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भारत ने सिंधु जल संधि पर खींची लक्ष्मण रेखा, जानिए वो कौन से डैम हैं जिसके कारण पाकिस्तान में मचेगा हाहाकार

सिंधु नदी समझौते के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों सतलुज, रावी और व्यास के पानी का पूरा अधिकार दिया गया था जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकार दिया गया था.

भारत ने सिंधु जल संधि पर खींची लक्ष्मण रेखा, जानिए वो कौन से डैम हैं जिसके कारण पाकिस्तान में मचेगा हाहाकार
नई दिल्ली:

सितंबर 2016 में उड़ी में हुए आतंकवादी हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा था कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते. वो बात अब सच होती लग रही है. तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने जवाब दिया था कि भारत द्वारा पानी रोकने की किसी भी कोशिश को पाकिस्तान द्वारा युद्ध की तरह लिया जा सकता है. पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत ने ये बड़ा फै़सला ले लिया है. भारत ने सिंधु नदी समझौते को स्थगित कर दिया है. इसके बाद अब भारत सिंधु नदी समझौते के तहत तीन पश्चिमी नदियों यानी सिधु, झेलम और चिनाब को लेकर अपनी शर्तों को तोड़ सकता है जिसका असर सीधे पाकिस्तान में पानी की उपलब्धता पर पड़ सकता है.

भारत के पास है तीन नदियों का अधिकार

सिंधु नदी समझौते के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों सतलुज, रावी और व्यास के पानी का पूरा अधिकार दिया गया था जबकि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकार दिया गया था. क्योंकि ये तीन नदियां भी भारत से होकर बहती हैं तो भारत कुछ शर्तों के साथ इनके पानी का इस्तेमाल पीने और सिंचाई के कामों में कर सकता है इसके अलावा रन ऑफ द रिवर बांध इन पर बना सकता है. सिंधु नदी समझौते के तहत पाकिस्तान को जिन तीन नदियों का पानी दिया गया उनका सालाना 135 (MAF)मिलियन एकड़ फीट पानी उसे मिलता है.

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जबकि भारत को मिली तीन पूर्वी नदियों सतलुज, व्यास और रावी का क़रीब 33 (MAF) मिलियन एकड़ फीट पानी मिलता है. सिंधु नदी समझौते के तहत भारत ने अपने अधिकार के तहत सभी नदियों पर बांध बनाए हैं लेकिन ख़ासतौर पर पश्चिमी नदियों पर बनाए बांधों से पाकिस्तान को काफ़ी ऐतराज़ रहा है. उसकी शिकायत है कि भारत ने सिंधु नदी समझौते का उल्लंघन किया है और वो उसका पानी रोक सकता है. जिन बांधों को लेकर पाकिस्तान को आशंकाएं हैं और जो उसकी पानी की उपलब्धता पर असर डाल सकती हैं वो ये हैं. जिन बांधों पर पाकिस्तान को सबसे ज़्यादा ऐतराज़ है वो चिनाब और झेलम नदी पर हैं.

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  • बगलिहार बांध, जम्मू-कश्मीर
  • चिनाब नदी पर
  • रामबन, जम्मू-कश्मीर में
  • उद्गम - लाहौल, हिमाचल प्रदेश
  • 450 मेगावॉट के दो प्रोजेक्ट

 बगलिहार बांध प्रोजेक्ट पर पाकिस्तान को रहा है ऐतराज

चिनाब नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पीति ज़िले में बारलाचाला से निकलती है. हिमाचल में ये दो नदियों से मिलकर बनती है जिनके नाम हैं चंद्रा और भागा. हिमाचल से ये नदी जम्मू-कश्मीर जाती है. इस नदी में पानी का काफ़ी प्रवाह है. इसी नदी पर जम्मू-कश्मीर के रामबन में बगलिहार बांध प्रोजेक्ट बना है जिस पर पाकिस्तान को शुरू से ही ऐतराज़ रहा है. भारत पश्चिमी नदियों में से एक चिनाब पर सिर्फ़ रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट ही बना सकता है और बिजली उत्पादन के लिए जितना ज़रूरी हो उतना ही पानी रोक सकता है. भारत ने इसी हक़ का इस्तेमाल किया है. लेकिन पाकिस्तान को इस बांध के डिज़ाइन और भंडारण क्षमता पर ऐतराज़ रहा है. इस मामले में एक न्यूट्रल एक्सपर्ट ने डैम की ऊंचाई सिर्फ़ डेढ़ मीटर करते हुए बाकी फ़ैसला भारत के पक्ष में सुनाया.

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  • रातले बांध, जम्मू-कश्मीर
  • चिनाब नदी पर
  • किश्तवाड़, जम्मू-कश्मीर
  • क्षमता - 850 मेगावॉट
  • निर्माणाधीन
  • मई 2026 तक पूरा होने के आसार

हिमाचल से निकली इसी चिनाब नदी पर जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में एक पनबिजली परियोजना बन रही है. रातले बांध नाम की इस परियोजना के तहत 850 मेगावॉट बिजली बनाने का लक्ष्य है. पाकिस्तान को इस परियोजना के बांध के निर्माण और डिज़ाइन पर ऐतराज़ है. उसका यही तर्क है कि इससे पाकिस्तान में चिनाब नदी के पानी के बहाव पर असर पड़ेगा.

