नई दिल्ली:
जब 49 दिन सत्ता में रहने के बाद फरवरी, 2014 में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दिया था तो उन्होंने कहा था कि दिल्ली में तत्काल चुनाव होने चाहिए। हालांकि इस तरह की अनुशंसा करने में उपराज्यपाल (एलजी) नजीब जंग को आठ महीने लग गए। अब केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने इस फैसले में इतनी देरी के कारणों को उजागर करने को कहा है।
दरअसल आरटीआई कार्यकर्ता आदित्य जैन ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उपराज्यपाल से केजरीवाल के त्यागपत्र देने और नए चुनाव की घोषणा के बीच के घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्योरा देने को कहा था। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच के आठ महीनों के अंतराल पर केजरीवाल ने तब सवाल खड़े करते हुए कहा था कि इससे दलबदल को बढ़ावा मिलने और हॉर्स-ट्रेडिंग होने से राजनेता लाभान्वित हो सकते हैं। लेकिन उपराज्यपाल ने इस संबंध में केंद्रीय कैबिनेट को भेजी गई सूचना को गोपनीयता की श्रेणी में बताते हुए सूचना का ब्योरा देने से इनकार कर दिया। वैसे भी केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच के सर्द रिश्ते जगजाहिर हैं और सार्वजनिक रूप से दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है।
अपनी आरटीआई का जवाब नहीं मिलने पर जब आदित्य जैन ने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया तो आयोग ने उपराज्यपाल से असहमति प्रकट करते हुए उस दौर के सभी संबंधित दस्तावेज जनता के बीच सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। आयोग ने जोर देते हुए कहा है कि राजनीतिक संकट से उपजे हालात की स्थिति में राज्यपाल या राष्ट्रपति को दी गई सलाह गोपनीयता के दायरे में नहीं आती।
हाल में केंद्र सरकार ने उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में उपजे सियासी गतिरोध के बीच इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंपी गई रिपोर्टों को गोपनीयता की श्रेणी में मानने की दलील दी थी। गौरतलब है कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेसी सरकारों को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। इसके खिलाफ उत्तराखंड के मामले में कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में केस जीतकर सत्ता में वापसी की। अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेसी सरकार के पतन के बाद पार्टी के भीतर विद्रोह का बिगुल बजाने वाले पूर्व कांग्रेसी सदस्य भाजपा के सहयोग से सत्ता में आए हैं।
दरअसल आरटीआई कार्यकर्ता आदित्य जैन ने सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उपराज्यपाल से केजरीवाल के त्यागपत्र देने और नए चुनाव की घोषणा के बीच के घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्योरा देने को कहा था। इन दोनों घटनाक्रमों के बीच के आठ महीनों के अंतराल पर केजरीवाल ने तब सवाल खड़े करते हुए कहा था कि इससे दलबदल को बढ़ावा मिलने और हॉर्स-ट्रेडिंग होने से राजनेता लाभान्वित हो सकते हैं। लेकिन उपराज्यपाल ने इस संबंध में केंद्रीय कैबिनेट को भेजी गई सूचना को गोपनीयता की श्रेणी में बताते हुए सूचना का ब्योरा देने से इनकार कर दिया। वैसे भी केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच के सर्द रिश्ते जगजाहिर हैं और सार्वजनिक रूप से दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है।
अपनी आरटीआई का जवाब नहीं मिलने पर जब आदित्य जैन ने केंद्रीय सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया तो आयोग ने उपराज्यपाल से असहमति प्रकट करते हुए उस दौर के सभी संबंधित दस्तावेज जनता के बीच सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। आयोग ने जोर देते हुए कहा है कि राजनीतिक संकट से उपजे हालात की स्थिति में राज्यपाल या राष्ट्रपति को दी गई सलाह गोपनीयता के दायरे में नहीं आती।
हाल में केंद्र सरकार ने उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में उपजे सियासी गतिरोध के बीच इन राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाने संबंधी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को सौंपी गई रिपोर्टों को गोपनीयता की श्रेणी में मानने की दलील दी थी। गौरतलब है कि इन दोनों राज्यों में कांग्रेसी सरकारों को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। इसके खिलाफ उत्तराखंड के मामले में कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में केस जीतकर सत्ता में वापसी की। अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेसी सरकार के पतन के बाद पार्टी के भीतर विद्रोह का बिगुल बजाने वाले पूर्व कांग्रेसी सदस्य भाजपा के सहयोग से सत्ता में आए हैं।
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