उपराज्यपाल के 40 योजनाओं की होम डिलिवरी पर रोक लगाने के फैसले पर सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिया ये बयान (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल द्वारा राज्य सरकार की सरकारी सेवाओं की होम डिलीवरी संबंधी प्रस्ताव लौटाने के एक दिन बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को बैजल के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि दिल्ली के फैसले लेने का अधिकार किसके पास होना चाहिए.
'मजेंटा लाइन के उद्घाटन में सीएम केजरीवाल को इसलिए नहीं बुलाया गया क्योंकि...'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा है कि एलजी कहते हैं कि काफ़ी डिजिटाइज़ेशन हुआ है. चुनी हुई सरकार कहती है कि डिजिटाइज़ेशन को घर-घर डिलीवरी से जोड़ना होगा. एलजी सहमत नहीं हैं. तो सवाल है कि लोकतंत्र में ऐसे हालात में किसकी बात अंतिम होनी चाहिए- एलजी की या चुनी हुई सरकार की? केजरीवाल ने इस ट्वीट के साथ एक न्यूज रिपोर्ट भी साझा की, जिसका शीर्षक था- 'डोरस्टेप डिलीवरी : गवर्मेट सेज बैजल रिजेक्टेड प्लान, एलजी सेज डिजिटाइज इट'.
राजधानी दिल्ली में रहने वाले लोगों को अच्छे और भ्रष्टाचार मुक्त शासन मुहैया कराने के सरकार के प्रयासों को "भारी झटका" बताते हुए मनीष सिसोदिया ने उप राज्यपाल से सवाल किया कि सार्वजनिक हित के ऐसे गंभीर मामलों पर निर्वाचित सरकार के साथ इस तरह से उप राज्यपाल को अपने वैचारिक मतभेद को जाहिर करने की शक्ति है क्या? एक के बाद एक ट्वीट में मनीष सिसोदिया ने कहा कि सरकार और एलजी की वैचारिक मतभेद की वजह से आम जनता पीस रही है.
केजरीवाल सरकार का फैसला पलटा, नवजात को 'मरा' हुआ बताने वाले मैक्स अस्पताल का लाइसेंस नहीं होगा रद्द
यह मसला एक बार फिर से केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच में लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है. उपराज्यपाल के इसी तरह के रवैये की वजह से दिल्ली सरकार कोर्ट का रुख अपना चुकी है और कोर्ट में ये आरोप लगाया है कि सरकार के प्रस्तावों और योजनाओं पर एलजी बैठे हुए हैं.
मनीष सिसोदिया ने अपने ट्वीट में लिखा कि उप राज्यपाल ने प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया है. एलजी का कहना है कि सेवाओं का डिजिटलाइजेशन काफी है. घर-घर जाकर सेवाओं की डिलिवरी करने की कोई जरूरत नहीं है. वहीं, सिसोदिया का कहना है कि इस प्लान को अपार जनसमर्थन मिला है. इतना ही नहीं, मनीष सिसोदिया ने इस मसले पर दिल्ली की जनता के लिए दुख भी जताया है.
आपको बता दें कि उपराज्यपाल ने जाति, जन्म और निवासी सर्टिफ़िकेट, लाइसेंस, सामाजिक कल्याण योजनाओं और पेंशन जैसी 40 सरकारी सेवाओं को घर तक देने के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है. उपराज्यपाल ने इसे फिर से विचार के लिए वापस भेजा है. उपराज्यपाल का कहना है कि सेवाओं का डिजिटलाइजेशन काफ़ी है, घर तक सेवा देने की ज़रूरत नहीं. उपराज्यपाल ने ये फ़ैसले ज़मीनी हकीकत जाने बगैर लिया है घर तक सेवाएं देने के फैसले का समाज के हर वर्ग ने
स्वागत किया था, अच्छी और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने के दिल्ली सरकार की कोशिशों को ये एक बड़ा झटका है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा है कि एलजी कहते हैं कि काफ़ी डिजिटाइज़ेशन हुआ है. चुनी हुई सरकार कहती है कि डिजिटाइज़ेशन को घर-घर डिलीवरी से जोड़ना होगा. एलजी सहमत नहीं हैं. तो सवाल है कि लोकतंत्र में ऐसे हालात में किसकी बात अंतिम होनी चाहिए- एलजी की या चुनी हुई सरकार की? केजरीवाल ने इस ट्वीट के साथ एक न्यूज रिपोर्ट भी साझा की, जिसका शीर्षक था- 'डोरस्टेप डिलीवरी : गवर्मेट सेज बैजल रिजेक्टेड प्लान, एलजी सेज डिजिटाइज इट'.
राजधानी दिल्ली में रहने वाले लोगों को अच्छे और भ्रष्टाचार मुक्त शासन मुहैया कराने के सरकार के प्रयासों को "भारी झटका" बताते हुए मनीष सिसोदिया ने उप राज्यपाल से सवाल किया कि सार्वजनिक हित के ऐसे गंभीर मामलों पर निर्वाचित सरकार के साथ इस तरह से उप राज्यपाल को अपने वैचारिक मतभेद को जाहिर करने की शक्ति है क्या? एक के बाद एक ट्वीट में मनीष सिसोदिया ने कहा कि सरकार और एलजी की वैचारिक मतभेद की वजह से आम जनता पीस रही है.
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मनीष सिसोदिया ने अपने ट्वीट में लिखा कि उप राज्यपाल ने प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिए वापस भेज दिया है. एलजी का कहना है कि सेवाओं का डिजिटलाइजेशन काफी है. घर-घर जाकर सेवाओं की डिलिवरी करने की कोई जरूरत नहीं है. वहीं, सिसोदिया का कहना है कि इस प्लान को अपार जनसमर्थन मिला है. इतना ही नहीं, मनीष सिसोदिया ने इस मसले पर दिल्ली की जनता के लिए दुख भी जताया है.
आपको बता दें कि उपराज्यपाल ने जाति, जन्म और निवासी सर्टिफ़िकेट, लाइसेंस, सामाजिक कल्याण योजनाओं और पेंशन जैसी 40 सरकारी सेवाओं को घर तक देने के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया है. उपराज्यपाल ने इसे फिर से विचार के लिए वापस भेजा है. उपराज्यपाल का कहना है कि सेवाओं का डिजिटलाइजेशन काफ़ी है, घर तक सेवा देने की ज़रूरत नहीं. उपराज्यपाल ने ये फ़ैसले ज़मीनी हकीकत जाने बगैर लिया है घर तक सेवाएं देने के फैसले का समाज के हर वर्ग ने
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