लोगों की सुरक्षा में तैनात दिल्ली पुलिस के जवान
नई दिल्ली:
जब लोग दिल्ली में दिवाली का जश्न मना रहे हैं तब दिल्ली पुलिस के जवान हमारी सुरक्षा के लिए सड़कों पर हैं ताकि कोई हादसा न हो और खुशियों के साथ दिवाली मनाई जा सके. लेकिन कर्तव्य और रिश्तों के बीच कश्मकश में ये नौजवान कर्तव्य को अहमियत देते हैं.
पूर्व पुलिस आयुक्त, नीरज कुमार कहते हैं कि दिवाली ही क्या लगभग सभी त्योहारों पर पुलिस के जवान के ड्यूटी पर रहते हैं, जिसकी वजह से उनको परिवार से दूर रहना पड़ता है. त्योहारों पर बच्चे ज़रूर परेशान रहते हैं क्योंकि उनकी उमीदें रहती है कि परिवार का मुखिया उनके साथ खुशिओं में शरीक रहे. लेकिन ज़िम्मेदारियों ने हम लोगों को बांध रखा है. परिवार वालों से मिलने का बहुत मुश्किल से मौक़ा मिल पता है.
विजय सिंह (डीसीपी यातायात) कहते हैं कि अपने परिवार की ख्वाहिशों की यातायात सुरक्षा के सामने बहुत बार आहुति देनी पड़ती है. कर्तव्य के आगे परिवार की ख्वाहिशें कुर्बान करना ही असल तौर पर ड्यूटी है. हमारे सुरक्षाकर्मी अपने कर्तव्य के तहत ही दिन-रात सड़कों पर होते हैं, ताकि अवाम त्योहार खुशियों के साथ मना सके. विजय सिंह की 9 साल और 5 साल की 2 बेटियां हैं. बेटियों ख्वाहिश रहती है कि पापा उनके साथ त्योहार मनाएं. लेकिन बच्चियों की ख्वाहिशें कभी-कभार ही पूरी होती हैं. क्योंकि हर बार उनका इंतज़ार उम्मीद की आस में रह जाता है और उनके पापा ड्यूटी निभाते रह जाते हैं.
डीसीपी (पीसीआर) मोनिका भारद्वाज तो पूरी दिल्ली पुलिस को अपना परिवार मानती हैं. वे कहती हैं कि त्योहारों पर वह अपने इस परिवार के साथ होती हैं, इसलिए निजी परिवार की कमी दूर हो जाती है. मोनिका कहती हैं कि ट्रेनिंग के दौरान ही यह बता दिया जाता है कि ड्यूटी की ज़िम्मेदारी के तहत त्योहार अपने परिवार के साथ नहीं मना सकते. मोनिका कहती हैं कि ड्यूटी का सही तरह से निर्वहन करना ही असल मक़सद है, जिसके तहत अक्सर परिवार में बच्चो से मिल न पाने का दर्द रहता है.
जामिया नगर पुलिस थाने के एसएचओ संजीव कुमार का मानना है कि इलाक़े में कोई हादसा न हो इसलिए सुरक्षाकर्मी लोगों की सुरक्षा और उनकी ख़ुशी के लिए मुस्तैद रहते हैं. हां, ये ज़रूर है कि इस दौरान घर की याद बहुत आती है. परिवार वालों की ख्वाहिशें ज़हन के सामने रह-रह कर आती हैं लेकिन दिल को तसल्ली देनी पड़ती है. क्योंकि कर्तव्य को पारिवारिक खुशियों पर हावी नहीं होने देते. संजीव कुमार कहते हैं कि कभी परिवार के साथ बाहर किसी पार्टी में होते हैं और अधिकारियों के आदेश पर परिवार को छोड़कर फौरन ड्यूटी के लिए निकलना भी पड़ता है.
एटीएस (दक्षिण) में हेड कॉन्स्टेबल के पद पर तैनात रमेश कुमार कहते हैं कि दिल्ली पुलिस में 21 साल हो गए लेकिन दिवाली आज तक परिवार के साथ नहीं मना पाए. अपने कर्तव्य को देखते हुए सुरक्षा के मद्देनज़र तैनात रहते हैं और ड्यूटी पर ही साथियों के साथ त्योहार मनाकर समझते हैं कि परिवार के साथ खुशियां मना लीं. रमेश कुमार देश की सुरक्षा करने पर खुद को खुशकिस्मत मानते हैं.
