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दिल्ली के 'दिल' कहे जाने वाले इस बाजार में कभी अंग्रेज करते थे शॉपिंग, पढ़ें आखिर कैसे पड़ा इसका नाम

कनॉट प्लेस को दिल्ली का दिल भी कहा जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह है इसकी लोकेशन. ये दिल्ली के सेंटर में बना हुआ है.

दिल्ली के 'दिल' कहे जाने वाले इस बाजार में कभी अंग्रेज करते थे शॉपिंग, पढ़ें आखिर कैसे पड़ा इसका नाम
दिल्ली का दिल है कनॉट प्लेस
नई दिल्ली:

1911 में जब कोलकाता की जगह दिल्ली को देश की राजधानी बनाया गया तो उस समय अंग्रेजों के सामने दिल्ली को सवारने की चुनौती थी. उस समय की दिल्ली आज की दिल्ली से बिल्कुल अलग थी. लिहाजा उसे, नए सिरे से बनाने की चुनौती भी काफी बड़ी थी. अंग्रेजों ने इसे बनाने या फिर यूं कहें कि अपने मुताबिक बनाने की जिम्मेदारी बड़े आर्किटेक्ट को दिया. और फिर शुरू दिल्ली को एक नई पहचान देने की कवायत. आज जो आप दिल्ली देख रहे हैं चाहे बात राष्ट्रपति भवन की हो या फिर इंडिया गेट की या फिर दूसरे वीवीआईपी इलाकों की, ये तमाम जगहों को अंग्रेजों के समय में ही मूर्तरूप दिया गया. इसी लिस्ट में शामिल है कनॉट प्लेस का नाम. वही कनॉट प्लेस जिसे दिल्ली का दिल कहा जाता है. आज हम आपको इसके बनने की कहानी बताएंगे. आखिर ये बना कैसे और और इसका नाम कनॉट प्लेस ही क्यों पड़ा. 

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कनॉट प्लेस का डिजाइन खोड़े की नाल के आकार की है. इसको डिजाइन किया था रॉबर्ट टोर रस्सेल ने. ये वही आर्किटेक्ट थे जिन्होंने कनॉट प्लेस के अलावा दिल्ली में लोदी रोड पर डबल स्टोरी फ्लैट्स, सफदरजंग एयरपोर्ट, वेस्टर्न और ईस्टर्न कोर्ट सहित तीन मूर्ति को भी डिजाइन किया था. 

ग्रिगेरियन स्टाइल में बना है कनॉट प्लेस

रस्सेल ने कनॉट प्लेस का डिजाइन ग्रिगेरियन स्टाइल का रखा है. इसमें डिजाइन सिमेट्रिकल सा होता है. ऊपर से देखने पर ये घोड़े की नाल की तरह दिखता है. रस्सेल ने जितनी भी इमारतों का डिजाइन बनाया उसका रंग स्लेटी ही रखा. कनॉट प्लेस भी इसी रंग में है. रस्सेल ने कनॉट प्लेस को ऐसे डिजाइन के तहत बनाया जो 12 ब्लॉकों में बाटा गया है. पूरी कनॉट प्लेस 1743 स्तंभों पर खड़ा है. 

ऐसे पड़ा था कनॉट प्लेस नाम

अगर बात कनॉट प्लेस के निर्माण की करें तो इसके बनने का काम 1929 में शुरू हुआ था. चार साल तक चले निर्माण कार्य के बाद सन 1933 में यह बनकर तैयार हुआ. 1931 में ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य प्रिंस ऑर्थर यानि कि ड्यूक ऑफ कनॉट और स्ट्रैथर्न भारत आए.ऐसे में इस भव्य जगह का नाम कनॉट प्लेस रखा गया. जिस समय इसका निर्माण हुआ था उस दौरान ये एक हाई स्ट्रीट मार्केट हुआ करती थी. यहां शॉपिंग, रेस्तरां और मनोरंजन के लिए सभी साधन मौजूद थे. 

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कैसे पड़ा कनॉट प्लेस नाम

कनॉट प्लेस का निर्माण कार्य 1929 में शुरू हुआ था, जो कि 1933 में बनकर पूरा हुआ। साल 1921 में ब्रिटेन के शाही परिवार के सदस्य प्रिंस ऑर्थर यानि कि ड्यूक ऑफ कनॉट और स्ट्रैथर्न भारत आए। ऐसे में अंग्रेजी की इस भव्य जगह का नाम कनॉट प्लेस रखा गया। यह उस समय की एक हाई स्ट्रीट मार्केट हुआ करती थी, जहां शॉपिंग, रेस्तरां और मनोरंजन के सभी साधन मौजूद थे।

13 ब्लॉक से मिलकर बना है कनॉट प्लेस

आपको बता दें कि आज की तारीख में कनॉट प्लेस में कुल 13 ब्लॉक हैं. इन सभी ब्लॉक्स को ए से पी के अल्फाबेट्स पर बांटा गया है. कनॉट प्लेस आउटर और इनर सर्किल बंटा हुआ है. इनर सर्किल में 6 ब्लॉक ए, बी, सी,डी,ई,एफ नाम दिया गया है. जबकि आउटर सर्किल में भी 7 ब्लॉक हैं. इनका नाम जी, एस,के, एल,एम, एन और पी दिया गया है. आज कनॉट प्लेस में आपको देश दुनिया के कई बड़े ब्रांड के शो रूम और बड़े आउटलेट्स देखने को मिल जाएगा. 

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कनॉट प्लेस क्यों है दिल्ली का दिल 

कनॉट प्लेस को दिल्ली का दिल भी कहा जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह है इसकी लोकेशन. ये दिल्ली के सेंटर में बना हुआ है. इसके निर्माण की प्रक्रिया और इसके डिजाइन में ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स ने अपने समय की सबसे उन्नत तकनीकों और शैली का इस्तेमाल किया था. कनॉट प्लेस ब्रिटिश काल की शहरी योजना और वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है. इसके डिजाइन में रॉबर्ट टोर रसेल ने एक व़त्ताकार संरचना का प्रयोग किया गया था. 

क्यों बनवाया गया था कनॉट प्लेस

कनॉट प्लेस का निर्माण दिल्ली की अर्थव्यवस्था और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया था. इसे दिल्ली के केंद्र में स्थापित किया गया था ताकि यह शहर का प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन सके. आज, कनॉट प्लेस न केवल एक व्यापारिक केंद्र है, बल्कि यह दिल्लीवासियों और पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य भी है.

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