- दिल्ली का पुराना लोहे का पुल रिटायर होने को है. 80 साल के लिए बना था और150 साल बाद भी चल रहा है
- यह पुल सेंट्रल दिल्ली को पूर्वी दिल्ली से जोड़ता है और ऊपर से ट्रेन नीचे से गाड़ियां गुजरती हैं.
- नया रेलवे पुल 227 करोड़ रुपए की लागत से यमुना नदी पर तैयार हुआ है और 2026 में लोहे का पुल बंद होगा.
मैं अगर आपसे कहूं कि आज के दौर में जहां पुल बनते बाद में है और उनकी गिरने की खबर पहले आ जाती है, वहीं दिल्ली में एक ऐसा पुल भी है जो 150 सालों से जस का तस खड़ा है तो आपको आश्चर्य जरूर होगा. ये पुल कितना मजबूत है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दिल्ली का ये आयकॉनिक लोहे का पुल अपनी निर्धारित उम्र 80 साल पूरी करने के बाद भी जस का तस बना हुआ है. अपनी उम्र पूरी करने के बाद भी यह पुल अगले 70 साल तक सेवाएं देता रहा. यानी बनने के 150 साल तक बाद भी ये जस का तस रहा. हम बात कर रहे हैं दिल्ली में लोहे के पुल की, जो आम यातायात के तहत सेंट्रल दिल्ली को पूर्वी दिल्ली से जोड़ता है और ट्रेन के जरिए दिल्ली को पूरे भारत से. ये पुल इसलिए भी अनोखा है क्योंकि ऊपर ट्रेन और नीचे पैदल और गाड़ियों का यातायात भी चलता है.
ये भी पढ़ें- यूपी में विधायकों की बैठक पर अध्यक्ष पंकज चौधरी की चिट्ठी, क्या ठाकुर-ब्राह्मण राजनीति को दे दी हवा?
रिटायर हो जाएगा पुराना लोहे का पुल
ये लोहे का पुल अब 150 साल बाद यानि 2026 में रिटायर होने जा रहा है. सोचिए लोहे के इस पुल की उम्र पूरी होने के बावजूद इसके ऊपर से आज भी रोजाना 150 ट्रेनें गुजरती थी. हालांकि सुरक्षा के लिहाज से ये ट्रेने जब इसके ऊपर से चलती हैं तब इनकी स्पीड कम रखी जाती थी. अब नया पुल इसके बराबर रेलवे ने तैयार कर दिया है.

उम्मीद जताई जा रही है कि इस साल 2026 के फरवरी तक लोहे के पुल पर 150 साल बाद ट्रेन चलनी बंद हो जाएगी. लोहे के पुल के बराबर रेलवे यमुना नदी पर अपना पुल 27 साल बाद बना पाई है. हालांकि नए पुल की रुपरेखा 1997-98 में ही शुरु की गई थी, लेकिन विधिवत काम बीस साल पहले शुरु हुआ था.फिर बीच बीच में इसका काम रुकता रहा. नए पुल के बनने से ट्रेन अपनी स्वाभाविक गति से चल पाएगी जिससे दिल्ली गाजियाबाद सेक्शन पर ट्रेनों की भीड़ कम होगी और समय की बचत भी होगी.
लोहे का पुल कितने रुपए में बना था, नए पुल की लागत क्या है?
लोहे का पुल 1867 में अंग्रेजों ने बनाया था, चूंकि उस वक्त अंग्रेजों की राजधानी कोलकाता थी लेकिन सामरिक दृष्टि से दिल्ली का बहुत महत्व था. लिहाजा पहली ट्रेन 1853 में चलाने के बाद कोलकाता से दिल्ली को जोड़ने के लिए 1867 में इस लोहे के पुल का निर्माण कराया गया. उस वक्त लोहे का पुल करीब 14 लाख पाउंड यानि आज के करीब 14 करोड़ रुपए के आसपास की लागत से तैयार हुआ था.
इसी लोहे के पुल के बराबर में रेलवे ने जो अपना पुल तैयार किया है उसकी लागत पहले 137 करोड़ रुपए आंकी गई थी लेकिन बाद में ये बढ़कर 227 करोड़ रुपए हो गई. लोहे का पुल महज 80 साल के लिए तैयार हुआ था, लेकिन यह इतना मजबूत बना है कि 150 साल बाद भी चल रहा है.
80 साल के लिए बना, 150 साल तक चला
लोहे के पुल की 80 साल की उम्र 1947 में ही पूरी हो चुकी थी, लेकिन उसके बावजूद आज 2026 में भी ये चल रहा है. डाक्यूमेंट्री और फुकरे जैसी फ़िल्म लोहे के पुल पर शूट की गई हैं. लोहे का पुल दिल्ली की न सिर्फ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान है बल्कि चांदनी चौक, शाहदरा और गांधी नगर जैसे बाजारों को जोड़कर आर्थिक ब्रिज का भी काम करती है. इस लोहे के पुल से करीब एक लाख से ज्यादा गाड़ियां गुज़रती हैं.
सलीमपुर में जींस और जैकेट का काम करने वाले अब्दुल का कहना है कि वह12 साल से रोज़ाना इस पुल पर गुज़रते हैं. जब वह नीचे चलते हैं और ऊपर ट्रेन गुज़रती है तो एक रोमांच का एहसास होता है. पहले डर लगता था लेकिन अब आदत पड़ गई है.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं