Sawan Ashtami: सावन में अष्‍टमी नवरात्र का है खास महत्व, इस वजह से होती है चिंतपूर्णी की सप्‍तमी

Sawan Ashtami: सावन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को चिंतपूर्णी में माता सती के चरण गिरे थे. यही कारण है कि चिंतपूर्णी की सप्तमी को खास माना जाता है.

Sawan Ashtami: सावन में अष्‍टमी नवरात्र का है खास महत्व, इस वजह से होती है चिंतपूर्णी की सप्‍तमी

Sawan Ashtami: धार्मिक मान्यतानुसार सावन मास का नवरात्र भगवान शिव से जुड़ा है.

खास बातें

  • भगवान शिव से जुड़ा हैसावन का नवरात्र.
  • चिंतपूर्णी सप्तमी की कथा है खास.
  • यहां होती है चिंतपूर्णी माता की पूजा.

Sawan Ashtami: सावन का महीना पूजा-पाठ के दृष्टिकोण से खास होता है. इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इसके अलावा सावन मास के नवरात्र का भी विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यतानुसार, सावन (Sawan) मास का नवरात्र भी भगवान शिव के जुड़ा है. सावन शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को चिंतपूर्णी माता मंदिर में विशेष पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा नामक स्थान पर माता सती के पैर गिरे थे. यह स्थान शक्तिपीठ का नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं कि सावन मास के अष्टमी नवरात्र का क्या महत्व है. 

चिंतपूर्णी की सप्‍तमी से जुड़ी है ये कथा

शास्त्रों के अनुासार, भगवान शिव का विवाह दक्ष प्रजापति की कन्या सती से हुआ था. एक बार दक्ष प्रजापति द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया. जिसमें भगवान शिव को बुलावा नहीं भेजा गया. इस बात से क्रोधित होकर माता सती ने उसी हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण की आहुति दे दी. जिसके बाद भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो गए और वे अपने गण वीरभद्र को भेजकर पूरा यज्ञ तहस-नहस करवा दिया और वहां मौजूद सभी लोगों को सजा दे दी. इसके बाद भगवान शिव सती के वियोग में उनके शव को अपने कंधे पर लेकर भटकने लगे. पूरी सृष्टि में त्राहिमाम मचने लगा. जिसे देखकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को टुकड़े-टुकड़े कर दिए. इस क्रम में माता सती का कटा हुआ अंग जहां-जहां गिरा, वह स्थान शक्तिपीठ बन गया.

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इस वजह से खास है सावन नवरात्र

धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव का विवाह सावन मास में ही हुया था. साथ ही भगवान विष्णु द्वारा माता सती के जो अंग भंग किए गए वो भी सावन मास में ही हुए थे. सावन मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को चिंतपूर्णी में माता सती के चरण गिरे थे. यही कारण है कि चिंतपूर्णी की सप्तमी को खास माना जाता है. मान्यता है कि इसी दिन इस जगह पर श्रद्दालुओं को माता की 7 ज्योति नजर आती है. हर चिंता को नष्ट करने कारण भक्त माता को चिंतपूर्णी माता कहते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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