दीवाली पर जहां पूरे देश में माता लक्ष्मी, भाई गणेश के साथ पूजी जाती हैं वहीं देश में कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां अमावस्या की इस काली रात में मां काली की पूजा की जाती है. पश्चिम बंगाल में बहुत ही बड़े स्तर पर काली पूजा होती है. इसके अलावा ओडिशा और असम में भी कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर काली पूजा की परंपरा है. बंगाल में राज्यभर में पंडालों में मां काली की प्रतिमा स्थापित कर विधि-विधान से उनकी पूजा की जाती है. वहीं बंगाल के प्रसिद्ध काली मंदिरों में लोगों की भारी भीड़ देखने को मिलती है. मंदिर में काली पूजा पर विशेष भोग लगाए जाते हैं जो बाद में यहां आने वाले भक्तों को प्रसाद स्वरूप बांटे जाते हैं.
जिस तरह शारदीय नवरात्रों के दौरान कोलकाता सहित पूरे बंगाल में धूमधाम से दुर्गा पूजा की जाती है उसी तरह कार्तिक मास की अमावस्या पर काली माता की पूजा होती है. पंडालों में देवी को विराजमान किया जाता है और खूबसूरत रोशनी से पंडालों को सजाया जाता है. दूर-दूर से लोग पंडालों में माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. बंगाल के अलावा ओडिशा और असम में भी माता काली को इस दिन पूजने की परंपरा है. इस दिन आधी रात में माता काली की पूजा होती है.
काली पूजा से जुड़ी कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक समय में चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ नामक दैत्यों ने धरती पर खूब अत्याचार करना शुरू कर दिया था. इन दानवों ने इंद्रलोक पर भी कब्जा करने के लिए देवताओं से लड़ाई शुरू कर दी. तभी सभी देवता इन दानवों से भयभीत होकर माता अंबे के पास पहुंचे. मां अंबे ने इन राक्षसों का अंत करने के लिए अपना विकराल रूप धारण किया और उन राक्षसों को मार गिराया. उनमें एक रक्तबीज नाम का राक्षस भी था, जिसके शरीर का एक भी बूंद जमीन पर पड़ने से उसी का एक दूसरा रूप पैदा हो जाता. रक्तबीज का अंत करने के लिए मां काली ने उसे मार कर उसके रक्त का पान कर लिया और रक्तबीज का अंत हो गया. राक्षसों का अंत करने के बाद भी देवी का क्रोध शांत नहीं हुआ, तब सृष्टि के सभी लोग घबरा गए कि यदि मां का क्रोध शांत नहीं हुआ तो दुनिया खत्म हो जाएगी. ऐसे में भगवान शिव, देवी को शांत करने के लिए जमीन पर लेट गए और माता का पैर जैसे ही शिव जी पर पड़ा उनकी जीभ बाहर निकल आई और वे बिल्कुल शांत हो गई. तब से काली पूजा की परंपरा शुरू हो गई, भक्त आज भी मां को उसी रूप में पूजते हैं. उनकी प्रतिमाओं में मां काली की जीभ बाहर की ओर निकली दिखती है.
काली पूजा का शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा जहां शाम से ही शुरू हो जाती है वहीं काली पूजा आधी रात में की जाती है. इस साल काली पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त 4 नवंबर देर रात 11.39 बजे से शुरू होकर 5 नवंबर 12.31 बजे तक है. वहीं अमावस्या तिथि 4 नवंबर को सुबह 6 बजकर 3 मिनट से शुरू होकर अगले दिन यानी 5 नवंबर को रात 2.44 तक है.
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