Dev Uthani Ekadashi 2022: देवोत्थान एकादशी की ये है व्रत कथा, एकादशी पर किया जाता है इसका पाठ

Dev Uthani Ekadashi 2022: कार्तिक मास की एकादशी को देवोत्थान एकादशी या देवउठनी एकादशी कहते हैं. इस साल देवउठनी एकादशी का व्रत 04 नवंबर को यानी आज रखा जा रहा है.

Dev Uthani Ekadashi 2022: देवोत्थान एकादशी की ये है व्रत कथा, एकादशी पर किया जाता है इसका पाठ

Dev Uthani Ekadashi 2022: देवउठनी एकादशी के व्रत में इस कथा का पाठ किया जाता है.

Dev Uthani Ekadashi 2022 Vrat Katha: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को देवोत्थान एकदशी भी कहते हैं. इस साल देवोत्थान एकादशी का व्रत 04 नवंबर, 2022 को पड़ रहा है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु 4 महीने के बाद योग निद्रा से जागते हैं. जिसके बाद से सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है. देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ व्रत कथा का पाठ भी किया जाता है. आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी की कथा के बारे में.

देवोत्थान एकादशी व्रत कथा | Dev Uthani Ekadashi Vrat Katha

एक राजा के राज्य में सभी लोग श्रद्धापूर्वक एकादशी का व्रत रखते थे. प्रजा और राज्य के नौकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था. कहते हैं कि इस दिन किसी दूसरे राज्य का व्यक्ति राजा से बोला कि महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें. तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, लेकिन एकादशी के दिन अन्न ग्रहण करने के लिए नहीं मिलेगा. 

राजा के कहने के मुताबिक वह व्यक्ति राजी हो गया. लेकिन जब एकादशी के दिन जब उसे फलाहार से सामना हुआ तो वह राजा के सामने जाकर कहने लगा महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा, मुझे अन्न दिय जाए. राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई. लेकिन वह व्यक्ति अन्न त्याग करने के लिए तैयार नहीं हुआ. जिसके बाद राजा ने उसके लिए अन्न की व्यवस्थ कर दी. वह रोज की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान करके भोजन पकाने लगा. जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा. आओ भगवान! भोजन तैयार है.

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कहा जाता है कि उसके बुलाने पर पीतांबर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन ग्रहण करने लगे. भोजन करने के बाद भगवान अंतर्ध्यान हो गए. जिसके बाद वह व्यक्ति भी अपने काम पर चला गया. फिर पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दोगुना सामान दीजिए. उस दिन भूखा ही रह गया था. राजा के पूछने पर उसने बताया कि उसके साथ भगवान भी भोजन ग्रहण करते हैं. यह सुनकर राजा को थोड़ा अटपटा लगा और उन्होंने बताया कि उन्हे विश्वास नहीं हो रहा है कि भगवान उसके साथ भोजन करते हैं. 

राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें. राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया. उस व्यक्ति ने भोजन बनाया भगवान को शाम तक पुकारता रहा, लेकिन भगवान नहीं आए. अंत में उसने कहा कि हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा.

इसके बाद भी भगवान नहीं आए. तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा. प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे. भोजन के बाद भगवान अपने गंतव्य को चले गए. यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो. इससे राजा को ज्ञान मिला. वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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