निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंंह नरूला
                                                                                                                        - गोलगप्पे, खीर और लड्डडू खाने जैसे उलजलूल उपाय बताता है निर्मल बाबा
 - जिस धंंधे को हाथ लगाया वही चौपट हो गया, बाबागीरी से कमाई खूब दौलत
 - अंधविश्वास और ठगी के अलावा आय से अधिक संपत्ति के कई केस दर्ज
 
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                                                                                नई दिल्ली: 
                                        अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने एक लिस्ट जारी कर ईश्वर की कृपा भक्तों तक पहुंचाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा उर्फ निर्मलजीत सिंह को फर्ज़ी करार दिया है. निर्मल बाबा पर आय से अधिक संपत्ति के अलावा अंधविश्वास और ठगी के कई केस दर्ज हैं. कुछ साल पहले तक टीवी चैनलों पर निर्मल बाबा और उसके समागम काफी छाए हुए थे. वो लोगों को परेशानियों से निजात पाने के लिए जेब में काला पर्स रखने, गोलगप्पे-पिज़्ज़ा खाने व घर में दस के नोटों की गड्डी रखने जैसे उटपटांग उपाय बताता है. पढ़ने-सुनने में आपको भले ही हंसी आए लेकिन परेशान लोग सच में न सिर्फ ये उपाय अपना रहे थे बल्कि अपनी कमाई का दसवां हिस्सा निर्मल बाबा को 'अर्पण' भी कर रहे थे. 
पढ़ें: किसी न किसी स्कैंडल में शामिल रहे हैं ये सात बाबा
लोगों को मुसीबतों से निजात दिलवाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा का असली नाम निर्मलजीत सिंह नरूला है. उसका जन्म पंजाब के पटियाला जिले के समाना में 1952 में हुआ था. उसकी पढ़ाई-लिखाई समाना, दिल्ली और लुधियाना में हुई है. बाबा की की एक बहन की शादी झारखंड के पूर्व सांसद इंदरसिंह नामधारी से हुई है. पिता की मौत के बाद उनकी बहन उन्हें अपने साथ झारखंड ले आई. बताया जाता है कि झारखंड आने के बाद निर्मल बाबा ने कई धंधों में हाथ आज़माए. गढ़वा में रहकर निर्मलजीत ने 'नामधारी क्लॉथ हाउस' नाम से कपड़े की दुकान खोली, लेकिन वह नहीं चली. फिर उसने ईंट भट्टे का धंधा शुरू किया, लेकिन उसमें भी नुकसान उठाना पड़ा. उसने कुछ समय तक खदानों की नीलामी में भी ठेकेदारी की, लेकिन बात नहीं बनी. जब कहीं दाल नहीं गली तो उसने लोगों की भीड़ जमा कर प्रवचन देना शुरू कर दिया और फिर 'कृपा' बरसनी शुरू हो गई. लोग प्रवचन भी सुनते और दान भी देते. 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोध दंगों के कारण रांची में अपना सब कुछ बेच वो दिल्ली पहुंच गया और कुछ सालों बाद यहीं 'निर्मल दरबार' लगाना शुरू कर दिया. उसकी पत्नी का नाम सुषमा नरूला है जिससे उसकी एक बेटी और एक बेटा है. वह इस समय अपने परिवार के साथ दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश में बंगले में रहता है
पढ़ें: गुरमीत राम रहीम ही नहीं राधे मां की लाइफस्टाइल भी है बेहद रंगीन
निर्मल बाबा अपने दरबार में आए लोगों को परेशानियों से उबरने के लिए अजीबोगरीब उपाय बताता. वह लोगों को जेब में काला पर्स रखने और उसे हर साल अपग्रेट करने की सलाह देता है. डायबिटीज़ से छुटकारा पाने के लिए डायबिटीज़ के ही मरीज़ को वो खीर खाने की नसीहत देता है तो किसी को रास्ते में रुककर पिज्ज़ा और गोलगप्पे खाने के लिए कहता है. कभी वो घर में दस के नोटों की गड्डी रखने के लिए कहता है तो कभी कहता है कि मनी प्लांट लगाइए. ऐसे ऊलजलूल उपाय बताने के पीछे उसका तर्क होता है कि ऐसा न करने की वजह से ईश्वर की 'कृपा' रुकी हुई है. निर्मल बाबा का दावा है कि उसका तीसरा नेत्र खुला हुआ है इसलिए उसे लोगों की दिक्कतों की असली वजह पता चल जाती है और जिन्हें उसके
द्वारा बताए गए उपायों को अपनाकर दूर किया जा सकता है.
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निर्मल बाबा की आय का सबसे बड़ा ज़रिया समागम में आने वाले भक्तों से ली जाने वाली फीस है. जो भक्त उसके समागम में आते हैं उन्हें फीस चुकानी पड़ती है. यह भी कहा जाता है कि जो भक्त पर्सनली मिलते हैं उन्हें ज़्यादा फीस देनी होती है. वैसे निर्मल बाबा का ज़ोर 'दसबंध' पर अधिक रहता है. 'दसबंध' यानी भक्तों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा निर्मल बाबा के एकाउंट में ट्रांसफर करना होगा. उसके समागमों का प्रसारण कई टीवी चैनलों में हेता है, जिन्हें देखकर दूर-दूर के लोग निर्मल बाबा से मिलने चले आते हैं. हालांकि कई लोग उसके खिलाफ धर्म के नाम पर पैसा वसूलने और अंधविश्वास को बढ़ाने देने का आरोप लगा चुके हैं. लोगों की शिकायतों के बाद कुछ समय तक उसके समागमों के प्रसारण पर रोक लग गई थी, लेकिन निर्मल दरबार अब भी लगता है.
                                                                                
