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EXPLAINER: शुभांशु शुक्ला ने स्पेस में किए कितने प्रयोग और क्या काम आएंगे ये एक्सपेरिमेंट, जानें

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में शुभांशु शुक्ला ने मूंग और मेथी के बीज भी उगाए हैं. इस दौरान माइक्रोग्रैविटी में बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया का अध्ययन किया गया है. इसके आधार पर ये देखा जा रहा है कि इन्हें कैसे भविष्य की ज़रूरतों के लिए अंतरिक्ष में उगाया जा सकेगा. इन बीजों से उगे पौधों को धरती पर भी कई चक्रों में आगे उगाया जाएगा.

  • भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने Axiom 4 मिशन के तहत 14 दिनों में लगभग साठ प्रयोग किए, जिनमें सात प्रमुख शोध शामिल थे
  • मायोजेनेसिस प्रयोग में माइक्रोग्रैविटी के मांसपेशियों पर प्रभाव का अध्ययन किया गया, जो अंतरिक्ष यात्रियों और बुजुर्गों के लिए उपयोगी होगा
  • फसलों के बीजों पर किए गए प्रयोग में अंतरिक्ष की माइक्रोग्रैविटी का उनके जेनेटिक गुणों पर प्रभाव देखा गया, जिससे भविष्य में अंतरिक्ष में खेती संभव हो सकेगी
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नई दिल्ली:

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला एक कामयाब अंतरिक्ष यात्रा के बाद अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ धरती पर सकुशल लौट आए हैं. उनके Axiom 4 मिशन के तहत 14 दिन में सभी अंतरिक्षयात्रियों ने करीब 60 तरह के प्रयोग किए. शुभांशु शुक्ला के ज़िम्मे इस दौरान सात बड़े प्रयोग रहे जो आने वाले दिनों में भारतीय अंतरिक्ष मिशनों में बड़े काम आने वाले हैं.

पहला प्रयोग

सबसे पहले प्रयोग का नाम है मायोजेनेसिस. इसके तहत अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी के मांसपेशियों पर असर का अध्ययन किया गया. अंतरिक्ष में लंबा समय बिताने वाले अंतरिक्षयात्रियों की मांसपेशियां घटने लगती हैं, कमज़ोर पड़ने लगती हैं. भारत का Institute of Stem Cell Science and Regenerative Medicine माइक्रोग्रैविटी में होने वाले इस प्रयोग के तहत मांसपेशियों से जुड़ी बीमारियों का आगे अध्ययन करेगा और ऐसे इलाज विकसित कर सकेगा जो भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों और बुज़ुर्गों के लिए काफ़ी कारगर हों.

दूसरा प्रयोग

शुभांशु शुक्ला ने स्पेस स्टेशन में जो दूसरा प्रयोग किया वो फसलों के बीजों से जुड़ा है. इस प्रयोग में ये देखा गया कि अंतरिक्ष यात्रा के दौरान माइक्रोग्रैविटी का बीजों के जेनेटिक गुणों पर क्या असर पड़ता है. इसके लिए छह तरह की फसलों के बीजों पर शोध किया गया. भविष्य में होने वाली अंतरिक्ष यात्राओं में इंसान को अंतरिक्ष में ही फसल उगाने की ज़रूरत पड़ेगी. ये प्रयोग उसी की तैयारी के सिलसिले में किया गया. केरल कृषि विश्वविद्यालय ने इस रिसर्च का प्रस्ताव दिया था जो भविष्य के मानव मिशनों के काफ़ी काम आएगी.

तीसरा प्रयोग

तीसरा प्रयोग काफ़ी दिलचस्प है. ये प्रयोग हुआ वॉटर बियर के नाम से जाने-जाने वाले बहुत ही छोटे जीव टार्डीग्रेड्स पर किया गया जो अधिक से अधिक आधे मिलीमीटर के ही होते हैं. इस प्रयोग से ये पता किया जा रहा है माइक्रोग्रैविटी का टार्डीग्रेड्स के शरीर पर कैसा असर पड़ता है. आठ पैरों वाले टार्डीग्रेड्स को दुनिया का सबसे कठोर और सहनशील जीव माना जाता है. ये धरती पर 60 करोड़ साल से जी रहे हैं, डायनासोर से भी करीब 40 करोड़ साल पहले से. धरती पर हर बड़े संकट को इन्होंने कामयाबी से झेला है. ये सालों तक बिना खाना-पानी के रह सकते हैं, भयानक गर्मी झेल सकते हैं, रेडिएशन और वैक्यूम में भी ज़िंदा रह सकते हैं. इसके लिए ये अपने मैटाबोलिक फंक्शन को बिलकुल रोक लेते हैं. इनके शरीर की इन ख़ूबियों पर माइक्रोग्रैविटी के असर का अध्ययन किया गया है. ये भी जानने की कोशिश की गई कि कि वो अंतरिक्ष की परिस्थितियों में कैसे प्रजनन करते हैं. इस शोध का मक़सद ये जानना है कि extreme conditions में कैसे जीवन बना रह सकता है. जो भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों में काफ़ी काम आयेगा.

