- दिल्ली हिंसा में दंगाइयों ने बिल्कीस के घर को आग लगा दी
 - दुकान भी जलकर खाक हो चुकी है
 - धार्मिक स्थल पर शरण लेने को मजबूर
 
शिव विहार की रहने वाली 60 वर्षीय बिल्कीस बानो सोमवार को भीड़ के हमले को याद करते हुए अपने आंसू नहीं रोक पातीं. विवादास्पद नागरिकता कानून को लेकर दिल्ली में हुई हिंसा में सबसे ज्यादा प्रभावित शिव विहार ही हुआ है जहां सैकड़ों की संख्या में उपद्रवियों की भीड़ ने बिल्कीस के घर को भी आग लगा दी. जब हमलावर आए तब वो अपने घर के अंदर ही थी, जहां वो करीब 35 साल से रह रही हैं. उनके घर से लगी उनके परिवार की एक दुकान भी है जो खाक हो चुकी है. सबकुछ जल रहा था. मैं अपनी जान बचाने के लिए भागी, लेकिन गिर गई. मैं भीड़ में फंस गई थी. हमलावर इधर-उधर भाग रहे थे और घरों व दुकानों में आग लगा रहे थे. मैं घुटनों पर थी, और रेंग कर वहां से निकली. मेरे बड़े लड़के मोहम्मद यूसुफ (42) ने मुझे देखा और खींच कर भीड़ से बाहर निकाला और हम एक सुरक्षित जगह की ओर भागे.'
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उनका दो माले का मकान और दुकान खाक हो चुके हैं. बानो ने अपने दो बेटों और बहुओं के साथ नजदीकी धार्मिक स्थल पर शरण ली. 24 फरवरी को नागरिकता कानून के विरोधियों और समर्थकों के बीच शुरू हुई हिंसा में सबसे ज्यादा प्रभावित शिव विहार ही हुआ. इस हिंसा में 40 से ज्यादा लोगों की जान चली गई जबकि 100 से ज्यादा चोटिल लोग अब भी अस्पताल में हैं. प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि भीड़ आई और हर चीज को जलाती चली गई. सैकड़ों परिवारों को इलाके को छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा. शनिवार को जब बिल्कीस बानो ने NDTV से बात की तब वो उन्हीं कपड़ों में थी जो उन्होंने सोमवार को पहने थे. उनके बेटे यूसुफ ने कहा, 'ये शर्ट जो मैंने पहनी है, ये मैंने पड़ोसी से थोड़ी देर पहले ही ली है.' 
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पास के ही यमुना विहार इलाके में 33 वर्षीय प्रीति गर्ग यह याद कर कांप जाती हैं कि कैसे दंगाइयों ने उनके घर को आग लगा दी. उनके 5 साल और 9  साल के दो बेटों को अपनी जान बचाने के लिए पहले माले से छलांग लगानी पड़ी. प्रीति ने बताया, 'सोमवार को यहां कई घंटे तक हिंसा होती रही. यह पत्थरबाजी से शुरू हुआ, उसके बाद आगजनी तक पहुंच गया. उन लोगों ने हमारे घर से मात्र 200 मीटर की दूरी पर स्थित एक पेट्रोल पंप को आग लगा दी. उन लोगों ने पहले हमारे घर के ग्राउंड फ्लोर के आगे के हिस्से में आग लगाई जो कि उस वक्त खाली थी, जिसके बाद आग ऊपर की तरफ फैल गई. मैं, मेरे पति, मेरे बेटे और सास पहले माले पर थे. हमने पहले बच्चों को बचाने का फैसला किया.'
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प्रीति ने बताया, 'हमने बालकनी से उनका हाथ पकड़ा और उन्हें नीचे की तरफ लटकाने के बाद कूदने को कहा. यह मेरे जीवन के सबसे भयावह पलों में से एक था. बच्चों को सुरक्षित निकालने के बाद हम सब छत पर चले गए और पड़ोसी की छत पर चढ़ गए.' प्रीति के घर का ग्राउंड फ्लोर राख हो चुका है. उनकी सास संतोष कहती हैं, 'हर बार जब मैं बालकनी जाती हूं, मुझे याद आता है कि कैसे आग से बचने के लिए बच्चे यहां से कूद गए.' दिल्ली पुलिस ने हिंसा के लिए 150 से ज्यादा एफआईआर दर्ज की हैं.
 
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