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This Article is From Feb 03, 2017

भारंगम 2017 : प्रस्तुतियां शानदार, कुर्सियों को दर्शकों का इंतजार

भारंगम 2017 : प्रस्तुतियां शानदार, कुर्सियों को दर्शकों का इंतजार
भारत रंग महोत्सव में प्रसिद्ध रंगकर्मी कन्हाईलाल द्वारा निर्देशित नाटक 'पेबेट' की प्रस्तुति हुई.
नई दिल्ली: भारंगम में खाली कुर्सियां दर्शकों का इंतजार करती रहीं लेकिन दर्शक नहीं आए. जबकि चारों ही प्रस्तुतियां कावलाम नारायण पणिक्कर निर्देशित ‘मध्ययमव्यायोग’, अनुरूप राय निर्देशित ‘महाभारत’, कन्हाईलाल निर्देशित ‘पेबेट’ और वेरा बरज़ाक स्नाइडर निर्देशित प्रस्तुति ‘ ए स्ट्रेंजर गेस्ट’ चर्चित और अच्छी प्रस्तुतियां थी. संभवतः भारंगम में दर्शकों को 400 और 300 रुपये मूल्य का टिकट रास नहीं आ रहा और वे विरोध अपनी अनुपस्थिति से दर्ज कर रहे हैं, क्योंकि इसी क्लास की कुर्सियां अधिकतर खाली थीं.

कन्हाईलाल निर्देशित पेबेट
सावित्री हेस्नाम भारतीय रंगमंच की एक दुर्लभ अभिनेत्री हैं मंच पर उन्हें देखना एक ऐतिहासिक अनुभव है. देखते हुए दर्शक अपनी ही मानवीय भावनाओं और अनुभूतियों से परिचित होता है. सुख, दुख पीड़ा, उल्लास, भय, आशंका न जाने कितने भाव कुछ अंतराल में ही उनके चेहरे से गुजरते हैं और वह इतनी सहजता से होता है कि आप चौंकते भी हैं और मुग्ध भी होते हैं. इसी सावित्री हेस्नाम ने अपने जीवन संगी प्रसिद्ध निर्देशक कन्हाईलाल को पिछले वर्ष खो दिया. दोनों ही प्रतिभा के साहचर्य ने भारतीय रंग जगत को ऐसी रंगभाषा दी जिसमें शाब्दिकता से परे की संप्रेषणीयता थी और इस रंगभाषा में पूर्वोत्तर के साथ-साथ वैश्विक मानवीय जगत का आख्यान रचा गया जो जितना देशिक था उतना ही सार्वभौमिक भी. रानावि में लीविंग लीजेंडस शृंखला में सावित्री जी ने अपने अभिनय की खूबियों और बारीकियों को बताया और शाम में कन्हाईलाल जी को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत ‘पेबेट’ में इन्हीं सिद्धांतों का मंचीय निरूपण भी दिखाया.

‘पेबेट’ कन्हाईलाल की शुरुआती प्रस्तुति है जहां से इनकी रंगभाषा ने निर्णायक मोड़ लिया. यह प्रस्तुति एक रूपक कथा है जिसमें एक दुर्लभ पक्षी पेबेट, जो विलुप्ति के कगार पर है, को वर्षों बाद देखा जाता है. एक बिल्ली की नजर पेबेट के इस परिवार पर है. पहले तो मां पेबेट जिसकी भूमिका सावित्री जी ने की है अपने बच्चों को बचाने के लिए बिल्ली की ठकुरसुहाती करती हैं लेकिन बच्चे जब बड़े होते हैं तो वह उनको संगठित करके बिल्ली का प्रतिकार कर उसे भगा देती है. इस  नाटक में मां पेबेट एक स्वप्न देखती है जो हमारी सभ्यता की समीक्षा है जिसमें ताकतवर शक्तियां अपनी महीन चालों से जनता को आपस में ही भिड़ा देती है. रंगभाषा की सांकेतिकता में इतना यथार्थ है कि आप विचलित हो जाते हैं. प्रस्तुति देखते हुए यह भी लगता है कि मनुष्य कैसे अपनी पारिस्थितिकी से अलग हो गया है, उसे लगता है कि वह केवल मनुष्य के साथ रहता है जबकि  बहुत से जीवों और पर्यावरण से घिरा रहता है. इस पारिस्थितिकी के बारीक अवलोकन से ही अभिनेता पक्षियों के पैटर्न को अपने अभिनय में उतार पाते हैं. नाटक पूर्वोत्तर का है, जो अभी फिर एक बार हिंसा की चपेट में है. यह स्थिति को उभारता है, पूरे यथार्थ और पक्षधरता के साथ. यह नाटक बताता है कि कला में राजनीति या पक्षधरता जितनी अंतर्निहित होती है उतनी ही सुंदर होती है.

वेरा बरज़ाक स्नाइडर की प्रस्तुति ‘ए स्ट्रेंजर गेस्ट’
इजराइल की ‘ए स्ट्रेंजर गेस्ट’ शांत और गहरी प्रस्तुति है जो एक खास स्थिति में फंसे परिवार के सदस्यों के व्यक्तिगत और आपसी संबंधों में और उस स्थिति के प्रति उनकी प्रतिक्रिया को दर्ज करती है. मंच की सज्जा किसी मध्य वर्ग के ड्राइंग रूम की है जिसमें दर्शकों की तरफ खिड़कियां हैं जिनके जरिए उनकी स्थिति को दर्शक देख पाता है.  ये खिड़कियां और उन पर पात्रों की गतिविधि से स्पष्ट होता है कि उनके बीच कोई अभिन्न अनुपस्थित है और उसकी अनुपस्थिति नाटक में पात्रों की बेचैनी में दर्ज होती है. एक परिवार में दो बहनें हैं, मां बीमार है.  पिता, मां की खबर लेकर आते हैं. तीनों इस स्थिति में विचलित हैं और वे अपनी स्मृतियों में जाते हैं जो प्रत्येक के लिए अलग-अलग हैं. खाने की टेबल पर उनका व्यवहार, उनकी हताशा और आशंका से उपजा है. मानवीय व्यवहारों सजीव और संवेदनशील ब्यौरा इस प्रस्तुति को इसे खास बना देता है जबकि नाटक में घटनाएं नहीं के बराबर हैं.  प्रकाश और अभिनेताओं की गतियों का खेल उनके द्वंद्व को और गाधा बना देता है. नाटक के अंत में सभी पात्र नेपथ्य में चले जाते हैं और एक चीख सुनाई देती है. दर्शक अंधेरे में बैठा स्तब्ध रह जाता है.

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