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Guru Purnima wishes 2025 : गुरु पूर्णिमा पर इन संस्कृत श्लोकों को भेजकर अपने गुरु से लीजिए आशीर्वाद

आप गुरु पूर्णिमा के दिन संस्कृत के श्लोंकों के जरिए अपने गुरु को गुरु पूर्णिमा की बधाई संदेश भेजकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. 

Guru Purnima wishes 2025 : गुरु पूर्णिमा पर इन संस्कृत श्लोकों को भेजकर अपने गुरु से लीजिए आशीर्वाद
गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने। गोबिंद दियो बताय॥

Guru purnima 2025 : भारतीय संस्कृति में गुरु का विशेष स्थान है. हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है. इस साल 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा मनाई जाएगी. आपको बता दें कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं, क्योंकि माना जाता है कि इस तिथि पर ही महर्षि व्यास का जन्म हुआ था. इस दिन गुरु की पूजा करना, आशीर्वाद प्राप्त करना और उनसे ज्ञान लेना सफलता के मार्ग को प्रशस्त करता है. आपको सही दिशा दिखाता है. ऐसे में इस दिन आप अपने गुरु के द्वारा दिए गए ज्ञान का आत्मसात करना चाहिए. साथ ही आप गुरु पूर्णिमा के दिन संस्कृत के श्लोंकों के जरिए अपने गुरु को गुरु पूर्णिमा की बधाई संदेश भेजकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. 

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1- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

इस श्लोक का अर्थ है- गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु शंकर (महेश्वर) हैं. गुरु ही साक्षात परम ब्रह्म हैं, उन गुरु को मेरा नमस्कार है.

2- गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपने। गोबिंद दियो बताय॥

इस श्लोक का अर्थ है- गुरु और गोविंद (ईश्वर) दोनों मेरे सामने खड़े हैं, मैं किसके पैर लगूं (किसको प्रणाम करूं)? गुरु पर मैं बलिहारी जाता हूं, जिन्होंने मुझे गोविंद (ईश्वर) का ज्ञान कराया.

3- अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥"

इस श्लोक का अर्थ है- जो गुरु अखंड, मंडल के आकार में व्याप्त, सजीव और निर्जीव में समाए हुए हैं, और जिन्होंने उस परम पद को दिखाया है, उन श्री गुरु को नमस्कार है.

विद्यां ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

इस श्लोक का अर्थ है-  विद्या (ज्ञान) विनय (विनम्रता) देती है, विनय से पात्रता (योग्यता) आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म (सही आचरण) होता है, और धर्म से सुख मिलता है.

यस्य देवे परा भक्तिः यथा देवे तथा गुरौ। तस्यैते कथिता ह्यर्थाः प्रकाशन्ते महात्मनः॥ 

इस श्लोक का अर्थ है- जिसकी भगवान में परा (उत्कृष्ट) भक्ति है, और जो भगवान के समान ही गुरु में भी भक्ति रखता है, उसे ही ये कहे हुए अर्थ (ज्ञान) प्रकाशित होते हैं, और वह महात्मा बन जाता है.

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः। तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः॥ 

 गुरु से बढ़कर न कोई तत्व है, न कोई तपस्या है, और गुरु के ज्ञान से बढ़कर कोई ज्ञान नहीं है। ऐसे गुरु को नमस्कार है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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