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भारत में लगभग 3 करोड़ बच्चे अनाथ हैं, जिनके माता-पिता नहीं हैं. इनमें से केवल 5 लाख बच्चे ही अनाथालयों जैसी संस्थागत सुविधाओं तक पहुंच पाते हैं. यह संख्या बहुत ही कम है. इन 5 लाख बच्चों में से भी केवल 4,000 बच्चों को ही प्रति वर्ष गोद लिया जाता है. यह आंकड़ा बताता है कि बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया में कई पेचीदगियां हैं, जिससे बहुत कम बच्चों को परिवार का अधिकार मिल पाता है.
व्यवस्था की खामियों के बावजूद, कई लोग ऐसे हैं जो अनाथ बच्चों को गोद लेकर एक मिसाल कायम कर रहे हैं. दंपत्तियों के अलावा, कई सिंगल महिलाएं भी बच्चों को गोद लेकर एक नई दिशा दिखा रही हैं. अब पुरुष भी इस दिशा में आगे आ रहे हैं, जैसे कि मुंबई के 34 साल के एक युवक ने तीन साल के एक बच्चे को गोद लिया है. यह एक प्रेरणादायक उदाहरण है जो दिखाता है कि परिवार का अर्थ सिर्फ रक्त संबंधों से नहीं है, बल्कि प्यार, देखभाल और समर्थन से भी है.
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गोपनीयता के लिए उनका और गोद लिए बच्चे का नाम बदल रहे हैं. मुंबई के 34 साल के रमेश गुप्ता ने एक अनोखा कदम उठाया है. उन्होंने शादी किए बिना ही एक 3 साल के बच्चे सिद्धांत को गोद लिया है. यह बच्चा अहमदाबाद के एक शिशु गृह से लिया गया है. रमेश ने कहा कि वे शादी करना नहीं चाहते थे, लेकिन एक बच्चे को पालना उनका सपना था. इसके लिए उन्होंने Central Adoption Resource Authority (CARA) की प्रक्रियाओं के तहत तीन साल लंबा इंतज़ार किया. रमेश के माता-पिता ने भी उनके इस फैसले का पूरा साथ दिया. यह एक प्रेरणादायक उदाहरण है जो दिखाता है कि पिता बनने के लिए शादी करना जरूरी नहीं है.
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पुणे के सॉफ्टवेयर इंजीनियर आदित्य तिवारी ने 27 साल की उम्र में एक विशेष जरूरतों वाले बच्चे को गोद लिया था. यह बच्चा डाउन सिंड्रोम से पीड़ित था और उसके माता-पिता ने उसे अनाथालय में छोड़ दिया था. आदित्य के इस फैसले को लेकर कई लोगों को आशंकाएं थीं. लेकिन उन्होंने बीते नौ साल में इस बच्चे का लालन पालन किया है और यह एक मिसाल बन गया है. आदित्य को बच्चा गोद लेने की इजाजत मिलने में तीन साल का समय लगा था, क्योंकि उस समय सिंगल पेरेंट की उम्र कम से कम 30 साल होनी चाहिए थी. बाद में यह उम्र घटाकर 25 कर दी गई.
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आदित्य तिवारी ने अपने परिवार और दफ्तर की मदद से अवनीश को पालने में सफलता प्राप्त की. आदित्य के माता-पिता ने भी अवनीश की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. अवनीश को जब आदित्य ने गोद लिया था, तब वह महज 22 महीने का था और उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं था. लेकिन आदित्य की देखभाल में अवनीश के स्वास्थ्य में काफी सुधार आया. आदित्य ने अवनीश को पहले एक प्ले स्कूल में रखा, फिर नर्सरी क्लास में और अब वह बचपन अच्छे से बीत रहा है. आदित्य तिवारी ने अवनीश को गोद लेने के बाद डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का भी काम शुरू किया है. वह स्कूल, कॉलेज और अन्य मंचों पर जाकर लोगों को ऐसे बच्चों के प्रति समझ बढ़ाने का काम करते हैं. इसके अलावा, आदित्य ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को बड़ा होने पर रोजगार देने से जुड़े एक प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया है.
