
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत साफ़ कर चुका है कि पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते. इसी के तहत 22 अप्रैल के बाद से भारत ने पाकिस्तान की ओर बहने वाली सभी छह नदियों का इस्तेमाल अपने हित में करने का फ़ैसला किया. सिंधु समझौते को स्थगित कर दिया. पाकिस्तान पर इसका नतीजा दिखने लगा है. ख़रीफ़ की फसल की बुवाई का समय आ गया है और पाकिस्तान के एक बड़े इलाके में पानी की किल्लत उसकी खेती पर भारी पड़ने वाली है. पाकिस्तान में झेलम नदी पर मंगला बांध और सिंधु नदी पर तरबेला बांध में पानी काफ़ी कम हो गया है.
पानी के लिए तरस रहा पाकिस्तान

Indus River System Authority के मुताबिक पाकिस्तान के बांधों में पानी की औसत कमी 21% है और मंगला और तरबेला बांध में लाइव स्टोरेज यानी पानी 50% के क़रीब ही रह गया है. ऊपर से चिनाब नदी पर पाकिस्तान के मराला वॉटरवर्क्स में भी पानी कम पहुंच रहा है. हालांकि, मॉनसून के आने से ये स्थिति सुधर सकती है, लेकिन पाकिस्तान तक मॉनसून के पहुंचने में अभी वक़्त है. पाकिस्तान के सिंध के एक बड़े इलाके में इस साल भी सूखा पड़ने के आसार हैं. सिंध में इस सीज़न में औसत से 62% कम बारिश हुई है और बलूचिस्तान में औसत से 52% कम बारिश. संयुक्त राष्ट्र की संस्था Food and Agriculture Organization (FAO) के मुताबिक पाकिस्तान दुनिया के सबसे water-stressed nations में से एक है यानी उन देशों में जहां पानी की कमी का संकट सबसे ज़्यादा है. पाकिस्तान की जीडीपी में खेती का योगदान 25% है और पाकिस्तान में 37% रोज़गार खेती से मिलता है. ऐसे में आने वाले दिनों में पानी की मार पाकिस्तान को भारी पड़ सकती है.
पाकिस्तान दे रहा भारत को गीदड़भभकी
भारत द्वारा सिंधु समझौते को स्थगित करने के बाद अब पाकिस्तान को नदियों में पानी के आंकड़े मिलने बंद हो गए हैं. भारत कब अपने बांधों से पानी छोड़ेगा या कब पानी रोकेगा इसकी जानकारी भी नहीं दे रहा. यही नहीं पानी को लेकर पाकिस्तान को तरसाने के लिए भारत अब इससे भी बड़ी तैयारी कर रहा है. पाकिस्तान के नेताओं और फौजी अफ़सरों को पता है कि पानी की समस्या बहुत बड़ी होने वाली है. इसलिए वो भारत को धमकाने पर उतर आए हैं.
पाकिस्तानी जनरल शमशाद मिर्ज़ा ने हाल ही में बयान दिया, "सिंधु जल संधि को स्थगित करके पानी का शस्त्रीकरण करना अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की पूरी तरह अवहेलना है. चूंकि यह पाकिस्तान के लोगों के लिए अस्तित्व का खतरा है. यदि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा समिति द्वारा स्पष्ट रूप से बताए गए अनुसार पाकिस्तान के हिस्से के पानी को रोकने, मोड़ने या विलंबित करने का प्रयास किया जाता है, तो इसे युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा."
