क्रिप्टोकरेंसी एक तरह की डिजिटल संपत्ति (Cryptocurrency a digital asset) है, जिसको लेन-देन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे वस्तुओं और सेवाओं का लाभ लेने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है, हालांकि, इसका इस्तेमाल फ्लैट करेंसी यानी रुपया या डॉलर, की तरह हर जगह नहीं किया जा सकता है. अभी इसकी स्वीकार्यता इतनी नहीं बढ़ी है. पेमेंट के एक मोड के तौर पर क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency payment) अभी बहुत ही शुरुआती स्तर पर है, लेकिन इसमें अच्छे रिटर्न की आशा से बहुत लोग निवेश का रास्ता अपना रहे हैं. हर रोज नए निवेशक बाजार से जुड़ रहे हैं. लेकिन बाजार में रहने वाले उतार-चढ़ाव के अलावा एक और सवाल है, जिसकी चिंता निवेशकों को होती है कि- क्रिप्टोकरेंसी में निवेश से बने पैसे पर क्या टैक्स लगेगा? इसपर अभी कुछ बहुत स्पष्ट नहीं है. यहां तक कि क्रिप्टोकरेंसी में ट्रेडिंग को अभी पिछले साल ही अनुमति मिली है, हालांकि, इसका नियमन यानी रेगुलेशन अभी भी नहीं हुआ है.
RBI का बैन और सुप्रीम कोर्ट का आदेशअप्रैल, 2018 में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने देश में क्रिप्टोकरेंसी की ट्रेडिंग पर बैन लगाते हुए एक सर्कुलर जारी किया था. इस सर्कुलर में बैंकों और वित्तीय संस्थानों को क्रिप्टोकरेंसी में डीलिंग करने से मनाही की बात थी. इसके चलते ऐसा हुआ कि क्रिप्टो निवेशक अपने बैंक अकाउंट से अपने क्रिप्टो ट्रेडिंग वॉलेट में पैसे ट्रांसफर नहीं कर पा रहे थे. हालांकि, फिर मार्च, 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई के इस ऑर्डर को खारिज कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया (IMAI) एक याचिका दाखिल की गई. इस याचिका में दावा किया गया कि बिटकॉइन और डॉजकॉइन जैसी डिजिटल कॉइन्स में बिजनेस करने वाली कई कंपनियों को RBI के इस सर्कुलर से नुकसान पहुंचा.
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश से क्रिप्टो निवेशकों को राहत मिली, दूसरों ने भी क्रिप्टो में मौका देखा और निवेश करना शुरू किया. अब चूंकि क्रिप्टोकरेंसी मार्केट पर कोई सरकारी नियंत्रण या रेगुलेशन नहीं है, ऐसे में भारत में इस सेक्टर में कितने निवेशक है, कितने का निवेश, इसपर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है.
क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग पर बैन हटने के बाद से निवेशकों में इस बात को लेकर तस्वीर साफ नहीं है कि क्रिप्टो में निवेश से इस साल हुई आय पर उन्हें टैक्स डेक्लेरेशन का क्या करना है. हो सकता है कि कुछ लोग टैक्स भरने से बचें लेकिन इसमें बिल्कुल समझदारी नहीं है. इनकम टैक्स नियम साफ-साफ बताते हैं कि किस तरह के आय पर टैक्स नहीं देना होता है और उसमें क्रिप्टोकरेंसी शामिल नहीं है.
टैक्स लायबिलिटी इस बात पर निर्भर करेगी कि निवेशक ने कोई क्रिप्टोकरेंसी किस फॉर्म में होल्ड की थी, करेंसी के या असेट यानी संपत्ति के. इनकम टैक्स एक्ट की धारा 2 (14) कहती है कि किसी व्यक्ति की कोई प्रॉपर्टी, भले ही वो उसके बिजनेस या प्रोफेशन न जुड़ा, उसे कैपिटल असेट यानी पूंजीगत संपत्ति के तहत रखा जाएगा. लेकिन, अगर किसी निवेशक ने क्रिप्टो में लगातार निवेश किया है, तो वो अपने प्रॉफिट को बिजनेस इनकम के तौर पर दिखा सकता है. अगर किसी ने वर्चुअल संपत्ति में निवेश किया है, तो इसे कैपिटल गेन की तरह देखा जाएगा. क्रिप्टोकरेंसी से हुई आय को ‘Income from Other Sources' कैटेगरी में डिक्लेयर किया जा सकता है.
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कितने वक्त तक का रहा है निवेश...क्रिप्टोकरेंसी पर टैक्स कैलकुलेशन में इस बात का भी ध्यान रखा जा सकता है कि निवेशक ने कितने वक्त तक इसमें निवेश किया था. अगर किसी संपत्ति में तीन साल से ज्यादा वक्त तक का निवेश रहा है, तो उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के तहत रखा जाएगा. अगर तीन साल से कम का वक्त है तो इसे शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन की तरह देखा जाएगा.
अगर किसी ने खुद से माइनिंग करके क्रिप्टोकरेंसी बनाई है, तो उसे सेल्फ-जेनरेटेड कैपिटल असेट यानी खुद से बनाई गई संपत्ति के वर्ग में रखा जाएगा. इसपर कैपिटल गेन की तरह टैक्स लगाया जा सकता है. वैसे, अभी जबकि इस मसले पर कोई साफ दिशा-निर्देश नहीं है, तो बेहतर होगा कि क्रिप्टो निवेशक अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने से पहले अपने पर्सनल टैक्स एडवाइज़र से इस संबंध में परामर्श कर लें.
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