नई दिल्ली:
दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ (डूसू) चुनाव के नतीजों में भाजपा की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने बाजी मारी है. अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव जैसे अहम पदों पर ABVP ने जीत दर्ज की है तो वहीं, कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई को महज संयुक्त सचिव पर पर ही संतोष करना पड़ा. हालांकि एनएसयूआई ने यह सीट जीतकर दो साल बाद वापसी की है.
डूसू के अध्यक्ष पद के लिए विश्वविद्यालय के छात्रों ने एबीवीपी के अमित तंवर, उपाध्यक्ष के लिए प्रियंका और सचिव पद के लिए अंकित सिंह सांगवान को चुना. वहीं, संयुक्त सचिव पद पर एनएसयूआई के मोहित गरिड ने जीत हासिल की.
एबीवीपी ने इस जीत को राष्ट्रवाद के मुद्दे से जोड़कर देखा. इसके साथ ही एबीवीपी ने कैंपस में अपनी मौजूदगी को भी जीत की वजह माना. वहीं, एनएसयूआई ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखने की अपनी नीति को जीत का श्रेय दिया है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनावों में इस साल महज़ 36 फीसदी वोट पड़े. छात्रों के लिए नोटा का विकल्प भी था, लेकिन इसका इस्तेमाल ज़्यादा नहीं हुआ. लेफ़्ट दल भी गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरे, लेकिन डीयू में उनके हाथ कुछ नहीं लगा. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों के नतीजों के समीकरण इस साल बदले हुए थे. एक ओर जहां राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ने वाली एबीवीपी तीन पदों पर विजयी रही, वहीं जानकारों के मुताबिक CSYY के चुनाव न लड़ने और वोटिंग के कम होने का फायदा एनएसयूआई को हुआ और वो भी एक पद पर विजयी रही.
डूसू के अध्यक्ष पद के लिए विश्वविद्यालय के छात्रों ने एबीवीपी के अमित तंवर, उपाध्यक्ष के लिए प्रियंका और सचिव पद के लिए अंकित सिंह सांगवान को चुना. वहीं, संयुक्त सचिव पद पर एनएसयूआई के मोहित गरिड ने जीत हासिल की.
एबीवीपी ने इस जीत को राष्ट्रवाद के मुद्दे से जोड़कर देखा. इसके साथ ही एबीवीपी ने कैंपस में अपनी मौजूदगी को भी जीत की वजह माना. वहीं, एनएसयूआई ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखने की अपनी नीति को जीत का श्रेय दिया है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनावों में इस साल महज़ 36 फीसदी वोट पड़े. छात्रों के लिए नोटा का विकल्प भी था, लेकिन इसका इस्तेमाल ज़्यादा नहीं हुआ. लेफ़्ट दल भी गठबंधन बनाकर चुनाव में उतरे, लेकिन डीयू में उनके हाथ कुछ नहीं लगा. दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनावों के नतीजों के समीकरण इस साल बदले हुए थे. एक ओर जहां राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ने वाली एबीवीपी तीन पदों पर विजयी रही, वहीं जानकारों के मुताबिक CSYY के चुनाव न लड़ने और वोटिंग के कम होने का फायदा एनएसयूआई को हुआ और वो भी एक पद पर विजयी रही.
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