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Explainer: 1 हिडमा, 10 हजार जवानः नक्सलियों के खिलाफ सबसे बड़ा अभियान, पूरे ऑपरेशन की ABCD समझिए

जानकारों के मुताबिक इस बार उनकी जैसी घेराबंदी की गई है ऐसी पहले कभी नहीं हुई. इस बार नक्सलियों के साथ यहां लड़ाई आर-पार की है. सुरक्षा बल पूरे ऐहतियात के साथ करीब 200 किलोमीटर व्यास के इस इलाके में अपना घेरा कसते जा रहे हैं. बीजापुर में बैठे सभी उच्च अधिकारी ऑपरेशन पर पूरी बारीकी से निगाह रखे हुए हैं.

आजकल दो जगहों पर एक साथ सुरक्षा बलों के दो बहुत बड़े ऑपरेशन चल रहे हैं. पहला ऑपरेशन जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के आसपास की पहाड़ियों पर चल रहा है जहां बैसरन हमले में 26 लोगों की हत्या के बाद आतंकी छुपे हुए हैं और उनका पता लगाने के लिए सुरक्षा बलों ने जंगलों में सघन कॉम्बिंग अभियान छेड़ा हुआ है. दूसरा ऑपरेशन यहां से करीब ढाई हज़ार किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की सीमा के करीब, जहां कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों पर सीपीआई माओवादी के सैकड़ों हथियारबंद नक्सलियों को सुरक्षा बलों ने चारों ओर से घेरा हुआ है. ये नक्सलियों के खिलाफ आज तक का सबसे बड़ा ऑपरेशन बताया जा रहा है जिसमें सुरक्षा बलों के करीब दस हजार जवान शामिल हैं.

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निर्णायक ऑपरेशन... 500 नक्सलियों में दहशत 

छत्तीसगढ़-तेलंगाना की सीमा पर ये है वो इलाका जहां नक्सलवाद की कमर तोड़ने के लिए सुरक्षा बलों ने कम से कम 500 नक्सलियों को चारों ओर से घेर लिया है. ये है कर्रेगुट्टा, नाडपल्ली और पुजारीकांकेर की पहाड़ियां जिनके घने जंगल नक्सलियों की पनाहगाह हुआ करते थे. लेकिन इस निर्णायक ऑपरेशन से लगता है कि इस इलाके से नक्सलियों का सफाया बस कुछ दिनों की ही बात है. ये इलाका नक्सलियों की सबसे घातक यूनिट बटैलियन नंबर वन का गढ़ रहा है. खास बात ये है कि जिन नक्सलियों को घेर लिया गया है उनमें नक्सलियों के सबसे बड़े कमांडरों में शामिल हिडमा, देवा और विकास भी हैं जो इस इलाके में आतंक के पर्याय बन चुके थे और बीते दो दशक में हुए लगभग हर हमले के पीछे उनका हाथ, उनका दिमाग रहा है.

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घेराबंदी और अब लड़ाई आर-पार की

जानकारों के मुताबिक इस बार उनकी जैसी घेराबंदी की गई है ऐसी पहले कभी नहीं हुई. इस बार नक्सलियों के साथ यहां लड़ाई आर-पार की है. सुरक्षा बल पूरे ऐहतियात के साथ करीब 200 किलोमीटर व्यास के इस इलाके में अपना घेरा कसते जा रहे हैं. बीजापुर में बैठे सभी उच्च अधिकारी ऑपरेशन पर पूरी बारीकी से निगाह रखे हुए हैं. नक्सलियों ने सुरक्षा बलों को रोकने के लिए यहां बारूदी सुरंगें बिछाई हुई हैं. लेकिन बारूदी सुरंगों को हटाने के लिए सुरक्षा बलों की खास यूनिट लगाई गई हैं जो उन्हें हटाकर धीरे धीरे आगे बढ़ रही हैं. नक्सलियों के खिलाफ इस ऑपरेशन में जो कमांडो शामिल हैं उनमें महाराष्ट्र के C-60, तेलंगाना के ग्रेहाउंड्स और छत्तीसगढ़ के DRG जवान शामिल हैं. ये सभी जवान नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई में माहिर हैं. सुरक्षा बलों ने जिन नक्सलियों को घेरा है उनमें उनके कमांडर हिडमा और देवा के अलावा सीपीआई-माओवादी की सेंट्रल कमेटी, दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी), DVCM, ACM और संगठन सचिव जैसे बड़े स्तर के कैडर भी शामिल हैं.

