महावीर जयंती: जैन समुदाय के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर
नई दिल्ली:
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर या वर्धमान महावीर की जयंती हर साल दुनिया भर में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. अहिंसा, त्याग और तपस्या का संदेश देने वाले महावीर की जयंती ग्रीगोरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है. वहीं, हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के 13वें दिन महावीर ने जन्म लिया था. जैन धर्म के अनुयायियों के लिए महावीर जयंती का विशेष महत्व है. यह उनके प्रमुख त्योहारों में से एक है. न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी जैन समुदाय का विस्तार है और सभी लोग साल भर इस दिन का इंतजार करते हैं. इस बार यह त्योहार 29 मार्च को मनाया जाएगा.
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कौन हैं वर्धमान महावीर?
महावीर के जन्मदिवस को लेकर मतभेद है. श्वेतांबर जैनियों का मानना है कि उनका जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था, वहीं दिगंबर जैनियों का मत है कि उनके आराध्य 615 ईसा पूर्व में प्रकट हुए थे. जैन मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म बिहार के कुंडलपुर के शाही परिवार में हुआ था. बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था. माना जाता है कि वे बचपन से ही साहसी, तेजस्वी और अत्यंत बलशाली थे और इस वजह से लोग उन्हें महावीर कहने लगे. उन्होंने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, इसलिए इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है. महावीर की माता का नाम 'त्रिशला देवी' और पिता का नाम 'सिद्धार्थ' था. महावीर ने कलिंग के राजा की बेटी यशोदा से शादी भी की लेकिन 30 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया.
जानिए जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के बारे में ये बातें
कठोर तपस्या
दीक्षा लेने के बाद महावीर ने साढ़े 12 सालों तक कठोर तपस्या की. फिर वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी. यह महावीर की श्रद्धा, भक्ति और तपस्या का ही परिणाम था कि वह जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित करने में सफल हो पाए. यही वजह है कि जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है.
भगवान महावीर स्वामी के 10 अनमोल विचार
निर्वाण
अहिंसा, त्याग और तपस्या की साक्षात मूर्ति भगवान महावीर ने कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त किया.
महावीर स्वामी के सिद्धांत
महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का है. उन्होंने अपने प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है. इन सबमें अहिंसा की भावना सम्मिलित है. यही वजह है कि जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश यही होता है- 'अहिंसा ही परम धर्म है. अहिंसा ही परम ब्रह्म है. अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है. अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है. यही मानव का सच्चा धर्म है. यही मानव का सच्चा कर्म है.'
कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती?
महावीर जयंती को महावीर स्वामी जन्म कल्याणक के नाम से भी जाना जाता है. जैन समुदाय का यह सबसे प्रमुख पर्व है. महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है. इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है. इस यात्रा में जैन धर्म के अनुयायी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं. भारत में गुजरात और राजस्थान में जैन धर्म को मानने वालों की तादाद अच्छी खासी है. यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है और विशेष आयोजन किए जाते हैं. कई जगहों पर मांस और शराब की दुकानें बंद रहती हैं.
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कौन हैं वर्धमान महावीर?
महावीर के जन्मदिवस को लेकर मतभेद है. श्वेतांबर जैनियों का मानना है कि उनका जन्म 599 ईसा पूर्व में हुआ था, वहीं दिगंबर जैनियों का मत है कि उनके आराध्य 615 ईसा पूर्व में प्रकट हुए थे. जैन मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म बिहार के कुंडलपुर के शाही परिवार में हुआ था. बचपन में महावीर का नाम 'वर्धमान' था. माना जाता है कि वे बचपन से ही साहसी, तेजस्वी और अत्यंत बलशाली थे और इस वजह से लोग उन्हें महावीर कहने लगे. उन्होंने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था, इसलिए इन्हें 'जीतेंद्र' भी कहा जाता है. महावीर की माता का नाम 'त्रिशला देवी' और पिता का नाम 'सिद्धार्थ' था. महावीर ने कलिंग के राजा की बेटी यशोदा से शादी भी की लेकिन 30 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ दिया.
जानिए जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के बारे में ये बातें
कठोर तपस्या
दीक्षा लेने के बाद महावीर ने साढ़े 12 सालों तक कठोर तपस्या की. फिर वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे 'साल वृक्ष' के नीचे भगवान महावीर को 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी. यह महावीर की श्रद्धा, भक्ति और तपस्या का ही परिणाम था कि वह जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित करने में सफल हो पाए. यही वजह है कि जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का पूरा श्रेय महावीर को दिया जाता है.
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निर्वाण
अहिंसा, त्याग और तपस्या की साक्षात मूर्ति भगवान महावीर ने कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के दिन पावापुरी में निर्वाण को प्राप्त किया.
महावीर स्वामी के सिद्धांत
महावीर स्वामी का सबसे बड़ा सिद्धांत अहिंसा का है. उन्होंने अपने प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह के पांच व्रतों का पालन करना आवश्यक बताया है. इन सबमें अहिंसा की भावना सम्मिलित है. यही वजह है कि जैन विद्वानों का प्रमुख उपदेश यही होता है- 'अहिंसा ही परम धर्म है. अहिंसा ही परम ब्रह्म है. अहिंसा ही सुख शांति देने वाली है. अहिंसा ही संसार का उद्धार करने वाली है. यही मानव का सच्चा धर्म है. यही मानव का सच्चा कर्म है.'
कैसे मनाई जाती है महावीर जयंती?
महावीर जयंती को महावीर स्वामी जन्म कल्याणक के नाम से भी जाना जाता है. जैन समुदाय का यह सबसे प्रमुख पर्व है. महावीर जयंती के दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है. इसके बाद मूर्ति को एक रथ पर बिठाकर जुलूस निकाला जाता है. इस यात्रा में जैन धर्म के अनुयायी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं. भारत में गुजरात और राजस्थान में जैन धर्म को मानने वालों की तादाद अच्छी खासी है. यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है और विशेष आयोजन किए जाते हैं. कई जगहों पर मांस और शराब की दुकानें बंद रहती हैं.
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