Chhath Puja 2022, Chhathi Maiya: वैसे तो छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से हो जाती है, लेकिन षष्ठी और सप्तमी तिथि पर छठी मैया और सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है. इस साल 28 अक्टूबर यानी आज से छठ पूजा की शुरुआत हो रही है. इस क्रम में पहले दिन आज नहाय-खाय होगा. इसके अगले दिन यानी 29 अक्टूबर को छठ पूजा का खरना होगा. वहीं 30 अक्टूबर को शाम का अर्घ्य और 31 अक्टूबर को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. मान्यता है कि छठ व्रत करने से संतान सुखी और दीर्घायु होता है. इसके अलावा मान्यता यह भी है कि छठी मैया निःसंतानों की भी झोली भरती हैं. आइए जानते हैं कि छठी मैया कौन हैं और इनसे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है.
छठी मैया कौन हैं | who is Chhathi Maiya
धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं के मुताबिक छठी मैया ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं. ये सूर्य देव की बहन भी मानी जाती हैं. छठ व्रत में षष्ठी मैया की पूजा की जाती है, इसलिए इस व्रत का नाम छठ पड़ा. पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना करने के लिए खुद को दो भागों में बांटा. जिसमें दाएं भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. माना जाता है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक अंश को देवसेना कहा जाता है. चूंकि प्रकृति का छठ अंश होने की वजह से देवी का एक नाम षष्ठी भी है. जिन्हें छठी मैया के नाम से जानते हैं.
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कहा है छठी मैया से जुड़ी पौराणिक कथा | Chhath puja Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुआ. जिसके बाद महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी को यत्र आहुति के लिए बने प्रसाद को खाने के लिए कहा. जिसके बाद प्रियंवद की पत्नी मालिनी को पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत था. प्रियंवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और वहां पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे. कहते हैं कि उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि वे षष्ठी माता हैं और उनकी पूजा करने से पुत्र की प्राप्ति होगी. षष्ठी माता के कहने पर राजा प्रियंवद ने वैसा ही किया. जिसके बाद उन्हें तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई. तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन षष्ठी माता की पूजा शुरू हुई जो आज तक जीवंत है.
श्रीराम और माता सीता ने भी रखा था छठ व्रत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम और माता सीता ने भी छठ का व्रत किया था. कहा जाता है कि लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद कार्तिक शुक्ल षष्टी तिथि को माता सीता और भगवान श्रीराम ने छठ का व्रत रखा था और सूर्य देव की पूजा की थी.
महाभारत काल में कर्ण ने भी की थी सूर्य की पूजा
पौराणिक मान्यता है कि महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्य देव की उपासना की थी. माना जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे. वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना किया करते थे. मन्यता है कि सूर्य देव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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