
Govatsa Dwadashi 2024: सनातन परंपरा में गाय का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. मां के समान पूजनीय मानी जाने वाली इसी गोमाता की पूजा से जुड़ा पर्व धनतेरस से ठीक एक दिन पहले यानि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, जिसे लोग गोवत्स द्वादशी, बछ बारस या फिर वसु द्वादशी नाम से जानते हैं. इस साल यह पावन पर्व 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को मनाया जाएगा. हिंदू मान्यता के अनुसार इस पावन पर्व पर गोमाता और उसके बछड़े की विशेष पूजा करने पर संतान के सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है. आइए गोवत्स द्वादशी के दिन की जाने वाली पूजा की विधि, शुभ मुहूर्त और धार्मिक महत्व जानते हैं.
गोवत्स द्वादशी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार जिस कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की द्वादशी पर गोपूजा का गोवत्स द्वादशी पर्व मनाया जाता है, वह इस साल 17 अक्टूबर 2025, शुक्रवार को प्रात:काल 11:12 बजे प्रारंभ होकर अगले दिन 18 अक्टूबर 2025, शनिवार को दोपहर 12:18 बजे तक रहेगी. ऐसे में गोवत्स द्वादशी का पावन पर्व 17 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा और इस दिन पूजा के लिए सबसे उत्तम माना जाने वाला प्रदोषकाल गोवत्स द्वादशी मुहूर्त सायंकाल 05:49 से लेकर रात्रि 08:20 बजे तक रहेगा. इस तरह गोवत्स द्वादशी की पूजा के लिए तकरीबन ढाई घंटे का समय मिलेगा.

Photo Credit: Facebook@JayGaumataJayGopal
गोवत्स द्वादशी पूजा विधि
गोवत्स द्वादशी तिथि पर दूध देने वाली गोमाता और उसके बछड़े की पूजा का विधान है. ऐसे में प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद गोमाता और उसके बछड़े को स्नान कराएं. इसके बाद उनकी सींगों को सजाकर उन्हें माला पहनाएं. इसके बाद गोमाता और उसके बछड़े का रोली और चंदन आदि से तिलक करें करने के बाद धूप-दीप दिखाकर श्रद्धा के साथ पूजा करें. फिर आटे की लोई में गुड़ लगाकर गाय को खिलाएं और संतान के सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगे.
गोवत्स द्वादशी का धार्मिक महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार गोवत्स द्वादशी पर विधि-विधान से पूजा करने पर सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और संतान की आयु बढ़ती है. मान्यता है इस पूजा को करने पर नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं और परिवार की खुशियों में वृद्धि होती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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