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This Article is From Aug 14, 2018

Bakrid 2018: 22 अगस्‍त को मनाई जाएगी ईद-उल-जुहा, जानिए क्‍यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?

Eid al-Adha 2018: बकरीद (Bakrid) का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है. इस दिन बकरे की कुर्बानी देने की परंपरा है.

Bakrid 2018: 22 अगस्‍त को मनाई जाएगी ईद-उल-जुहा, जानिए क्‍यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?
इस साल बकरीद 23 अगस्‍त को मनाई जाएगी
नई दिल्‍ली: बकरा ईद, बकरीद, ईद-उल-अजहा या ईद-उल जुहा भारत में 22 अगस्‍त को मनाई जाएगी. इस बात का ऐलान जामा मस्जिद ने किया है. उधर, केंद्र सरकार ने मंगलवार को ईद-उल-जुहा के लिए छुट्टी में बदलाव की घोषणा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी स्थित सरकारी दफ्तर 23 अगस्त की जगह 22 अगस्त को बंद रहेंगे. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने जारी बयान में कहा, 'दिल्ली/नई दिल्ली स्थित सभी केंद्रीय सरकारी प्रशासनिक कार्यालय ईद-उल-जुहा (बकरीद) की छुट्टी के कारण 23 अगस्त की जगह 22 अगस्त को बंद रहेंगे.'

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कब मनाई जाती है बकरीद?
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है. यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्‍म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है.

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बकरीद क्‍यों मनाई जाती है?
इस्‍लाम को मानने वाले लोगों के लिए बकरीद का विशेष महत्‍व है. इस्‍लामिक मान्‍यता के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर खुदा की राह में कुर्बान करने जा रहे थे. तब अल्लाह ने उनके नेक जज्‍बे को देखते हुए उनके बेटे को जीवनदान दे दिया. यह पर्व इसी की याद में मनाया जाता है. इसके बाद अल्लाह के हुक्म पर इंसानों की नहीं जानवरों की कुर्बानी देने का इस्लामिक कानून शुरू हो गया.

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क्यों दी जाती है कुर्बानी?
हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी. जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्‍दा खड़ा हुआ देखा. बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है.

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बकरीद का महत्‍व
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है.  इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है. इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है. इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं. ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं.

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