सिंधु जल संधि में किसे क्या मिला

तो पाकिस्तान को पता है कि अब उसे पानी का संकट झेलना पड़ सकता है, लेकिन कैसे? इसे समझने से पहले आपको याद दिला दें कि भारत से छह बड़ी नदियां पाकिस्तान पहुंचती हैं. इनमें सबसे ऊपर की तीन नदियां सिंधु, झेलम और चिनाब पश्चिमी नदियां कही जाती हैं और सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तान को इन नदियों पर असीमित अधिकार मिला और भारत को सीमित अधिकार मिला, जिसके तहत वो इन नदियों के पानी का इस्तेमाल पीने, सिंचाई या फिर रन ऑफ़ द रिवर जलविद्युत परियोजनाएं बनाने के लिए कर सकता था, लेकिन पानी का रास्ता नहीं बदल सकता. बाकी तीन नदियों रावी, व्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां कहा जाता है और भारत के पास इन नदियों के पानी के इस्तेमाल का पूरा हक़ रहा, लेकिन तथ्य ये है कि भारत से आने वाली इन सभी नदियों का 80% पानी पाकिस्तान बह जाता है और भारत सिर्फ़ 20% का इस्तेमाल कर पाता है. स्वाभाविक है इन नदियों का पानी पाकिस्तान जाएगा ही, क्योंकि वो डाउनस्ट्रीम में है. नदियों का कुदरती ढाल पानी को उसी ओर पहुंचाता है. जिन नदियों पर पाकिस्तान को सबसे पहले सबसे बड़ा झटका दिया जा सकता है उनमें से एक है चिनाब नदी. चिनाब नदी पर भारत कई बांध बन चुका है और कुछ बन रहे हैं, जैसे इनमें से जो ख़ास बांध हैं वो हैं...
- पाकलदुल (1000 MW) - निर्माणाधीन
- दुलहस्ती (280 MW) - पूरा
- रातले (900 MW) - निर्माणाधीन
- बगलिहार (1000 MW) - 2009 में पूरा
- सावलकोट (1856 MW) - निर्माणाधीन
- सलाल - 690 MW - 1987 में पूरा
इनमें दो बांध सबसे ख़ास हैं. रामबन में 1000 मेगावॉट का बगलिहार बांध जो 2009 से काम कर रहा है. दूसरा बांध है यहां से नदी के रास्ते 60 से 70 किलोमीटर दूर रियासी में चिनाब नदी पर आख़िरी बांध सलाल, जो 690 मेगावॉट का है और 1987 से काम कर रहा है. यानी दोनों ही बांधों में बिजली का उत्पादन हो रहा है. 22 अप्रैल के बाद से भारत ने इन दोनों ही बांधों में पानी को रोकने और छोड़ने से जुड़े आंकड़े पाकिस्तान को बताने बंद कर दिए हैं. इस कारण पाकिस्तान इनसे आने वाले पानी के इस्तेमाल की कोई ठोस योजना नहीं बना पाता. इन बांधों के ज़रिए भारत अपनी सुविधा के हिसाब से पानी रोक और छोड़ रहा है. अब आख़िरी बांध सलाल पाकिस्तान के लिए नई मुसीबत बन सकता है. इस बांध के ज़रिए पाकिस्तान की परेशानी कैसे बढ़ाई जा सकती है, इस पर बात करने से पहले ये जान लेते हैं कि बांध में होता क्या है...
पानी कैसे रोकेगा बांध

किसी भी नदी पर बांध इसलिए बनाए जाते हैं ताकि उसके पानी के इस्तेमाल से बिजली पैदा की जा सके. इसके लिए पानी को पहले रोकना होता है, जिसके लिए डैम यानी बांध बनाना होता है जो ईंट, कंक्रीट या मिट्टी की एक मज़बूत दीवार होती है. नदी दो ओर पहाड़ियों से घिरी होती है और तीसरी ओर से ये दीवार खड़ी हो जाती है. पीछे से आने वाला पानी रुकने लगता है और इस पानी को एक निश्चित ऊंचाई से सुरंगों के ज़रिए टर्बाइन्स पर गिराया जाता है, पानी की ताक़त टर्बाइन्स को घुमाती है, जिससे बिजली पैदा की जाती है. नदियों से जो पानी आता है, उसमें काफ़ी मात्रा में गाद होती है यानी पहाड़ों के कटाव से आने वाली मिट्टी जिसे सिल्ट भी कहा जाता है. समय के साथ साथ सिल्ट बांध में नीचे जमा होती जाती है, जिससे पानी के भंडारण के लिए जगह कम पड़ती है. वैसे बांधों में सिल्ट यानी गाद को कम करने के तकनीकी उपाय होते हैं, डिसिल्टिंग बेसिन बनाए जाते हैं, लेकिन फिर भी सिल्ट को बांध में आने से पूरी तरह नहीं रोका जा सकता. सिल्ट को निकालने के लिए बांधों में नीचे गेट बनाए जाते हैं, जिन्हें स्लूस गेट कहा जाता है. इन गेटों को खोल दिया जाए तो सारा सिल्ट आगे बह जाता है. इसे फ्लशिंग कहते हैं. सिल्ट निकल जाने से पानी के भंडारण की जगह बन जाती है.
