नई दिल्ली:
राजधानी में पांच साल बाद मलेरिया से दो मौतों के मामले सामने आए हैं. एक तरफ श्रीलंका को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 'मलेरिया फ्री' का स्टेटस दे रहा है तो दूसरी तरफ भारत में जुलाई तक मलेरिया के करीब चार लाख 71 हजार मामले रिपोर्ट हुए हैं और 119 लोगों की मौत हुई है.
दिल्ली के चंदन विहार में रहने वाले प्रवीण शर्मा की चार अगस्त को सफदरजंग अस्पताल में मलेरिया से मौत हो गई. इससे पहले जुलाई में शहादरा में एक 62 वर्षीय व्यक्ति चरन की मलेरिया से मौत हो चुकी है. इस तरह दिल्ली में मलेरिया से इस साल दो मौत हो चुकी हैं.
नगर निगम के मुताबिक पिछले पांच सालों में राजधानी में मलेरिया से होने वाली दूसरी मौत है. हालांकि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को ठीक से याद नहीं कि पिछले वर्षों में कब राजधानी में किसी ने मलेरिया से दम तोड़ा था. मृतक प्रवीण के भाई राजन शर्मा का कहना है कि 28 जुलाई को मैक्स अस्पताल पटपड़गंज में मलेरिया होने की बात पता चली. हालत बिगड़ी तो 3 अगस्त को सफदरजंग रेफर कर दिया गया. वहां उसने दम तोड़ दिया.
उधर, डब्ल्यूएचओ ने सोमवार को श्रीलंका को मलेरिया फ्री देश घोषित किया है. भारत को इस स्टेटस के लिए 2030 तक इंतजार करना होगा. श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए अभियान चलाया. बुखार के सभी मामलों में मलेरिया की जांच की गई. मलेरिया से ग्रस्त देशों की यात्रा से आने वाले लोगों में इसके लक्षणों की जांच की गई. शांति मिशन पर तैनात सशस्त्र बलों, प्रवासियों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की भी नियमित जांच की गई. मलेरिया रोधी अभियान के तहत 24 घंटे हॉटलाइन स्थापित की गई. साथ ही मच्छर रोधी नियंत्रण के बदले परजीवी नियंत्रण की रणनीति अपनाई गई.
नेशनल वेक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम के डायरेक्टर एसी धारीवाल ने कहा कि इस मौत की उन्हें जानकारी है. ऐसा नहीं कि दिल्ली के अस्पतालों में मलेरिया से मरीज की मौत नहीं होती, लेकिन जिनकी भी होती है वे पश्चिमी उत्तरप्रदेश, नूंह आदि इलाकों के होते हैं. इससे पहले किसी दिल्ली वाले की मलेरिया से कब मौत हुई याद नहीं.
ऐसा नहीं है कि राजधानी में मच्छरों से होने वाली बीमारियों पर नियंत्रण के लिए खर्च कम हो रहा है. इन बीमारियों से लड़ने के लिए तीनों नगर निगमों के करीब चार हजार कर्मचारी लगे हैं. उनके पास करीब 78 करोड़ रुपये का सालाना बजट है. फिर भी केवल राजधानी में इस सीजन में मलेरिया के 19 मामले, डेंगू के 771 मामले और चिकनगुनिया के 560 मामले रिपोर्ट हुए हैं.
दिल्ली के चंदन विहार में रहने वाले प्रवीण शर्मा की चार अगस्त को सफदरजंग अस्पताल में मलेरिया से मौत हो गई. इससे पहले जुलाई में शहादरा में एक 62 वर्षीय व्यक्ति चरन की मलेरिया से मौत हो चुकी है. इस तरह दिल्ली में मलेरिया से इस साल दो मौत हो चुकी हैं.
नगर निगम के मुताबिक पिछले पांच सालों में राजधानी में मलेरिया से होने वाली दूसरी मौत है. हालांकि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को ठीक से याद नहीं कि पिछले वर्षों में कब राजधानी में किसी ने मलेरिया से दम तोड़ा था. मृतक प्रवीण के भाई राजन शर्मा का कहना है कि 28 जुलाई को मैक्स अस्पताल पटपड़गंज में मलेरिया होने की बात पता चली. हालत बिगड़ी तो 3 अगस्त को सफदरजंग रेफर कर दिया गया. वहां उसने दम तोड़ दिया.
उधर, डब्ल्यूएचओ ने सोमवार को श्रीलंका को मलेरिया फ्री देश घोषित किया है. भारत को इस स्टेटस के लिए 2030 तक इंतजार करना होगा. श्रीलंका के स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए अभियान चलाया. बुखार के सभी मामलों में मलेरिया की जांच की गई. मलेरिया से ग्रस्त देशों की यात्रा से आने वाले लोगों में इसके लक्षणों की जांच की गई. शांति मिशन पर तैनात सशस्त्र बलों, प्रवासियों, पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की भी नियमित जांच की गई. मलेरिया रोधी अभियान के तहत 24 घंटे हॉटलाइन स्थापित की गई. साथ ही मच्छर रोधी नियंत्रण के बदले परजीवी नियंत्रण की रणनीति अपनाई गई.
नेशनल वेक्टर बोर्न डिसीज कंट्रोल प्रोग्राम के डायरेक्टर एसी धारीवाल ने कहा कि इस मौत की उन्हें जानकारी है. ऐसा नहीं कि दिल्ली के अस्पतालों में मलेरिया से मरीज की मौत नहीं होती, लेकिन जिनकी भी होती है वे पश्चिमी उत्तरप्रदेश, नूंह आदि इलाकों के होते हैं. इससे पहले किसी दिल्ली वाले की मलेरिया से कब मौत हुई याद नहीं.
ऐसा नहीं है कि राजधानी में मच्छरों से होने वाली बीमारियों पर नियंत्रण के लिए खर्च कम हो रहा है. इन बीमारियों से लड़ने के लिए तीनों नगर निगमों के करीब चार हजार कर्मचारी लगे हैं. उनके पास करीब 78 करोड़ रुपये का सालाना बजट है. फिर भी केवल राजधानी में इस सीजन में मलेरिया के 19 मामले, डेंगू के 771 मामले और चिकनगुनिया के 560 मामले रिपोर्ट हुए हैं.
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