  • सलाल बांध, जम्मू-कश्मीर
  • चिनाब नदी पर
  • रियासी ज़िला, जम्मू-कश्मीर
  • 1996 से प्रोजेक्ट

 सलाल बांध भी पाकिस्तान के लिए है संकट

पाकिस्तान ने सलाल बांध के डिज़ाइन और क्षमता पर ऐतराज़ किया. भारत ने 1978 में पाकिस्तान की कुछ शंकाओं का समाधान करते हुए बांध के डिज़ाइन में कुछ बदलाव भी किए. 1996 में बांध का आख़िरी चरण पूरा हो गया और तब से ये चल रहा है लेकिन पाकिस्तान का अब भी कहना है कि इस बांध की भंडारण क्षमता बहुत ज़्यादा है जिससे इतना पानी जमा हो सकता है कि पाकिस्तान में पानी की किल्लत पड़ सकती है. पाकिस्तान की दलील है कि सिंधु नदी समझौते के तहत भारत को ऐसा बांध बनाने की इजाज़त नहीं है..

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  • उड़ी बांध, जम्मू-कश्मीर
  • चिनाब नदी पर
  • उड़ी, बारामूला
  • 1997 से प्रोजेक्ट

उड़ी बांध का पाकिस्तान के पास नहीं है कोई काट

जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर नियंत्रण रेखा के बिलकुल पास है उड़ी बांध जो बारामूला ज़िले में पड़ता है. 480 मेगावॉट का ये रन ऑफ द रिवर बांध 1997 से काम कर रहा है. पाकिस्तान ने इस बांध के निर्माण का भी ये कहते हुए विरोध किया कि ये सिंधु नदी समझौते का उल्लंघन है.

  • किशनगंगा बांध, जम्मू-कश्मीर
  • झेलम नदी पर
  • बांदीपुरा, जम्मू-कश्मीर में
  • उद्गम - वेरिनाग, पीर पंजाल, अनंतनाग
  • क्षमता - 330 मेगावॉट

झेलम नदी जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में पीर पंजाल पहाड़ियों की तलहटी में वेरिनाग स्रोत से निकलती है. इस स्रोत में आसपास की पहाड़ियों के ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी आता है. इसी नदी पर जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में 330 मेगावॉट का किशनगंगा हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट बना है. पाकिस्तान को इस प्रोजेक्ट के निर्माण और डिज़ाइन से ऐतराज़ रहा है और उसकी दलील है कि इससे किशनगंगा नदी में पानी के बहाव पर असर पड़ सकता है.

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  • नीमू बाज़गो बांध, लद्दाख
  • सिंधु नदी पर
  • लेह ज़िला, लद्दाख
  • 45 मेगावॉट क्षमता

कहां से निकलती है सिंधु नदी?

सिंधु नदी चीन के कब्ज़े वाले तिब्बत में कैलाश पर्वर रेंज के क़रीब एक ग्लेशियर से निकलती है और उत्तर पश्चिम की ओर बहते हुए भारत में लद्दाख में प्रवेश करती है. लद्दाख से ये नदी कश्मीर होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश करती है. सिंधु नदी पर बहुत ज़्यादा बांध नहीं हैं. जो हैं उनमें से एक है नीमू बाज़गो बांध प्रोजेक्ट जो लद्दाख के लेह ज़िले में पड़ता है. ये 45 मेगावॉट की छोटी रन ऑफ़ द रिवर परियोजना है लेकिन पाकिस्तान को इसके निर्माण से भी ऐतराज़ रहा.

  • शाहपुर कांडी बांध, पंजाब
  • रावी नदी पर
  • पठानकोट, पंजाब में
  • उद्गम - कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
  • ऊंचाई 55.5 मीटर
  • क्षमता - 206 मेगावॉट

रावी नदी हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले से निकलती है. हिमाचल के बाद ये नदी पंजाब से होते हुए पाकिस्तान चली जाती है.चूंकि ये नदी पूर्वी तीन नहरों में आती है इसलिए भारत को इस नदी के पूरे पानी के इस्तेमाल का हक़ है. पंजाब के पठानकोट में रावी नदी पर बना शाहपुर कांडी बांध ऐसा ही एक बांध है जिसके ज़रिए रावी नदी का पानी रोका जा सकता है. लेकिन सिंधु नदी समझौते के तहत रावी, सतलुज और ब्यास के पानी पर भारत का पूरा अधिकार है. भारत इस बांध के ज़रिए रावी का पानी रोक कर उसका इस्तेमाल जम्मू-कश्मीर के कठुआ और सांबा ज़िलों में सिंचाई के लिए कर रहा है. इसके अलावा इस बांध का पानी पंजाब और राजस्थान में भी सिंचाई के काम आ सकता है.

इस बांध की ऊंचाई 55.5 मीटर है और एक मल्टी पर्पज़ रिवर वैली प्रोजेक्ट है जिसमें दो हाइडल पावर प्रोजेक्ट भी हैं जिनकी बिजली बनाने की क्षमता 206 मेगावॉट है.ये बांध 2004 में बनकर पूरा हुआ. इससे पहले इसका सारा पानी बहकर पाकिस्तान चला जाता था. (पाकिस्तान में पानी का संकट पहले से ही गहरा रहा है. संयुक्त राष्ट्र, आईएमएफ़ और Pakistan Council for Research in Water Resources (PCRWR)काफ़ी समय से भविष्य में पाकिस्तान में पानी की किल्लत को लेकर सतर्क करते रहे हैं. लेकिन इससे जुड़ी चेतावनियां पाकिस्तान की सत्ता और वहां की जनता की ओर से लगातार नज़रअंदाज़ होती रही हैं. )

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