भारत में लगभग 3 करोड़ अनाथ बच्चे हैं, लेकिन प्रति वर्ष केवल 4,000 बच्चे ही गोद लिए जाते हैं. इसका एक मुख्य कारण यह है कि भारत में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया बहुत लंबी और जटिल है. भारत सरकार ने Central Adoption Resource Authority (CARA) का गठन किया है ताकि बच्चों को गोद देने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सके. CARA की वेबसाइट पर बच्चा गोद लेने वालों की पात्रता के नियम दिए गए हैं.
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भारत में बच्चा गोद लेने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना होता है
1. बच्चा गोद लेने वाले अभिभावकों को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और वित्तीय तौर पर सक्षम होना चाहिए।
2. उन्हें ऐसी कोई शारीरिक तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए जो जान पर ख़तरा बने।
3. उन्हें किसी भी तरह के अपराध के लिए सज़ा नहीं हुई होनी चाहिए।
4. न ही उन पर बाल अधिकारों के हनन का कोई आरोप होना चाहिए।
5. कोई भी व्यक्ति चाहे शादीशुदा हो या न हो, बच्चा गोद ले सकता है।
6 . पहले से कोई बायोलॉजिकल बेटा या बेटी हो तो भी बच्चा गोद लिया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ अतिरिक्त शर्तें पूरी करनी होंगी.
भारत में बच्चा गोद लेने के लिए कुछ अतिरिक्त नियम और शर्तें हैं
वैवाहिक स्थिति और लिंग आधारित शर्तें
1. शादीशुदा दंपती: बच्चा गोद लेने के लिए पति और पत्नी दोनों की मंज़ूरी आवश्यक है
2. सिंगल फीमेल: एकल महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती हैं
3. सिंगल मेल: एकल पुरुष किसी बच्ची को गोद लेने का पात्र नहीं है
शादीशुदा संबंधों की स्थिरता और रिश्तेदारों के बच्चों को गोद लेने की शर्तें
1. स्थिर शादीशुदा संबंध: किसी भी दंपती को बच्चा तब तक गोद नहीं दिया जाएगा जब तक दो साल तक उसके स्थिर शादीशुदा संबंध न हों
2. रिश्तेदारों के बच्चों को गोद लेने की शर्तें: अगर कोई दंपती अपने किसी रिश्तेदार के बच्चे को गोद लेना चाहे तो स्थिर शादीशुदा संबंधों की शर्त ज़रूरी नहीं होगी.
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उम्र आधारित शर्तें
1. उम्र की सीमाएं: बच्चा गोद लेने की इच्छा रखने वाले अभिभावकों की उम्र की सीमाएं तय की गई हैं
2. उम्र का अंतर: जिस बच्चे को गोद लिया जा रहा है, उसकी और गोद लेने वाले अभिभावकों की उम्र में कम से कम 25 साल का अंतर होना चाहिए
3. न्यूनतम उम्र: 25 साल से कम उम्र का व्यक्ति बच्चे को गोद नहीं ले सकता
अगर गोद लिए जाने वाले शिशु की उम्र दो साल तक हो तो गोद लेने वाले अभिभावकों की composite age यानी कुल उम्र अधिकतम 85 साल होनी चाहिए. इसका मतलब है कि पति और पत्नी की उम्र जोड़कर अधिकतम 85 साल होनी चाहिए और अगर सिंगल पेरेंट है तो अधिकतम 40 साल होनी चाहिए. ये उम्र इस आधार पर तय की गई है कि गोद लेने वाले अभिभावक इतने बुज़ुर्ग न हों कि बच्चे को ठीक से पाल न सकें.