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सरकार से बातचीत की अपील

खुद को घिरते देख नक्सली अब सरकार से बातचीत की पेशकश कर रहे हैं. बीजापुर-तेलंगाना सीमा पर नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन रोकने की अपील की गई है. नक्सलियों के उत्तर पश्चिम बस्तर ब्यूरो के प्रभारी रूपेश ने ये प्रेस नोट जारी किया है. इसमें कहा गया है कि ऑपरेशन रुकने पर नक्सली वार्ता के लिए आगे आने को तैयार हैं. लेकिन इस बार ये ऑपरेशन अपने तार्किक नतीजे से पहले रुकता नजर नहीं आ रहा.

दुर्गम इलाके में ऑपरेशन 
पूरे इलाके में ये ऑपरेशन चल रहा है वो एक दुर्गम इलाका है. जहां घने जंगल हैं, नदी, नाले हैं और छुपने की कई जगहें हैं जिनके सहारे नक्सली यहां से सुरक्षा बलों और अन्य लोगों पर हमले करते रहे हैं. इन जंगलों का हर मोड़ और घाटी पर नक्सलियों ने जाल बिछाया हुआ है और यहां हर कदम पर मौत छुपी हो सकती है. इस पूरे इलाके में मीडियम मशीन गनों से लैस सुरक्षा बलों के हेलिकॉप्टर लगातार गश्त लगा रहे हैं. ड्रोन से नक्सलियों के हर मूवमेंट पर नजर रखी जा रही है. यहां की खड़ी पहाड़ियों में नक्सलियों ने अपने बंकर भी बनाए हुए हैं, जहां भारी मात्रा में असलाह बारूद उन्होंने जमा किया हुआ है. जैसा हमने बताया कि नक्सलियों ने इन जंगलों में कई जगहों पर बारूदी सुरंगें बिछाई हुई हैं लिहाज़ा ऑपरेशन धीमे-धीमे आगे बढ़ रहा है. किसी तरह की जल्दबाजी नहीं की जा रही. लेकिन ऑपरेशन निर्णायक दिशा में आगे बढ़ रहा है. इस ऑपरेशन में शामिल अधिकारियों का कहना है कि अब नक्सलियों के पास दो ही विकल्प बचे हैं, या तो वो हथियार डालकर आत्मसमर्पण करें या फिर मारे जाएं.

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नक्सलियों के खिलाफ इस अभियान में सुरक्षा बल दो तरफा रणनीति अपना रहे हैं. एक ओर करीब दस हजार जवान नक्सलियों पर चारों ओर से लगातार शिकंजा कस रहे हैं. दूसरी ओर नक्सलियों की रसद की सप्लाई को उन्होंने काट दिया है. सूत्रों के मुताबिक पहले नक्सलियों को नम्बी, पूवराती, पुजारी कांकेर, और तेलंगाना के वेंकटपुरम से रसद और जरूरी सामान यहां तक पहुंचता था. लेकिन सुरक्षा बलों ने इस सप्लाई चेन को काट दिया है. इन इलाकों में अब खामोशी है. खुफिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भूख, प्यास, और थकान के बीच फंसे 500 से ज़्यादा नक्सली अपने अस्तित्व के सबसे खतरनाक इम्तिहान से गुजर रहे हैं.

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इसी ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों से झड़प में तीन महिला नक्सलियों समेत पांच नकस्ली मारे जा चुके हैं. सूत्रों के मुताबिक संकेत मिल रहे हैं कि ये मुठभेड़ अब अपने चरम पर पहुंच रही है. उधर, ऑपरेशन में शामिल हजारों जवानों तक रसद और हथियारों की सप्लाई में कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही. जरूरी सामान पहुंचाने के लिए हेलिकॉप्टर लगातार उड़ान भर रहे हैं.

नक्सलियों की रीढ़ तोड़ने की ओर बढ़ता हुआ कदम 

नक्सलियों के खिलाफ इस ऐतिहासिक ऑपरेशन की दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तेलंगाना की सरकारें करीब से निगरानी कर रही हैं. छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा, ADG विवेकानंद सिन्हा, IG CRPF राकेश अग्रवाल और बस्तर IG सुंदरराज पी. की निगाहें सुरक्षाबलों के हर मूवमेंट पर हैं. उन्हें हर मुठभेड़ और रास्ते में आने वाली बाधा की लाव रिपोर्ट मिल रही है. कहा जा रहा है कि यह सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं, एक रणनीतिक बदलाव है. नक्सलियों की रीढ़ तोड़ने की ओर बढ़ता हुआ कदम है. अब CRPF, DRG, STF और लोकल पुलिस की संयुक्त रणनीति ने उन इलाकों को भी छू लिया है, जिन्हें अब तक 'लाल ज़ोन' कहा जाता था.