चौथा प्रयोग

चौथा प्रयोग माइक्रोएल्गी यानी सूक्ष्म शैवाल पर माइक्रोग्रैविटी के असर के अध्ययन से जुड़ा रहा. ये single cellular यानी एककोशिकीय शैवाल होते हैं. इस मिशन के तहत तीन तरह के माइक्रोएल्गी स्पेस स्टेशन में ले जाए गए. ये मीठे पानी और समुद्री वातावरण दोनों में पाए जाते हैं. माइक्रोग्रैविटी में इनका विकास कर ये देखा गया कि क्या भविष्य के लंबे मिशनों में अंतरिक्षयात्रियों के पोषण में उनकी भूमिका हो सकती है. पौधों की तरह फोटोसिंथेसिस से ये ऑक्सीजन बनाते हैं और कार्बन को अवशोषित करते हैं. अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी में ऑक्सीजन रिसाइक्लिंग में भी उनकी भूमिका पर शोध किया गया.

पांचवा प्रयोग

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में शुभांशु शुक्ला ने मूंग और मेथी के बीज भी उगाए हैं. इस दौरान माइक्रोग्रैविटी में बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया का अध्ययन किया गया है. इसके आधार पर ये देखा जा रहा है कि इन्हें कैसे भविष्य की ज़रूरतों के लिए अंतरिक्ष में उगाया जा सकेगा. इन बीजों से उगे पौधों को धरती पर भी कई चक्रों में आगे उगाया जाएगा. यानी उनसे निकले बीजों को अंकुरित कर नए पौधे तैयार किए जाएंगे. ये देखा जाएगा कि उन बीजों के जेनेटिक्स और माइक्रोबियल लोड पर क्या असर पड़ा है. इसके अलावा मूंग और मेथी के बीजों की पोषण क्षमता में आए बदलाव का भी अध्ययन चल रहा है.

छठा प्रयोग

शुभांशु शुक्ला का छठा प्रयोग स्पेस स्टेशन में बैक्टीरिया की दो किस्मों पर शोध से जु़ड़ा रहा. ये बैक्टीरिया सायनोबैक्टीरिया कहा जाता है. जिसे आम भाषा में ब्लू-ग्रीन एल्गी भी कहा जाता है. ये फोंटोसिंथेसिस में सक्षम है यानी प्रकाश और ऑक्सीजन के इस्तेमाल से अपना खाना बनाता है और कार्बनडाइऑक्साइड छोड़ता है. ये देखा गया कि माइक्रोग्रैविटी का सायनो बैक्टीरिया पर कैसा असर पड़ता है. उसकी जैव रसायनिक यानी बायोकैमिकल प्रक्रियाओं में किस तरह के बदलाव आते हैं. भविष्य में लंबे अंतरिक्ष मिशनों में इंसान के जीने लायक परिस्थिति बनाने के लिए ये प्रयोग भी काफ़ी अहम है.

सातवां प्रयोग

अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने जो सातवां प्रयोग किया, उसमें ये देखा गया कि अंतरिक्ष में माइक्रोग्रैविटी की परिस्थितियों में कंप्यूटर स्क्रीन का आंखों पर कैसा असर पड़ता है. आंखों के मूवमेंट, उनकी एक चीज़ पर ध्यान लगाने की क्षमता का अध्ययन किया गया. अंतरिक्षयात्रियों को अपने काम के सिलसिले में कंप्यूटर स्क्रीन का काफ़ी इस्तेमाल करना होता है. जो उनके अंदर स्ट्रेस को भी बढ़ाता है. इस प्रयोग में इस सबका अध्ययन किया गया है.

कुल मिलाकर पेशे से फाइटर पायलट शुभांशु शुक्ला अपने अंतरिक्ष मिशन में एक रिसर्च साइंटिस्ट की तरह भी प्रयोगों में जुटे रहे.

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