                                                                                
                                                                                                                        
                                                                                                                    
                                                                        
                                    
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लोगों को मुसीबतों से निजात दिलवाने का दावा करने वाले निर्मल बाबा का असली नाम निर्मलजीत सिंह नरूला है. उसका जन्म पंजाब के पटियाला जिले के समाना में 1952 में हुआ था. उसकी पढ़ाई-लिखाई समाना, दिल्ली और लुधियाना में हुई है. बाबा की की एक बहन की शादी झारखंड के पूर्व सांसद इंदरसिंह नामधारी से हुई है. पिता की मौत के बाद उनकी बहन उन्हें अपने साथ झारखंड ले आई. बताया जाता है कि झारखंड आने के बाद निर्मल बाबा ने कई धंधों में हाथ आज़माए. गढ़वा में रहकर निर्मलजीत ने 'नामधारी क्लॉथ हाउस' नाम से कपड़े की दुकान खोली, लेकिन वह नहीं चली. फिर उसने ईंट भट्टे का धंधा शुरू किया, लेकिन उसमें भी नुकसान उठाना पड़ा. उसने कुछ समय तक खदानों की नीलामी में भी ठेकेदारी की, लेकिन बात नहीं बनी. जब कहीं दाल नहीं गली तो उसने लोगों की भीड़ जमा कर प्रवचन देना शुरू कर दिया और फिर 'कृपा' बरसनी शुरू हो गई. लोग प्रवचन भी सुनते और दान भी देते. 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भड़के सिख विरोध दंगों के कारण रांची में अपना सब कुछ बेच वो दिल्ली पहुंच गया और कुछ सालों बाद यहीं 'निर्मल दरबार' लगाना शुरू कर दिया. उसकी पत्नी का नाम सुषमा नरूला है जिससे उसकी एक बेटी और एक बेटा है. वह इस समय अपने परिवार के साथ दिल्ली के पॉश इलाके ग्रेटर कैलाश में बंगले में रहता है
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निर्मल बाबा अपने दरबार में आए लोगों को परेशानियों से उबरने के लिए अजीबोगरीब उपाय बताता. वह लोगों को जेब में काला पर्स रखने और उसे हर साल अपग्रेट करने की सलाह देता है. डायबिटीज़ से छुटकारा पाने के लिए डायबिटीज़ के ही मरीज़ को वो खीर खाने की नसीहत देता है तो किसी को रास्ते में रुककर पिज्ज़ा और गोलगप्पे खाने के लिए कहता है. कभी वो घर में दस के नोटों की गड्डी रखने के लिए कहता है तो कभी कहता है कि मनी प्लांट लगाइए. ऐसे ऊलजलूल उपाय बताने के पीछे उसका तर्क होता है कि ऐसा न करने की वजह से ईश्वर की 'कृपा' रुकी हुई है. निर्मल बाबा का दावा है कि उसका तीसरा नेत्र खुला हुआ है इसलिए उसे लोगों की दिक्कतों की असली वजह पता चल जाती है और जिन्हें उसके
द्वारा बताए गए उपायों को अपनाकर दूर किया जा सकता है.
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निर्मल बाबा की आय का सबसे बड़ा ज़रिया समागम में आने वाले भक्तों से ली जाने वाली फीस है. जो भक्त उसके समागम में आते हैं उन्हें फीस चुकानी पड़ती है. यह भी कहा जाता है कि जो भक्त पर्सनली मिलते हैं उन्हें ज़्यादा फीस देनी होती है. वैसे निर्मल बाबा का ज़ोर 'दसबंध' पर अधिक रहता है. 'दसबंध' यानी भक्तों को अपनी कमाई का दसवां हिस्सा निर्मल बाबा के एकाउंट में ट्रांसफर करना होगा. उसके समागमों का प्रसारण कई टीवी चैनलों में हेता है, जिन्हें देखकर दूर-दूर के लोग निर्मल बाबा से मिलने चले आते हैं. हालांकि कई लोग उसके खिलाफ धर्म के नाम पर पैसा वसूलने और अंधविश्वास को बढ़ाने देने का आरोप लगा चुके हैं. लोगों की शिकायतों के बाद कुछ समय तक उसके समागमों के प्रसारण पर रोक लग गई थी, लेकिन निर्मल दरबार अब भी लगता है.
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