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जानकारों के मुताबिक इस ऑपरेशन की एक खास बात ये है कि इसमें आम नक्सली नहीं बल्कि उनके कई कुख्यात कमांडर जैसे हिडमा, देवा, केशव, सहदेव भी पूरी तरह से शिकंजे में हैं और उनकी सबसे घातक बटैलियन, बटैलियन नंबर वन पूरी तरह से सुरक्षा बलों के शिकंजे में फंस गई है. इस ऑपरेशन में घिरे दो नक्सली कमांडरों का जिक्र करना जरूरी है. हिडमा और देवा. दोनों ही सुकमा-बीजापुर सीमा पर बसे पूवराती गांव से हैं, जो टेकलगुड़म के क़रीब है. ये पूरा इलाका बटैलियन नंबर वन का गढ़ रहा है.

 पिछले साल तक Maoists Peoples Liberation Guerilla Army Battalion नंबर 1 का कमांडर रहा हिडमा अब सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी में शामिल है यानी पिछले साल उसका कद और बढ़ गया. हिडमा नक्सलियों के बीच एक मिथक की तरह रहा है. वो एक गोंड आदिवासी है जो इसी इलाके में पैदा और बड़ा हुआ यहां के जंगलों के हर मोड़, हर नदी, नाले, गुफ़ा और पहाड़ी से वो वाकिफ़ है. 16 साल की उम्र में वो नक्सली बन गया बीते कई साल से वो छत्तीसगढ़ से लेकर तेलंगाना सीमा तक माओवादी हमलों का नेतृत्व करता रहा है. उसकी बटैलियन दक्षिण बस्तर, बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा में सक्रिय है. ये वो इलाके हैं जो सालों से माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष का केंद्र बनी हुई हैं. सुरक्षा बलों का मानना है कि हिडमा नक्सलियों के सबसे बड़े हमलों का मास्टरमाइंड रहा और उनकी अगुवाई की.

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2013 में झीरमघाटी का हमला रहा हो जिससे छत्तीसगढ़ के पूरे कांग्रेस नेतृत्व का सफाया हो गया था. इसके अलावा भेज्जी, बुरकापाल, मिनपा और तेरम में हुए हमलों में भी हिडमा का हाथ माना जाता है. हिडमा के सिर पर छत्तीसगढ़ और अन्य सरकारों ने कुल एक करोड़ रुपए का इनाम रखा हुआ है. हिडमा क़रीब 40 से 50 साल के बीच का बताया जाता है. कद काठी में चुस्त और छरहरा है, पतली मूंछें रखता है और हर वक़्त एके 47 राइफल उसके साथ रहती है.. उसके कई उपनाम भी बताए जाते हैं.  फ़ाइलों में कहीं उसका पहला नाम मांडवी लिखा है तो कहीं माडवी.. लेकिन पुलिस के लोग उसे हिडमा के नाम से ही जानते हैं.

काफी शातिर रहा हिडमा टैक्नोलॉजी की भी समझ रखता है. सीपीआई माओवादी की सेंट्रल कमेटी के बाकी सदस्यों से भी ज़्यादा वो चर्चा में रहता है. हिडमा को पकड़ना हमेशा से इसलिए और भी मुश्किल रहा क्योंकि वो तीन से चार स्तर के सुरक्षा घेरे में रहता है. सबसे बाहरी स्तर को जैसे ही सुरक्षा बलों की भनक लगती है वो उनसे भिड़ जाते हैं और हिडमा सुरक्षित भाग निकलता है.

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सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा में फोन नेटवर्क काम नहीं करता, सिर्फ़ ह्यूमन इंटेलिजेंस ही काम करती है. अभी तक जब भी उसके बारे में कोई जानकारी मिलती रही तो जब तक सुरक्षा बल पहुंचें तब तक वो कहीं और निकल चुका होता है. लेकिन इस बार वो चारों ओर से घिरा हुआ है.