पाकिस्तान जताता रहा है ऐतराज
अब आते हैं सलाल बांध पर, जिसे सिंधु नदी समझौते के तहत ही बनाया गया. यानी रन ऑफ़ द रिवर प्रोजेक्ट ही बनाया गया. 690 मेगावॉट के इस बांध को बनाते वक़्त भी पाकिस्तान ने काफ़ी ऐतराज़ किया था, जैसा बाद में उसने बगलिहार बांध को लेकर भी किया. सलाल बांध को दरअसल पहले स्टोरेज डैम के तौर पर बनाने की योजना थी, ताकि उससे बिजली उत्पादन की क्षमता ज़्यादा हो जाए, लेकिन पाकिस्तान और वर्ल्ड बैंक के आग्रह पर इसे रन ऑफ द रिवर डैम बनाने का फ़ैसला किया गया. पाकिस्तान को डर था कि स्टोरेज डैम बना तो भारत किसी झड़प की स्थिति में पूरा पानी छोड़कर पाकिस्तान में बाढ़ ला सकता है या फिर जब नदियों में पानी कम हो तो पाकिस्तान का पानी रोक सकता है. सलाल डैम को पहले अंडर स्लूस गेट बनाने के लिए डिज़ाइन किया गया था. यानी बांध में नीचे की ओर छोटे रास्ते जिनसे पानी को अलग अलग स्तरों पर निकाला जा सके और जिनके ज़रिए सिल्ट को भी बांध से बाहर निकाला जा सके, लेकिन पाकिस्तान के ऐतराज़ के बाद सिंधु नदी समझौते के तहत भारत इन अंडर स्लूस गेट्स को स्थायी तौर पर बंद करने को तैयार हो गया. स्लूस गेट की जगह को कंक्रीट से प्लग कर दिया गया यानी बांध में उस जगह पर कंक्रीट की मोटी दीवार ही बनवा दी गई. इस कारण सलाल बांध में बीते 38 साल में सिल्ट इतना भर गया है कि उसमें पानी के भंडारण की क्षमता 50% से भी कम रह गई है.

अब अगर सलाल बांध से सारे सिल्ट को बाहर निकालना है तो इस अंडर स्लूस गेट को खोलना ज़रूरी है, जो कंक्रीट से बंद कर दिए गए हैं. तो पहले वहां तक पहुंचना होगा, जहां अंडर स्लूस गेट बने हैं. सिल्ट के काफ़ी ऊपर तक जमा होने के कारण वहां पहुंचना मुश्किल काम है, लेकिन इंजीनियरिंग में इसका भी तरीका है. लोहे के कम से कम चार-पांच मीटर चौड़े लोहे के एक बड़े खाली सिलिंडर के इस्तेमाल से यहां तक पहुंचा जा सकता है जैसा अक्सर नदियों में पुल के पिलर बनाने के लिए किया जाता है. इस सिलिंडर के ज़रिए सिल्ट हटाते हुए नीचे स्लूस गेट की जगह तक पहुंचा जा सकता है और फिर स्लूस गेट को जिस कंक्रीट से बंद किया गया था उसे हटाया जा सकता है. ऐसा आधुनिक मशीनों के ज़रिए किया जाना संभव है. एक बार ये कंक्रीट हटा और स्लूस गेट की मरम्मत हो गई तो फिर भारत नीचे जमा इस सारे सिल्ट को धीरे धीरे बांध से आगे निकाल सकता है. सिल्ट हटेगी तो बांध में पानी के भंडारण के लिए जगह बनेगी. फिर भारत ज़्यादा पानी रोक सकता है. अपना बिजली उत्पादन बढ़ा सकता है और पाकिस्तान को पानी के साथ-साथ सिल्ट की मार भी पड़नी शुरू हो जाएगी. ये सिल्ट पाकिस्तान में आगे उसके कैनाल सिस्टम और बांध के लिए मुसीबत बन सकती है. हालांकि ये भी ध्यान रखना होगा कि सलाल बांध के आगे भारत का भी काफ़ी इलाका आता है. बाद में ऐसा ही बगलिहार बांध में भी किया जा सकता है.