एएसआई विनोद कहते हैं कि दिवाली के दिन सुरक्षा में रहते हैं लेकिन अगले दिन भी परिवार के साथ त्योहार मनाने का मौका किस्मत वालों को ही मिलता है. वर्ना आमतौर पर सुरक्षा में सुरक्षाकर्मी सुरक्षा में ही तैनात रहते हैं. दर्द तो परिवार के साथ त्योहार न मनाने का रहता है लेकिन हम लोग कर्तव्य को अपना परिवार मानते हैं. इसलिए परिवार भी हमारे दर्द को समझता है.
पूर्व पुलिस आयुक्त, नीरज कुमार कहते हैं कि दिवाली ही क्या लगभग सभी त्योहारों पर पुलिस के जवान के ड्यूटी पर रहते हैं, जिसकी वजह से उनको परिवार से दूर रहना पड़ता है. त्योहारों पर बच्चे ज़रूर परेशान रहते हैं क्योंकि उनकी उमीदें रहती है कि परिवार का मुखिया उनके साथ खुशिओं में शरीक रहे. लेकिन ज़िम्मेदारियों ने हम लोगों को बांध रखा है. परिवार वालों से मिलने का बहुत मुश्किल से मौक़ा मिल पता है.
पूर्व पुलिस आयुक्त, नीरज कुमार
विजय सिंह (डीसीपी यातायात) कहते हैं कि अपने परिवार की ख्वाहिशों की यातायात सुरक्षा के सामने बहुत बार आहुति देनी पड़ती है. कर्तव्य के आगे परिवार की ख्वाहिशें कुर्बान करना ही असल तौर पर ड्यूटी है. हमारे सुरक्षाकर्मी अपने कर्तव्य के तहत ही दिन-रात सड़कों पर होते हैं, ताकि अवाम त्योहार खुशियों के साथ मना सके. विजय सिंह की 9 साल और 5 साल की 2 बेटियां हैं. बेटियों ख्वाहिश रहती है कि पापा उनके साथ त्योहार मनाएं. लेकिन बच्चियों की ख्वाहिशें कभी-कभार ही पूरी होती हैं. क्योंकि हर बार उनका इंतज़ार उम्मीद की आस में रह जाता है और उनके पापा ड्यूटी निभाते रह जाते हैं.
विजय सिंह, डीसीपी यातायात
डीसीपी (पीसीआर) मोनिका भारद्वाज तो पूरी दिल्ली पुलिस को अपना परिवार मानती हैं. वे कहती हैं कि त्योहारों पर वह अपने इस परिवार के साथ होती हैं, इसलिए निजी परिवार की कमी दूर हो जाती है. मोनिका कहती हैं कि ट्रेनिंग के दौरान ही यह बता दिया जाता है कि ड्यूटी की ज़िम्मेदारी के तहत त्योहार अपने परिवार के साथ नहीं मना सकते. मोनिका कहती हैं कि ड्यूटी का सही तरह से निर्वहन करना ही असल मक़सद है, जिसके तहत अक्सर परिवार में बच्चो से मिल न पाने का दर्द रहता है.
डीसीपी (पीसीआर) मोनिका भारद्वाज
एसएचओ संजीव कुमार
हेड कॉन्स्टेबल रमेश कुमार
एएसआई विनोद कहते हैं कि दिवाली के दिन सुरक्षा में रहते हैं लेकिन अगले दिन भी परिवार के साथ त्योहार मनाने का मौका किस्मत वालों को ही मिलता है. वर्ना आमतौर पर सुरक्षा में सुरक्षाकर्मी सुरक्षा में ही तैनात रहते हैं. दर्द तो परिवार के साथ त्योहार न मनाने का रहता है लेकिन हम लोग कर्तव्य को अपना परिवार मानते हैं. इसलिए परिवार भी हमारे दर्द को समझता है.
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