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This Article is From Nov 16, 2022

Budhwar Puja Upay: बुधवार को कर लें गणेश जी से जुड़ा ये काम, हर कार्य में मिलेगी सफलता!

Budhwar Puja Upay: बुधवार का दिन भगवान गणेश की स्तुति के लिए खास होता है. इस दिन कुछ खास काम करने से भगवान गणेश का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.

Budhwar Puja Upay: बुधवार को कर लें गणेश जी से जुड़ा ये काम, हर कार्य में मिलेगी सफलता!
Budhwar Puja Upay: बुधवार के दिन इन कार्यों को करना शुभ माना गया है.

Budhwar Puja Tips: बुधवार भगवान गणेश की उपासना और भक्ति के लिए बेहद खास होता है. कहा जाता है कि कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए भी बुधवार का दिन बेहद शुभ होता है. माना जाता है कि इस दिन विधिपूर्वक गणेश जी की पूजा करने से व्यक्ति को सभी कार्यों में सफलता हासिल होती है. इसके साथ ही, व्यक्ति के सभी कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं. बुधवार के दिन सुबह स्नान के बाद गणेश जी की उपासना करें. गणपति को उनकी प्रिय चीजें मोदक या लड्डू का भोग लगाएं और दूर्वा अर्पित करें. इससे गणेश जी प्रसन्न होकर भक्तों पर अपार कृपा बरसाएंगे. 

ज्योतिष शास्त्र में बुधवार के दिन गणेश जी का आशीर्वाद पाने के लिए कई उपायों के बारे नें बताया गया है. पूजा के बाद कुछ जरूरी चीजों को करने से बप्पा प्रस्नव होकर भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं. बता दें कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए गणेश पूजन के बाद गणेश चालीसा का पाठ अवश्य करें. इससे आपके सभी बिगड़े काम बन जाएंगे. साथ ही, सुख-सौभाग्य में वृद्धि होगी. 

ऐसे करें घर में गणेश चालीसा का पाठ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश चालीसा का पाठ करने के लिए पूजा घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें. उनके सामने आसन बिछाकर बैठ जाएं और गणेश जी को लाल फूल, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, गंध, रोली, फल आदि अर्पित करें. साथ ही, ओम गणेशाय नमः का जाप करें. इसके बाद सही उच्चारण के साथ गणेश चालीसा का पाठ करें. बता दें कि पूजा करते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए. 

श्री गणेश चालीसा
 

दोहा

जय गणपति सदगुणसदन, कविवर बदन कृपाल
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल

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चौपाई

जय जय जय गणपति गणराजू। मंगल भरण करण शुभ काजू
जय गजबदन सदन सुखदाता। विश्व विनायक बुद्घि विधाता

वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावन। तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन
राजत मणि मुक्तन उर माला। स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला

पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं। मोदक भोग सुगन्धित फूलं
सुन्दर पीताम्बर तन साजित। चरण पादुका मुनि मन राजित

धनि शिवसुवन षडानन भ्राता। गौरी ललन विश्व-विख्याता
ऋद्घि-सिद्घि तव चंवर सुधारे। मूषक वाहन सोहत द्घारे

कहौ जन्म शुभ-कथा तुम्हारी। अति शुचि पावन मंगलकारी
एक समय गिरिराज कुमारी। पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा। तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा
अतिथि जानि कै गौरि सुखारी। बहुविधि सेवा करी तुम्हारी

अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा। मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला। बिना गर्भ धारण, यहि काला

गणनायक, गुण ज्ञान निधाना। पूजित प्रथम, रुप भगवाना
अस कहि अन्तर्धान रुप है। पलना पर बालक स्वरुप है

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बनि शिशु, रुदन जबहिं तुम ठाना। लखि मुख सुख नहिं गौरि समाना
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं। नभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं

शम्भु, उमा, बहु दान लुटावहिं। सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं
लखि अति आनन्द मंगल साजा। देखन भी आये शनि राजा

निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं। बालक, देखन चाहत नाहीं
गिरिजा कछु मन भेद बढ़ायो। उत्सव मोर, न शनि तुहि भायो

कहन लगे शनि, मन सकुचाई। का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ। शनि सों बालक देखन कहाऊ

पडतहिं, शनि दृग कोण प्रकाशा। बोलक सिर उड़ि गयो अकाशा
गिरिजा गिरीं विकल हुए धरणी। सो दुख दशा गयो नहीं वरणी

हाहाकार मच्यो कैलाशा। शनि कीन्हो लखि सुत को नाशा
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो। काटि चक्र सो गज शिर लाए

बालक के धड़ ऊपर धारयो। प्राण, मंत्र पढ़ि शंकर डारयो
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे। प्रथम पूज्य बुद्घि निधि, वन दीन्हे

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा। पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा
चले षडानन, भरमि भुलाई। रचे बैठ तुम बुद्घि उपाई

धनि गणेश कहि शिव हिय हरषे। नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें। तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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