नई दिल्ली:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सोलह दिसंबर सामूहिक बलात्कार मामले पर आधारित बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री ‘इंडियाज डॉटर’ पर पाबंदी में हस्तक्षेप करने से इंकार किया.
अदालत ने कहा कि इसके प्रसारण का मुद्दा निचली अदालत के सामने लंबित है जो इससे निपटने के लिए सक्षम है. मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ ने केन्द्र द्वारा इस वृत्तचित्र के प्रसारण के खिलाफ जारी परामर्श की वैधता पर भी गौर नहीं किया और कहा कि यह निजी टीवी चैनलों को केवल परामर्श था और वृत्तचित्र का प्रसारण निचली अदालत के रोक आदेश के कारण नहीं किया गया.
पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक तीन मार्च और चार मार्च 2015 (वृत्तचित्र के प्रसारण पर पाबंदी) के न्यायिक आदेशों की बात है, चूंकि मामला सक्षम अदालत के सामने लंबित है और खास बात है कि जांच अब भी चल रही है, संविधान के अनुच्छेद 226 या 227 के तहत इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप वांछनीय नहीं है.’’
अदालत ने कहा, ‘‘रिकॉर्ड से सामने आए दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि तीन मार्च 2015 का परामर्श निजी चैनलों को केवल सलाह थी. हमें ऐसा लगता है कि संबंधित वृत्तचित्र का प्रसारण सक्षम अदालत द्वारा जारी रोक आदेश के कारण नहीं किया गया.’’ यह फैसला तीन विधि छात्रों द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर आया जिनमें तिहाड़ जेल में बनाए गए वृत्तचित्र पर से पाबंदी हटाने का अनुरोध किया गया.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
अदालत ने कहा कि इसके प्रसारण का मुद्दा निचली अदालत के सामने लंबित है जो इससे निपटने के लिए सक्षम है. मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ ने केन्द्र द्वारा इस वृत्तचित्र के प्रसारण के खिलाफ जारी परामर्श की वैधता पर भी गौर नहीं किया और कहा कि यह निजी टीवी चैनलों को केवल परामर्श था और वृत्तचित्र का प्रसारण निचली अदालत के रोक आदेश के कारण नहीं किया गया.
पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक तीन मार्च और चार मार्च 2015 (वृत्तचित्र के प्रसारण पर पाबंदी) के न्यायिक आदेशों की बात है, चूंकि मामला सक्षम अदालत के सामने लंबित है और खास बात है कि जांच अब भी चल रही है, संविधान के अनुच्छेद 226 या 227 के तहत इस अदालत द्वारा हस्तक्षेप वांछनीय नहीं है.’’
अदालत ने कहा, ‘‘रिकॉर्ड से सामने आए दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि तीन मार्च 2015 का परामर्श निजी चैनलों को केवल सलाह थी. हमें ऐसा लगता है कि संबंधित वृत्तचित्र का प्रसारण सक्षम अदालत द्वारा जारी रोक आदेश के कारण नहीं किया गया.’’ यह फैसला तीन विधि छात्रों द्वारा दायर जनहित याचिकाओं पर आया जिनमें तिहाड़ जेल में बनाए गए वृत्तचित्र पर से पाबंदी हटाने का अनुरोध किया गया.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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