अगर बच्चा दो से चार साल के बीच उम्र का है तो गोद लेने वाले अभिभावकों की composite age अधिकतम 90 साल होनी चाहिए और अगर सिंगल पेरेंट है तो अधिकतम 45 साल होनी चाहिए. अगर बच्चा चार से आठ साल के बीच का है तो गोद लेने वाले पति-पत्नी की composite age यानी कुल उम्र अधिकतम 100 साल होनी चाहिए. यानी पति-पत्नी की उम्र को जोड़ें तो वो 100 साल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. सिंगल पेरेंट की उम्र 50 से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए. अगर बच्चा आठ से 18 साल के बीच का है तो गोद लेने वाले पति-पत्नी की composite age यानी उम्र का जोड़ अधिकतम 110 साल होना चाहिए. इस मामले में सिंगल पेरेंट की उम्र अधिकतम 55 साल होनी चाहिए. अगर कोई अपने रिश्तेदारों के बच्चों को गोद ले रहा हो तो उम्र के ये नियम लागू नहीं होंगे.
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ऐसे दंपती जिनके दो या अधिक बच्चे हैं उन्हें सिर्फ़ special needs वाले बच्चों जिसे रेगुलेशन 2 के क्लॉज़ 25 में स्पष्ट किया गया है. उन्हें ही गोद के लिए पात्र माना जाएगा या फिर ऐसे बच्चों जिन्हें hard to place माना गया है. यानी जिन्हें गोद देना मुश्किल हो रहा हो, उन्हें गोद देने का पात्र माना जाएगा. Hard to Place बच्चे कौन होंगे ये भी रेगुलेशन 2 के क्लॉज 13 में स्पष्ट किया गया है. बच्चों को गोद लेने वाले अभिभावकों को अपने घर से जुड़ी रिपोर्ट को तीन साल बाद फिर से वेरिफाई कराना होगा.
भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया क्या है और कितनी जटिल है?
हाइकोर्ट में वकील राखी दुबे ने कहा कि अधिकतर लोग मानते हैं कि शादीशुदा दंपती ही बच्चा गोद ले सकते हैं. लेकिन नियम बदल चुके हैं. नए नियम क्या कहते हैं ये साफ है कि अब सिंगल पुरुष भी बच्चे गोद ले सकते हैं. बच्चे को पालने की ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है. क्या आपको लगता है कि इस मामले में पुरुष भी उतने ही सक्षम हैं जितनी महिलाएं या फिर जितने शादीशुदा दंपती. भारत में बच्चों को गोद देने के नियम बनाते वक़्त किन ख़ास बातों का खयाल रखा गया है.
भारत में बच्चों को गोद लिए जाने की प्रक्रिया के बारे में आंकड़े बताते हैं कि भारत में गोद लिए गए 60% बच्चे लड़कियां हैं और 80% बच्चे वो हैं जो दो साल से कम उम्र के हैं. यानी बच्चे की उम्र जितनी कम होगी उसके गोद लिए जाने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होगी. बीते दस साल के आंकड़ों को देखें तो भारत में बच्चों को गोद लिए जाने का आंकड़ा बहुत उत्साहजनक नहीं रहा है. दस साल पहले 2013-14 और 2014-15 में जो आंकड़े थे वो उसके बाद गिरे, कोरोना से पहले जब ये आंकड़े उठ रहे थे तो फिर कोरोना महामारी का असर दिखा. गोद लिए जाने वाले बच्चों की तादाद गिर गई. कोरोना के बाद 2023-24 में ये आंकड़ा 4000 के पार पहुंचा.
सवाल ये है कि इस कम आंकड़े का जिम्मेदार कौन है?
क्या गोद लेने वालों की संख्या कम है तो आंकड़ों के मुताबिक ऐसा नहीं है. बच्चा गोद लेने की अर्जी देने वाले हर 100 संभावित अभिभावकों के सामने सिर्फ़ 9 बच्चे होते हैं जो क़ानूनन गोद लिए जाने के लिए मुक्त होते हैं. यानी उन्हें ही गोद दिया जा सकता है. यानी गोद लेने वाले उपलब्ध हैं लेकिन बच्चे नहीं. ये बड़ा विरोधाभासी है. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कनवेंशन कहता है कि हर बच्चे को एक सुरक्षित और अच्छे पारिवारिक माहौल में रहने का अधिकार है. यानी परिवार उनका मौलिक अधिकार है... ऐसे में हर व्यवस्था, हर व्यक्ति, हर संस्था की कोशिश होनी चाहिए कि कोई बच्चा परिवार के अधिकार से महरूम न हो.
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