुरुष ही देखते है. महाकाल मंदिर में सभी हिन्दू त्योहारों को सबसे पहले बनाने की परम्परा है. विश्व भर में भगवन शिव के विवाह उत्सव से पूर्व नौ दिन बाबा का अलग-अलग रूप में श्रृंगार किया जाता है, जिसको शिवनवरात्र कहा जाता है. महाकाल मंदिर में सामान्यतह चार आरती होती है, जिसमें शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं.

मान्यता है की उज्जैन शहर में एक ही राजा हो सकता है और वो राजा महाकाल हैं. यहां कोई दूसरा राजा रात नहीं रुक सकता, क्योंकि उनसे बड़ा इस श्रष्टि में कोई नहीं तो आम आदमी की बिसात ही क्या. कहते हैं अगर कोई राजनेता यहां रुकेगा तो उसकी सत्ता चली जाती है. मान्यता है कि अगर रात गुजराना ही पड़े तो शहर से 15 किमी बाहर रात गुजार सकते है.

वहीं मान्यता यह भी है कि बारह साल में एक बार लगने वाला सिह्स्थ का मेला जो भी सरकार के कार्यकाल में होता है, वो सरकार अगले चुनाव में हार जाती है. कहते हैं कि हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में समुद्र मंथन के दौरान अमृत की बूंदे गिरी थी, जिसके बाद से ही सभी जगह कुम्भ का मेला भरता है, लेकिन उज्जैन में इस मेले का नाम सिंहस्थ है. इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि उज्जैन में बारह साल में लगने वाले इस मेले का आयोजन सिंह राशि में होता है, इसलिए इसे सिंहस्थ और बाकी तीनों जगह कुम्भ राशि में होता है, इसीलिए उन्हें कुम्भ का मेला कहा जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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