चीन दिखा रहा भारत को लाल आंखें

अब आते हैं इसी से जुड़े दूसरे मुद्दे पर. वो भी पानी से ही जुड़ा है और इसमें खिलाड़ी है चीन. आतंकवाद के मुद्दे पर भारत अब नदियों को लेकर पाकिस्तान को जो सबक सिखाने जा रहा है, उसे देखते हुए पाकिस्तान का दोस्त चीन भारत को आंखें दिखाता लग रहा है. भारत द्वारा सिंधु नदी समझौते को स्थित बीजिंग स्थित Center for China and Globalization के वाइस प्रेज़ीडेंट विक्टर झ़िकाई गाओ ने एक सख़्त बयान दिया है. कहा कि दूसरों के साथ वो नहीं करना चाहिए, जो आप अपने साथ नहीं होने देना चाहते. ये कहने से उनका आशय है कि अगर भारत ने पाकिस्तान का पानी रोका तो चीन भी भारत में आने वाले पानी को रोक सकता है. अब सवाल ये है कि क्या चीन भारत को परेशान कर सकता है और कर सकता है तो कितना? चीन से भारत में सबसे प्रमुख नदी जो आती है वो है ब्रह्मपुत्र. ब्रह्मपुत्र चीन के स्वायत्तशासी तिब्बत प्रांत में मानसरोवर झील के क़रीब चेमायुंगडुंग ग्लेशियर से निकलती है उसे चीन में यार्लुंग सांगपो कहा जाता है. इस नदी पर चीन पहले ही कई बड़े बांध बना चुका है. अब दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की तैयारी है.
चीन ने शुरू किया था पानी को हथियार बनाना
कुल मिलाकर क़रीब 2900 किलोमीटर लंबी यार्लुंग सांगपो नदी हिमालय के उस पार तिब्बत के पठार पर 2057 किलोमीटर दूर तक पश्चिम की ओर बहती है और उसके बाद अरुणाचल प्रदेश से होकर भारत में प्रवेश करती है. भारत के बाद ये बांग्लादेश जाती है और फिर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है. लेकिन भारत में प्रवेश से ठीक पहले ये नदी एक तीव्र यू टर्न लेती है. यही वो इलाका है जहां चीन दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम बनाने जा रहा है. जिसे Great Bend Dam भी कहा जा रहा है. वैसे तो तिब्बत में क़रीब 2000 किलोमीटर बहने वाली यार्लुंग सांगपो नदी और उसकी सहायक नदियों पर पहले से ही कई बांध बने हुए हैं और कई बन रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ा बांध अब मेडॉग काउंटी में बनने जा रहा है. 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक यार्लुंग सांगपो पर बनने वाला सबसे बड़ा बांध 60 हज़ार मेगावॉट क्षमता का होगा. दुनिया के सबसे बड़े Three Gorges Dams से इसकी क्षमता तीन गुना से ज़्यादा होगी. जो चीन द्वारा ही बनाया गया है.