अगर सुरक्षा बल हिडमा को मार गिराते हैं या गिरफ़्तार कर लेते हैं तो बस्तर में माओवादियों के सबसे ख़ास रणनीतिक कमांडर का खात्मा हो जाएगा. हिडमा के पकड़े जाने से बस्तर के उन आदिवासियों का हौसला टूट जाएगा जो नक्सलवाद की राह चल चुके हैं. हिडमा के खात्मे से बस्तर में नक्सलवाद की कमर टूट जाएगी.

हिडमा के साथ एक और नक्सली कमांडर सुरक्षा घेरे में फंसा हुआ है. उसका नाम है देवा उर्फ बरसे सुक्का. पिछले साल देवा भी हिडमा की तरह गोंड आदिवासी है और उसी के पूवराती गांव से ताल्लुक रखता है. पिछले साल तक हिडमा नक्सलियों की जिस बटैलियन नंबर वन का नेतृत्व करता था. उसका ज़िम्मा देवा को ही सौंपा गया. देवा दरभा डिविजन कमेटी का सचिव भी रहा. देवा सुरक्षा बलों पर हुए कई हमलों में हिडमा का साथी रहा और उसने सुरक्षा बलों को काफी नुकसान पहुंचाया है.

 छत्तीसगढ़ में माओवादियों के अधिकतर बड़े नेता, सेंट्रल कमेटी से लेकर दंडकारणय्य स्पेशल ज़ोनल कमेटी तक तेलंगाना से है. लेकिन हमलों में हिस्सा लेने वाले अधिकतर माओवादी गुरिल्ला छत्तीसगढ़ के स्थानीय आदिवासी हैं. कई बार उनके बीच मतभेदों की बातें भी सामने आती हैं. हालांकि, अब हिडमा सीपीआई - माओवादी की सेंट्रल कमेटी में शामिल हो चुका है. देखना है ये ऑपरेशन नक्सलियों पर नकेल कसने में कितना बड़ा मील का पत्थर साबित होता है. गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च, 2026 तक देश से नक्सलियों का सफाया करने का लक्ष्य रखा है. नक्सलियों के ख़िलाफ अब तक सबसे बड़े ऑपरेशन पर बात करने के लिए हमारे साथ हैं.

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नक्सलियों द्वारा बिछाए गए IED और बंकरों की संख्या से सुरक्षा बलों को किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है इस ऑपरेशन का परिणाम किस प्रकार छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में नक्सलवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई पर असर डाल सकता है. कभी देश के कम से कम सात राज्यों के करीब 200 ज़िलों में सक्रिय रहे नक्सली सरकार के दावे के मुताबिक अब सिर्फ 38 ज़िलों तक ही सिमट गए हैं और इनमें भी उनका प्रभाव क्षेत्र लगातार सिकुड़ता जा रहा है. इसके लिए एक ओर सरकार नक्सली इलाकों में विकास के लिए बुनियादी सुविधाएं बेहतर कर रही है और दूसरी ओर नक्सलियों के ख़िलाफ़ अभियान तेज़ बने हुए हैं.

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इस साल अब तक कम से कम 150 नक्सलियों को मार गिराया गया है, जिनमें से 124 अकेले बस्तर डिविजन मेंं मारे गए हैं. इनमें कई सीनियर नक्सली कमांडर शामिल हैं.. अगर पिछले कुछ साल के आंकड़ों को देखें तो 2009 के बाद सबसे ज़्यादा 219 नक्सलवादियों को पिछले साल 2024 में मार गिराया गया था. इस ग्राफ़ में आप देख सकते हैं कि उससे पहले के सालों ये तादाद इतनी नहीं थी. 2023 में 22 नक्सलवादी और 2022 में 30 नक्सली सुरक्षा बलों के ऑपरेशनों में मारे गए थे. उससे पहले 2016 और 2018 में सौ से ज़्यादा नक्सलवादी मारे गए थे. 2016 में 134 नक्सली मारे गए थे. अगर नक्सलियों के हमलों को देखें तो वो साल दर साल लगभग बराबर बने रहे. थोड़े कम तो थोड़े ज़्यादा.. जिस साल नक्सली हमले बढ़े उस साल उनके मारे जाने की तादाद भी बढ़ी. बीते साल नक्सलियों के हमलों के मुक़ाबले सुरक्षा बलों द्वारा उनके ख़िलाफ़ ऑपरेशन में काफ़ी ज़्यादा तेज़ी आई जिसका नतीजा 200 से ज़्यादा नक्सलवादियों के मारे जाने की शक्ल में सामने आया.

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