दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों (Delhi Riots) के दौरान कथित हेट क्राइम से जुड़े एक मामले पर सुनवाई की. इस दौरान अदालत ने दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी के खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया. कोर्ट ने पुलिस अधिकारी के खिलाफ यह आदेश दंगे से जुड़ी घटना में पूर्व विधायक कपिल मिश्रा की कथित भूमिका के बारे में पूछताछ करने में विफल रहने पर दिया है. अदालत ने जांच अधिकारी (आईओ) के व्यवहार की निंदा करते हुए कहा कि उन्होंने बीजेपी नेता के खिलाफ आरोपों को छिपाने की कोशिश की.
पुलिस अधिकारी पर FIR का आदेश
न्यायिक मजिस्ट्रेट उद्भव कुमार जैन CRPPC की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन पर सुनवाई की, जिसमें तत्कालीन ज्योति नगर SHO और अन्य के खिलाफ FIR दर्ज करने के लिए अदालत से निर्देश देने की मांग की गई थी. पुलिस अधिकारी की शिकायत करने वाले का नाम मोहम्मद वसीम है. उसने दावा किया कि वह उन पांच लोगों में शामिल था, जिन पर 24 फरवरी को सांप्रदायिक दंगों के दौरान कथित तौर पर हमला किया गया और राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर किया गया.
सोशल मीडिया पर तेजी से सर्कुलेट हुए वीडियो क्लिप में कथित तौर पर पांच मुस्लिम पुरुषों को पुलिसकर्मियों द्वारा पीटते हुए और राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत "वंदे मातरम" गाने के लिए मजबूर करते हुए दिखाया गया था.
'पुलिस अधिकारी अपराधों में शामिल'
कोर्ट ने 18 जनवरी के एक आदेश में कहा, “स्पष्ट रूप से, ज्योति नगर पुलिस स्टेशन के SHO, तोमर और अन्य अज्ञात पुलिस अधिकारी शिकायतकर्ता या पीड़ित के खिलाफ घृणित अपराधों में शामिल थे. इसीलिए उनको बचाया नहीं जा सकता. कोर्ट ने कहा कि मंजूरी की आड़ में उनकी तरफ से किए गए कथित अपराधों पर यह नहीं कहा जा सकता है कि वे अपने आधिकारिक कर्तव्य का पालन कर रहे थे."
अदालत ने निर्देश दिया कि तत्कालीन SHO के खिलाफ धारा 295 ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को उसके धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करके अपमानित करना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 342 (गलत तरीके से कारावास) और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 506 (आपराधिक धमकी)का केस दर्ज किए जाएं.
'रिपोर्ट में ठोस एक्शन का जिक्र नहीं'
ज्योति नगर के मौजूद SHO को मामले की जांच के लिए इंस्पेक्टर रैंक से कम के एक जिम्मेदार अधिकारी को नियुक्त करने का निर्देश दिया गया. इसके साथ ही जांच के दौरान कथित अपराधों में शामिल अन्य अज्ञात पुलिस अधिकारियों की भूमिका का पता लगाने का भी निर्देश दिया गया. अदालत ने कहा कि मामले में आईओ ने एक कार्रवाई रिपोर्ट दायर की थी, जिसमें शिकायतकर्ता के आरोपों से इनकार किया गया था. लेकिन कार्रवाई रिपोर्ट में शुरुआती जांच करने के लिए उठाए गए किसी भी ठोस कदम का जिक्र नहीं किया गया था और कथित घटना के सीसीटीवी कैमरे के फुटेज के संबंध में भी कुछ नहीं था.
अदालत के मुताबिक, कार्रवाई रिपोर्ट में कहा गया, "इस तरह से शिकायतकर्ता के खिलाफ कथित कृत्यों या अपराधों से संबंधित जांच ठीक से नहीं की गई है. अदालत ने दंगाई भीड़ का नेतृत्व करने वाले के रूप में कपिल मिश्रा की पहचान करने के वसीम के दावे पर भी गौर किया.
शिकायतकर्ता ने लगाया क्या आरोप?
शिकायतकर्ता वसीम ने कहा कि उसने देखा कि दिल्ली पुलिस के जवान कथित आरोपी कपिल मिश्रा का पूरा समर्थन कर रहे थे. पुलिसकर्मी भी मुस्लिमों पर पथराव कर रहे थे, गोलियां चला रहे थे. उस हमले की वजह से प्रदर्शनकारी, महिलाएं और बच्चे अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग गए और उसके बाद, कपिल मिश्रा के नेतृत्व में ज्यादातर दंगाई नारे लगाते हुए चांद बाग की ओर भी चले गए.
कपिल मिश्रा के खिलाफ आरोपों के मामले में, अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि आईओ पुलिस अधिकारियों को लेकर ज्यादा चिंतित था. या तो वह कथित आरोपी नंबर 3 कपिल मिश्रा के खिलाफ जांच करने में विफल रहा या उसने उस आरोपी के खिलाफ आरोपों को छिपाने की कोशिश की.
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