- दिल्ली के लाल किले के पास आई20 कार में बैठे सुसाइड बॉम्बर डॉ उमर ने 6:52 मिनट पर धमाका किया था
- इस धमाके में 15 लोगों की मौत हुई और लाल किले की प्राचीर दहशत में आ गई थी
- उमर ने धमाके से पहले एक वीडियो रिकॉर्ड किया था जिसमें वह जिहाद की बात करता नजर आ रहा है
नवंबर 10 की शाम को दिल्ली में हल्की ठंडी थी, रोजाना की तरह शहर अपनी रफ्तार से दौड़ रहा था. लोग लाल किले के सामने से होते हुए अपने घरों की ओर लौट रहे थे तभी अचानक से दिल्ली की शान लाल किले के पास 6 बजकर 52 मिनट पर जोरदार धमाका हुआ. जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई. लाल किले की प्राचीर, जो सदियों से ताकत और शान का प्रतीक रही, अचानक दहशत के साए में आ गई. इस हमले को आई20 कार में बैठे सुसाइड बॉम्बर डॉ उमर ने अंजाम दिया. दिल्ली को दहलाने वाले उमर के जो वीडियो सामने आई है, वो उसके दिमाग की परतें खोलते हैं. साइकोलॉजिस्ट नम्रता ओहरी ने NDTV से बातचीत में उमर की बॉडी लैंग्वेज को वीडियो के हिसाब से देख फ्रेम-बाय-फ्रेम डिकोड किया, जिससे उमर की मानसिकता को समझने का मौका मिला.
वीडियो में खुद से बातें और स्क्रिप्ट की झलक
- उमर ने वीडियो रिकॉर्ड करने से पहले कई बार सेल्फ-टॉक्स किए
- वह सही शब्द चुनने की कोशिश कर रहा था ताकि संदेश प्रभावी लगे
- वीडियो पूरी तरह स्क्रिप्टेड नहीं था, लेकिन उसने पहले से सोचा हुआ कंटेंट दोहराया
क्या कह रही थी आतंकी उमर की आंखें
- उमर ने कैमरे से वीडियो रिकॉर्डिंग के दौरान सीधा आई कॉन्टैक्ट नहीं किया
- उसकी नजरें दाईं ओर थीं, जो बताती हैं कि वह अपने स्क्रिप्ट को याद कर रहा था
- यह संकेत है कि उसने वीडियो से पहले कई बार खुद से बातें कीं
कपड़े और कमरे का संकेत
- उसने प्रेजेंटेबल दिखने की कोशिश नहीं की
- फोकस सिर्फ संदेश पर था, न कि लुक्स पर
- माइक्रोफोन पहनना बताता है कि वह चाहता था संदेश साफ और स्पष्ट पहुंचे.
वीडियो का टोन और भावनाएं
- पहले 30 सेकंड में वह जिहाद की बात करता है, फिर मनाने की कोशिश करता है
- उसकी पोश्चर कैज़ुअल थी, क्योंकि वह खुद को सही काम करते हुए देख रहा था
- एक मिनट बाद उसके हावभाव में हीनभावना (Inferiority Complex) झलकती है
- साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक, यह किसी पुराने ट्रॉमा या दबे हुए भावनाओं का असर हो सकता है
क्या वह नर्वस था?
- उमर नर्वस नहीं, बल्कि इमोशनल और प्रोफेशनल दिखना चाहता था
- उसकी कुर्सी हिल रही थी, लेकिन वह खुद को यह जताने में लगा था कि उसका रास्ता सही है
पढ़े-लिखे लोग कैसे ब्रेनवॉश होते हैं?
देश में पहले हुए आतंकी हमलों की घटना में आरोपी कम पढ़े-लिखे हुए देखे गए हैं, जिन्हें बहलाना-फुसलाना आसान होता है.लेकिन अब डॉक्टर जैसे पढ़े लिखे लोग क्यों आतंकियों के मनसूबों को अंजाम देने में लगे हैं. इस पर नम्रता ओहरी कहती हैं, “शिक्षा किताबों का ज्ञान देती है, लेकिन भावनाओं को नहीं संभालती. उमर जैसे लोग अक्सर दबे हुए भावनाओं या ट्रॉमा से गुजरते हैं, जिससे वे कट्टरपंथी विचारों के शिकार हो जाते हैं.”
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