यार्लुंग सांगपो अरुणाचल प्रदेश से भारत में प्रवेश करती है, जहां इसे सियांग नदी कहा जाता है और आगे ब्रह्मपुत्र नदी. चीन द्वारा अपने इलाके में इस नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने की बात से में भी चिंता पैदा हो गई है. आशंका जताई जा रही है कि इससे चीन ब्रह्मपुत्र के पानी पर नियंत्रण कर सकेगा. बांध के बड़े जलाशय में अपनी ज़रूरत के मुताबिक पानी रोक सकेगा और ज़रूरत के हिसाब से छोड़ सकेगा. अगर कभी चीन अचानक पानी छोड़ दे तो भारत में ब्रह्मपुत्र के आसपास के इलाकों में बाढ़ आ सकती है. चीन के साथ विश्वास की कमी ऐसे चिंताओं को और बढ़ाती है. बरसात के दिनों में ब्रह्मपुत्र वैसी ही विकराल हो उठती है. ये बांध ब्रह्मपुत्र नदी के पूरे इकोसिस्टम को प्रभावित करेगा. उसमें रहने वाले जलीय जीव जंतुओं पर इसका असर पड़ना तय है. एक बात ध्यान देनी ज़रूरी है, वो ये कि चीन 2022 से ही ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदी, जो तिब्बत से हिमाचल में जाती है, उनसे जुड़े हाइड्रोलॉजिकल डेटा भारत को नहीं दे रहा है, लेकिन भारत को नसीहत देने में पीछे नहीं है. हाइड्रोलॉजिकल डेटा का मतलब है कि नदी में कितना पानी ऊपर से आ रहा है, बारिश कैसी हो रही है, नदी का स्तर क्या है वगैरह वगैरह.
चीन क्या रोक सकता है भारत का पानी
भारत में ब्रह्मपुत्र नदी छह राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम नागालैंड, मेघालय, सिक्किम और पश्चिम बंगाल से होकर बहती है. केंद्र सरकार के साथ इन राज्यों की सरकारें भी चीन में बन रहे बांध को लेकर चिंता जता रही हैं. भारत सरकार ने इस सिलसिले में चीन को अपनी चिंता बता दी है. अब सवाल ये है कि चीन भारत का कितना पानी रोक सकता है? सेंट्रल वॉटर कमीशन के मुताबिक ब्रह्मपुत्र नदी में 60% पानी भारत से आता है और 40% पानी तिब्बत से. भारत में ब्रह्मपुत्र जिन इलाकों से होकर बहती है, वो बारिश के लिहाज़ से काफ़ी समृद्ध हैं. इसके बावजूद अगर नदी ऊपरी इलाके में सूखी तो निचले इलाके पर उसके इकोसिस्टम पर फर्क़ तो पड़ेगा ही.
चीन के खिलाफ क्या है भारत की रणनीति
एक और बड़ी चिंता ये है कि चीन अगर अचानक से अपने बांध से पानी छोड़ दे तो भारत में ब्रह्मपुत्र के आसपास के इलाकों में भयानक बाढ़ आ सकती है. यही वजह है कि कुछ लोग इसे चीन का वॉटर बम बता रहे हैं. जानकारों के मुताबिक चीन कभी ऐसा न कर पाए, इससे निपटने के लिए भारत भी अरुणाचल के अपर सियांग ज़िले में देश का सबसे बड़ा बांध बनाने की तैयारी कर रहा है. अनुमान के मुताबिक क़रीब 11 हज़ार मेगावॉट के इस बांध के जलाशय में मॉनसून के दिनों में क़रीब 9 अरब घन मीटर पानी स्टोर किया जा सकेगा. इससे पीने के पानी और सिंचाई की ज़रूरतें भी पूरी होंगी. हालांकि, पर्यावरण के लिहाज़ से इतने संवेदनशील इलाके में बांध बनाने का भी विरोध तेज़ हो रहा है. वैसे सीमा पार की नदियों को लेकर भारत और चीन के बीच 2006 से एक Expert Level Mechanism (ELM) काम कर रहा है, जिसके तहत चीन तिब्बत से निकलने वाली ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के जलस्तर से जुड़ी जानकारियां भारत को मुहैया कराता है.
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