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आज रमजान का अंतिम जुमा यानी जुमा अलविदा है.
ईद मनाने वालों ने त्योहार की तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं.
रोजा आपसी भाईचारे को बढ़ाता है.
इस महीने मुसलमान एक ओर रोजा, नमाज और कुरआन पाक की तिलावत व जकात की अदायगी के माध्यम से अपने रब को खुश करने का प्रयास करते हैं, वहीं दूसरी ओर रोजा रखकर खानपान की सावधानी और सहरी में उठकर प्रात:काल जागने का प्रशिक्षण भी प्राप्त कर लेते हैं, जिससे उनके जीवन में संतुलन भी स्थापित होता है और रोजे में भूख प्यास सहन करने के कारण उन्हें साधन विहीन व निर्धन परिवारों के कष्टों का अनुभव हो जाता है.
रोजा आपसी भाईचारे को बढ़ाता है. रमजान में सामूहिक रोजा इफ्तार के माध्यम से अपने पास-पड़ोस के लोगों के साथ बैठने का मौका मिलता है, जिससे पारस्परिक संबंधों में प्रगाढ़ता आती है. मुस्लिम विद्वानों के मुताबिक, रोजा एक ऐसी इबादत है जिससे रोजेदार के अंदर मानवता का भाव उत्पन्न होता है और उसका शरीर निरोग एवं स्वस्थ रहता है.
रोजा खोलने के लिए कुछ विशेष निर्देश हैं, जिनका पालन करके शरीर में उपलब्ध पौष्टिक तत्वों के उचित स्तर को सुरक्षित रखा जाता है. खजूर और छुआरे में पौष्टिकता की भरमार होती है. खजूर और छुआरे से रोजा इफ्तार करना अधिक फायदेमंद समझा जाता है.
इनपुट आईएएनएस से
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